शिष्टाचार – स्वामी विवेकानंद (प्रेरक प्रसंग और शिक्षाप्रद हिंदी कहानियाँ)

Last Updated on July 22, 2019 by admin

सन् 1893, शिकागो में, विश्व धर्म सम्मेलन में हिंदूधर्म का प्रतिनिधित्व स्वामी विवेकानंद कर रहे थे। 11 सितंबर को अपना प्रवचन देने जब वे मंच पर पहुंचे, तो वहीं ब्लैक-बोर्ड पर लिखा हुआ था-

” हिंदू धर्म मुर्दा धर्म “ ।

‘ स्वामीजी ने अपना भाषण शुरू किया, संबोधन था, “अमरीकावासी बहनों व भाइयो।” समूचा सभामंडप तालियों की आवाज से गूंज उठा। ‘लेडीज एंड जेंटिलमेन’ सुनने वालों के कानों में पड़े युवा संन्यासी के इस संबोधन ने मानो सबकी आत्मा को हिला-सा दिया। इन शब्दों से स्वामी जी ने हिंदूधर्म के शाश्वत मूल्यों की ओर संकेत कर दिया था- भाईचारा, आत्मीयता।

5 मिनट की जगह वे 20 मिनट तक बोले। समय से अधिक बोलने का अनुरोध सम्मेलन के अध्यक्ष कार्डिनल गिबन्स ने किया था।

यहीं से सूत्रपात हुआ हिंदूधर्म की वैज्ञानिक व्याख्या का और एकबार फिर से विश्व ने स्वीकार किया- भारत अब भी विश्व गुरु है। उसके ‘सर्वधर्म समभाव’ का सिद्धांत शाश्वत व श्रेष्ठ है।

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