सूर्य के अनुसार वास्तु उपाय व वास्तु में सूर्य का महत्त्व

Last Updated on July 22, 2019 by admin

संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार सूर्य है जिसकी ऊर्जा पूरे ब्रह्मांड को जीवन प्रदान करती है। सूर्य की ऊर्जा से ही पृथ्वी पर जीवन है। इस कारण वास्तुशास्त्र में पूर्व व उत्तर की दिशाओं को अत्यधिक महत्त्व दिया जाता है। क्योंकि सूर्य से मिलने वाली सकारात्मक ऊर्जा का मुख्य द्वार पूर्व दिशा ही है। किसी भी घर या भवन में सूर्य की ऊर्जा का आगमन ईशान कोण से ही होता हैं। जहां सूर्य की ऊर्जा के साथ अंतरिक्ष की ऊर्जा भी भवन में प्रवेश करती हैं। यह दोनों ऊर्जाएं मिलकर भवन के अंदर एक विशेष ऊर्जा क्षेत्र बनाती हैं । जो भवन के निवासियों को सकारात्मक परिणाम देती हैं।

प्राचीन काल में ही मानव इस बात से अच्छी तरह परिचित हो चुका था। कि, सूर्य ही जीवनप्रदायक और जीवन-पोषक शक्ति है। सृष्टि के प्रारंभ से ही विभिन्न कालों में विश्व की विभिन्न सभ्यताओं में सूर्य की उपासना यह सिद्ध करती है कि सूर्य का महत्त्व अक्षुण्ण है।

विज्ञान ने भी यह प्रमाणित किया है कि, प्रातःकालीन सूर्य की किरणों में । हमारे शरीर के लिए अनेक लाभदायक पदार्थ निहित होते हैं। जब यह सूर्य की किरणें त्वचा पर पड़ती हैं तो हमारे शरीर के लिए आवश्यक विटामिन ‘डी’ सीधे रक्त द्वारा सोख लिया जाता है। हमें नंगी आंखों से सूर्य की किरणें सफेद दिखाई देती हैं पर उसके अंदर बैंगनी, नीला, श्याम, नारंगी, हरा, लाल और पीला’ सात रंग होते हैं। यह रंग भी हमारे स्वास्थ्य पर विशेष प्रभाव डालते हैं। रंग एवं प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में सूर्य की किरणों का बहुत उपयोग होता है। इन किरणों की कांति अनेक प्रकार के कीटाणुओं को नष्ट करती हैं।

सूर्योदय के समय की किरणें जो कि अधिक रोशनी और कम गर्माहट वाली होने के कारण सर्वोत्तम होती हैं। इसी कारण वास्तुशास्त्र में पूर्व की ओर अधिक खुला स्थान एवं दरवाजे, खिड़कियां रखने की सलाह दी जाती है ताकि प्रातःकालीन सूर्य की किरणें घर व आंगन में अधिक से अधिक मात्रा में प्रवेश कर सकें। जो हानिकारक बैक्टीरिया और कीटाणुओं को नष्ट कर उस स्थान को शुद्ध करे ताकि, वहां निवास करने वाले स्वस्थ जीवन बिता सकें । उत्तम स्वास्थ्य ही सबसे बड़ी दौलत है।

प्रातः 6 से 9 बजे तक सूर्य पूर्व दिशा में रहता है, इसलिए घर का पूर्वी भाग अधिक खुला रखना चाहिए। जिससे सूर्य की रोशनी अधिक कमरे में आ सके। तभी हम सूर्य की सकारात्मक ऊर्जा का लाभ उठा पाऐंगे।

गृहनिर्माण आरंभ और गृह प्रवेश के समय विभिन्न देवताओं के रूप में सूर्यदेव का ही पूजन होता है ताकि प्राण ऊर्जा देने वाले आरोग्य के देवता सूर्य का सर्वाधिक लाभ मिल सके।

