नपुंसकता के कारण ,प्रकार ,लक्षण ,दवा व उपचार

Last Updated on December 18, 2019 by admin

नपुंसकता किसे कहते हैं ? :

यों तो नपुंसकता या नामर्दी के बहुत से कारण हैं, पर असली कारण ‘वीर्य’ है। ‘चरक’ में लिखा है-
नपुंसकता केवल वीर्य-दोष से होती है। वीर्य-दोष से पुरुष नपुंसक हो जाता है और वीर्य की शुद्धि से उसकी शुद्धि हो जाती है; यानी वीर्य के शुद्ध और निर्दोष होने पर पुरुष, पुरुष हो जाता है, अर्थात् संसर्ग करने में समर्थ हो जाता है।
‘भावप्रकाश’ में लिखा है-

क्लीवः स्यात्सुरताशक्तस्तभावः क्लैव्यमुच्यते।
तच्च सप्तविधं प्रोक्तं निदानं तस्य कथ्यते॥

जो पुरुष स्त्री के साथ रति क्रिया नहीं कर सकता, उसे ‘क्लीव”नपुंसक’ या हीजड़ा कहते हैं। क्लीव के भाव या धर्म को क्लैव्य या नामर्दी कहते हैं।

नपुंसकता के सामान्य लक्षण :

नामर्द की मामूली पहचान-
जिस पुरुष के प्यारी और वशीभूत स्त्री हो, पर वह उससे नित्य संसर्ग न कर सके; अगर करे भी तो साँस चलने के मारे घबरा जाय, शरीर पसीने-पसीने हो जाय, इच्छा पूरी न हो, चेष्टा व्यर्थ जाय, लिंग ढीला और बीज रहित हो जिस पुरुष में ऐसे लक्षण हों, वह नपुंसक या नामर्द है। दूसरे शब्दों में यों समझिये कि जो पुरुष अपनी मनचाही, प्यारी और वशीभूत स्त्री से रोज सहवास न कर सके, अगर कभी करे तो पसीनों से तर हो जाय, हाँफने लगे, जननेन्द्रिय या लिंग तैयार न हो, चेष्टा करने से भी सफलता न हो-वह मर्द कहने भर का मर्द है, वास्तव में ‘नामर्द है।

नपुंसकता के प्रकार :

यह क्लीवता या नामर्दी सात तरह की होती है-

सात प्रकार की नामर्दी
(१) मानसिक क्लैव्य-मन सम्बन्धी नामर्दी।
(२) पित्तज क्लैव्य–पित्त बढ़ने की वजह से हुई नामर्दी।
(३) वीर्यजन्य -क्लैव्यवीर्य के कारण से हुई नामर्दी।
(४) रोग-जन्य क्लैव्य-रोग की वजह से हुई नामर्दी।
(५) शिरच्छेदजन्य -क्लैव्यवीर्यवाहिनी नसों के छिदने से हुई नामर्दी।
(६) शुक्रस्तम्भजन्य क्लैव्य–मैथुन न करने से हुई नामर्दी।
(७) सहज क्लैव्य-जन्म की या पैदायशी नामर्दी ।

नपुंसकता का मुख्य कारण -हस्तमैथुन :

पुंसत्व और नपुंसकत्व का एकमात्र कारण वीर्य –

यों तो इस जगत में सदा-सर्वदा से मर्द और नामर्द दोनों ही होते चले आये हैं, पर आज-कल जिस तरह नामर्दी की बहुतायत है, उस तरह पहले न थी, क्योंकि पहले के लोग संसार-प्रवेश करने या गृहस्थी में कदम रखने से पहले, पूर्ण ब्रह्मचर्य-व्रत का पालन करते और आयुर्वेद-विद्या या शरीर-सम्बन्धी विद्या को पढ़-समझ कर ही विवाह-शादी करते थे। आजकल जिसे देखो वही धन कमाने की विद्या में लगा हुआ है। जिस शरीर से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है, जिस शरीर से धन कमाया जाता है, उसे शरीर की रक्षा की विद्या को कोई नहीं पढ़ता। यही वजह है कि लोग, अनजान होने के कारण, नाना प्रकार के प्रकृति-विरुद्ध, नियम-विरुद्ध या शास्त्र विरुद्ध कर्म कर-करके, अपने शरीर, पुंसत्वे और अपनी आयु का नाश करके, छोटी उम्र में ही काल के गाल में समा जाते हैं।

आज-कल सृष्टि के नियमों के विपरीत हस्त-मैथुन, गुदा-मैथुन और अयोनि-मैथुन प्रभृति की बहुत चाल हो गई है। इन कुकर्मों के कारण से ही, आज प्रायः पच्चीस फीसदी भारतवासी बल-वीर्यहीन नपुंसक हो रहे हैं। प्रायः ९० फीसदी भारतवासी प्रमेह राक्षस के पंजे में फंसे हुए अपनी ज़िन्दगी के दिन पूरे कर रहे हैं। बहुत क्या इन सृष्टि-नियम-विरुद्ध सत्यानाशी चालों ने इस देश को बिल्कुल बेकार कर दिया है। नीचे हम केवल हस्त-मैथुन या हथरस के सम्बन्ध में दो-चार बातें कहना चाहते हैं। पाठक देखें कि उससे क्या-क्या हानियाँ होती हैं।

