चमत्कारी औषधि पोई के लाजवाब फायदे

Last Updated on July 22, 2019 by admin

पोई का सामान्य परिचय : Poi in Hindi

पोई की बेलें घर और बाहर सब स्थानों में उत्पन्न होती है । इसके पत्ते और बीज लाल होते हैं । इसकी चार जातियां होती हैं । ( १ ) पोई, ( २ ) लालपोई ( ३ ) छोटीपोई और (४) बनपोई ।

( १ ) पोई की जाति की बेल का डंठल सफेद और पत्ते हरे होते हैं ।
( २ ) दूसरी लालपोई का डंठल लाल और पत्तों की रगे भी लाल होती हैं। इसकी बेलों पेड़ों, दीवारों और छतों पर कद्दू की बेलों की तरह फैलती हैं ।इसके फल का रंग काला और नीला होता है |
( ३ ) तीसरी जाति छोटी होती है |इसका पौधा १ बालिश्त से ज्यादा नहीं बढ़ता। यह चैवलाई के साग की तरह होती है ।
( ४ ) चौथी जङ्गली पोई के पत्ते बिसखपरा क पत्तों से मिलते-जुलते होते हैं मगर उनसे कुछ मोटे और नोकदार होते है । इसका स्वाद खट्टा होता है और जड़। सुपारी की तरह गोल होती है ।

विविध भाषाओं में नाम :

संस्कृत-उपोदिका, कलम्बी, मृदुशाका, मोहिनी, पिच्छिला, पोतकी, पूतिका, उपोदकी, बल्लिपोदकी, विशाला, विश्वतुलसी, वृश्चिकप्रिया । हिन्दी-पोई का साग, मयाल की भाजी, लाल बचलू, बनपोई, पोई का बेल, सफेद बचला। बङ्गाल–पुइरचक, रक्तपोई । बम्बई-मयाकमाजी, वेलगोंद । दक्षिण-लाल बचला, सफेद बचला। गुजराती-पाथी, पोथीनी बेल, बालची भाजी । कोकण- बालची भाजी । मद्रास-पासालेइ । तामील वस्लाकिराइ । उर्दू-पोह । लेटिन-Basella Rubra (बेसेला रुद्रा) । B. Alba (बेसेला एल्बा)।

पोई के औषधीय गुण और प्रभाव :

आयुर्वेदिक मत-

• आयुर्वेद के मत से पोई की साग शीतल, स्निग्ध, कफकारक, वात पित्त नाशक, कण्ठ के लिए हानिकारक, पिच्छिल, निद्राजनक, वीर्यवर्धक, रक्तपित्त नाशक, बलवर्धक, रुचिकारक, पथ्य, पौष्टिक और तृप्तिजनक होता है।
• यह पित्त, कुष्ठ, अतिसार, फोड़े-फुन्सी और कफ को दूर करता है ।
• इसका स्वरस पित्त की जलन को शांत करने के लिए शरीर पर मसला जाता है। इससे जलन और खुजली कम हो जाती है।
• रक्त और पित्त की उष्णता अधिक बढ़ने पर इसकी तरकारी खाने से शांति मिलती है ।
• पालक के समान इसकी तरकारी भी बहुत हल्की होती है ।
• सुजाक में इसके पत्तों का रस देने से लाभ होता है ।
• इसके पत्तों का पुल्टिस बनाकर फोड़ों को पकाने के काम में लिया जाता है ।
• इसके पत्ते शांतिदायक, मूत्रल और सुजाक तथा लिगमणि के प्रदाह में उपयोगी है ।
• इसके पत्तों का रस बदहजमी की बजह से होनेवाले दुलपित्ती ( Urticaria ) रोग की खुजली और गरमी को शांत करने के लिए लगाया जाता है ।

यूनानी मत-

✦ यूनानीमत से यह दूसरे दर्जे में सर्द और तर होती है । कोई-कोई इसे खुश्क बतलाते हैं ।
✦ यह वात, पित्त और कफ में समानता पैदा करती है ।
✦ इसके खाने से नींद आती है, यह कामोत्तेजक है ।
✦ हलक और गले के अवयवों को मुलायम करती है ।
✦ गर्मी के बुखार को रोकती है।
✦ आग से जले हुए स्थान पर इसको बार बार लगाने से छाला नहीं पड़ता और शांति मिलती है ।
✦ कामेन्द्रिय पर इसका लेप करने से स्तम्भन होता है ।
✦ पित्त और खून के उपद्रवों को नष्ट करती है।
✦ किसी को बिच्छू ने काटा हो तो इसके ३ पत्तों को पानी में पीसकर पिलाने से जहर दूर हो जाता है ।
✦ इसके पत्तों का रस पिलाने से पेशाब की जलन और दर्द मिट जाता है
✦ इसके पत्तों को पीसकर पीने से गुबै और मसाने की पथरी गल जाती है ।
✦ इसके पत्तों को नमक, कांजी और मट्ठे के साथ पीसकर लेप करने से बदगांठ बिखर जाती है ।

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