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गृहारंभ मुहूर्त से गृह प्रवेश तक सूर्य का प्रधानता से विचार किया जाता है।
गृहारंभ के मुहूर्त में चंद्रमासों की अपेक्षा सौरमास अधिक महत्वपूर्ण, विशेषतः नींव खोदते समय सूर्य संक्रांति विचारणीय है। पूर्व कालामृत का कथन है- गृहारंभ में स्थिर व चर राशियों में सूर्य रहे तो गृहस्वामी के लिए धनवर्द्धक होता है। जबकि द्विस्वभाव (3, 6, 9, 12) राशि गत सूर्य मरणप्रद होता है। अतः मेष, वृष, कर्क, सिंह, तुला, वृश्चिक, मकर और कुंभ राशियों के सूर्य में गृहारंभ करना शुभ रहता है। मिथुन, कन्या, धनु और मीन राशि के सूर्य में गृह निर्माण प्रारंभ नहीं करना चाहिए। विभिन्न सौरमासों में गृहारंभ का फल देवऋषि नारद ने इस प्रकार बताया है।
मेष मास- शुभ,
वृष मास- धन वृद्धि
मिथुन मास- मृत्यु
कर्क मास- शुभ,
सिंह मास- सेवक वृद्धि,
कन्या मास- रोग,
तुला मास- सुख,
वृश्चिक मास- धनवृद्धि,
धनु मास- बहुत हानि,
मकर- धन आगम,
कुंभ- लाभ,
मीनमास में गृहारंभ करने से गृहस्वामी को रोग तथा भय उत्पन्न होता है।
सौरमासों और चंद्रमासों में जहां फल का विरोध दिखाई दे वहां सौरमास का ग्रहण और चंद्रमास का त्याग करना चाहिए क्योंकि चंद्रमास गौण है।

मकान की नींव खोदने के लिए सूर्य जिस राशि में हो उसके अनुसार राहु या सर्प के मुख, मध्य और पुच्छ का ज्ञान करते हैं। सूर्य की राशि जिस दिशा में हो उसी दिशा में, उस सौरमास राहु रहता है। जैसा कि कहा गया है- “यद्राशिगोऽर्कः खलु तद्दिशायां, राहुः सदा तिष्ठति मासि मासि।”
यदि सिंह, कन्या, तुला राशि में सूर्य हो तो राहु का मुख ईशान कोण में और पुच्छ नैत्य कोण में होगी और आग्नेय कोण खाली रहेगा। अतः उक्त राशियों के सूर्य में इस खाली दिशा (राहु पृष्ठीय कोण) से खातारंभ या नींव खनन प्रारंभ करना चाहिए।
वृश्चिक, धनु, मकर राशि के सूर्य में राहु मुख वायव्य कोण में होने से ईशान कोण खाली रहता है। कुंभ, मीन, मेष राशि के सूर्य में राहु मुख नैत्य कोण में होने से वायव्य कोण खाली रहेगा। वृष, मिथुन, कर्क राशि के सूर्य में राहु का मुख आग्नेय कोण में होने से नैत्य दिशा खाली रहेगी। उक्त सौर मासों में इस खाली दिशा (कोण) से ही नींव खोदना शुरु करना चाहिए।
अब एक प्रश्न उठता है कि हम किसी खाली कोण में गड्ढ़ा या नींव खनन प्रारंभ करने के बाद किस दिशा में खोदते हुए आगे बढ़ें? वास्तु पुरुष या सर्प का भ्रमण वामावर्त्त होता है। इसके विपरीत क्रम से- बाएं से दाएं/दक्षिणावर्त्त/क्लोक वाइज नींव की खुदाई करनी चाहिए। यथा आग्नेय कोण से खुदाई प्रारंभ करें तो दक्षिण दिशा से जाते हुए नैत्य कोण की ओर आगे बढ़ें।
विश्वकर्मा प्रकाश में बताया गया है- ‘ईशानतः सर्पति कालसर्पो विहाय सृष्टिं गणयेद् विदिक्षु। शेषस्य वास्तोर्मुखमध्य -पुछंत्रयं परित्यज्यखनेच्चतुर्थम्॥’ वास्तु रूपी सर्प का मुख, मध्य और पुच्छ जिस दिशा में स्थित हो उन तीनों दिशाओं को छोड़कर चौथी में नींव खनन आरंभ करना चाहिए। इसे हम निम्न तालिका के मध्य से आसानी से समझ सकते हैं।

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शिलान्यास :

गृहारंभ हेतु नींव खात चक्रम और वास्तुकालसर्प दिशा चक्र में प्रदर्शित की गई सूर्य की राशियां और राहु पृष्ठीय कोण नींव खनन के साथ-साथ शिलान्यास करने, बुनियाद भरने हेतु, प्रथम चौकार अखण्ड पत्थर रखने हेतु, खम्भे (स्तंभ) पिलर बनाने हेतु इन्ही राशियों व कोणों का विचार करना चाहिए। जो क्रम नींव खोदने का लिखा गया था वही प्रदक्षिण क्रम नींव भरने का है।
आजकल मकान आदि बनाने हेतु आर.सी.सी. के पिलर प्लॉट के विभिन्न भागों में बना दिये जाते हैं। ध्यान रखें, यदि कोई पिलर राहु मुख की दिशा में पड़ रहा हो तो फिलहाल उसे छोड़ दें।
सूर्य के राशि परिवर्तन के बाद ही उसे बनाएं तो उत्तम रहेगा। कतिपय वास्तु विदों का मानना है कि सर्व प्रथम शिलान्यास आग्नेय दिशा में करना चाहिए।

1- सूर्योदय से पहले रात्रि 3 से सुबह 6 बजे का समय ब्रह्म मुहूर्त होता है। इस समय सूर्य घर के उत्तर-पूर्वी भाग में होता है। यह समय चिंतन-मनन व अध्ययन के लिए बेहतर होता है।
2- सुबह 6 से 9 बजे तक सूर्य घर के पूर्वी हिस्से में रहता है इसीलिए घर ऐसा बनाएं कि सूर्य की पर्याप्त रौशनी घर में आ सके।
3- प्रात: 9 से दोपहर 12 बजे तक सूर्य घर के दक्षिण-पूर्व में होता है। यह समय भोजन पकाने के लिए उत्तम है। रसोई घर व स्नानघर गीले होते हैं। ये ऐसी जगह होने चाहिए, जहां सूर्य की रोशनी मिले, तभी वे सुखे और स्वास्थ्यकर हो सकते हैं।
4- दोपहर 12 से 3 बजे तक विश्रांति काल(आराम का समय) होता है। सूर्य अब दक्षिण में होता है, अत: शयन कक्ष इसी दिशा में बनाना चाहिए।
5- दोपहर 3 से सायं 6 बजे तक अध्ययन और कार्य का समय होता है और सूर्य दक्षिण-पश्चिम भाग में होता है। अत: यह स्थान अध्ययन कक्ष या पुस्तकालय के लिए उत्तम है।
6- सायं 6 से रात 9 तक का समय खाने, बैठने और पढऩे का होता है इसलिए घर का पश्चिमी कोना भोजन या बैठक कक्ष के लिए उत्तम होता है।
7- सायं 9 से मध्य रात्रि के समय सूर्य घर के उत्तर-पश्चिम में होता है। यह स्थान शयन कक्ष के लिए भी उपयोगी है।
8- मध्य रात्रि से तड़के 3 बजे तक सूर्य घर के उत्तरी भाग में होता है। यह समय अत्यंत गोपनीय होता है यह दिशा व समय की।ती वस्तुओं या जेवरात आदि को रखने के लिए उत्तम है।

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