सृष्टि नियमों के विपरीत–कानून कुदरत के खिलाफ़ अथवा नेचर (Nature) के कायदों के विरुद्ध, आनन्ददायक असर पैदा करने के लिए मज़ा उठाने के लिए, बेवकूफ और नादान लोग नीचों की सुहबत में पड़ कर, शिश्न या लिंगेन्द्रिय को हाथ से पकड़ कर, हिलाते या रगड़ते हैं, उससे थोड़ी देर में एक प्रकार का आनन्द-सा आ कर वीर्य निकल जाता है इसी को ‘हस्तमैथुन’ या ‘हथरस’ कहते हैं। अँग्रेजी में इसे मास्टरबेशन, सेल्फ-पौल्यूशन, डैथ डीलिंग, हैल्थ डिस्ट्रॉइंग प्रभृति कहते हैं। इस सत्यानाशी क्रिया के करने वालों का शरीर कमजोर हो जाता है, चेहरे की रौनक मारी जाती है और मिज़ाज चिड़चिड़ा हो जाता है, सूरत-शक्ल बिगड़ जाती है, आँखें बैठ जाती हैं, मुँह लम्बा-सा हो जाता है और दृष्टि नीचे की ओर रहती है। इस कर्म के

करने वाला सदा चिन्तित और भयभीत-सा रहता है। उसकी छाती कमजोर हो जाती है, दिल और दिमाग में ताकत नहीं रहती, नींद कम आती है, जरा-सी बात से घबरा उठता है, रात को बुरे-बुरे स्वप्न आते हैं और हाथ-पैर शीतल रहते हैं।

यह तो पहले दर्जे की बात है। अगर इस समय भी यह बुरी आदत नहीं छोड़ी जाती, तो नसें खिंचने और तनने तथा सुकड़ने लगती हैं। पीछे, मृगी या उन्माद आदि मानसिक रोग हो जाते हैं। इनके अलावा स्मरण-शक्ति या याददाश्त कम हो जाती है, बातें याद नहीं रहती, शरीर में तेजी और फुर्ती नहीं रहती, काम-धन्धे को दिल नहीं चाहता, उत्साह नहीं होता, मन चंचल रहता है, बात-बात में वहम होने लगता है, दिमागी काम तो हो ही नहीं सकते, पेशाब करने की इच्छा बारम्बार होती है और पेशाब के समय कुछ दर्द भी होता है, लिंग का मुँह लाल-सा हो जाता है, बारम्बार वीर्य गिरता है और पानी की तरह गिरता रहता है, स्वप्नदोष होते हैं, फोतों में भारीपन-सा जान पड़ता है।

इसके बाद धातु-सम्बन्धी और भी अनेक भयंकर रोग हो जाते हैं। इस कुटेव में फंसने वाले जवानी में ही बूढ़े हो जाते हैं। उठते हुए लड़कों की बढ़वार रुक जाती है, शरीर की वृद्धि और विकास में रुकावट हो जाती है, आँखें बैठ जाती हैं, उनके इर्द-गिर्द काले चक्कर से बन जाते हैं, नज़र कमजोर हो जाती है, बाल गिर जाते हैं, गंज हो जाती है, पीठ के बाँसे और कमर में दर्द होने लगता है और बिना सहारे बैठा नहीं जाता इत्यादि।

इन बुराइयों के सिवा जननेन्द्रिय या लिंगेन्द्रिय निर्बल हो जाती है, उसकी सिधाई नष्ट हो जाती है, बाँकपन या टेढ़ापन आ जाता है, शिथिलता या ढीलापन हो जाता है तथा स्त्री सहवास की इच्छा नहीं होती। होती भी है, तो शीघ्र ही शिथिलता हो जाती है, अथवा शीघ्र ही वीर्यपात हो जाता है। कहाँ तक लिखें, इस एक कुचाल में अनन्त दोष हैं।

नामर्दी के जितने मुख्य-मुख्य कारण हैं, उनमें हथरस और गुदा-मैथुन सर्वोपरि हैं। इन, या ऐसी ही और कुटेवों के कारण, आज भारत के लाखों घर सन्तान-हीन हो गये हैं, अतः हम इस अध्याय में ‘क्लीवता’, ‘नामर्दी’ या ‘नपुंसकत्व’ और ‘धातुरोग’ के निदान और चिकित्सा खूब समझा-समझा कर विस्तार से लिखते हैं। आशा है, हमारे भारतीय भाई, हमारे इस परिश्रम से लाभान्वित हो कर, हमारी मिहनत को सफल करेंगे।

नपुंसकता दूर करने वाले चमत्कारी नुस्खे / इलाज :

१) में रात्रि में सोने से पूर्व 250 ग्राम मिश्री मिले हुए गरम दूध के साथ 5 ग्राम तुलसी के बीज का चूर्ण खाने से 2 सप्ताह में ही नपुंसकता दूर होती है । खटाई का परहेज करें ।

२) रात्रि में सोने से पूर्व 10 ग्राम शुद्ध शहद में 20 ग्राम कुलीजन का चूर्ण मिलाकर चाटें व ऊपर से 250 ग्राम गाय का दूध पीने से एक माह में ही नपुंसकता दूर होकर बल वीर्य -शक्ति बढ़ती है ।

३) प्रतिदिन सुबह-शाम 10 ग्राम गुड़ में बहेड़े का चूर्ण मिलाकर खाने से दो सप्ताह में ही नपुंसकता दूर होकर बल वीर्य -शक्ति बढ़ती है । खटाई व चावल का परहेज करें ।

४) 10 ग्राम शुद्ध देशी घी में 5 ग्राम सूखी गिलोय का चूर्ण मिलाकर खाने से 10-15 दिन में ही नपुंसकता दूर होकर बल वीर्य -शक्ति बढ़ती है ।

५) 50 ग्राम मिश्री और 50 ग्राम पीपल दोनों को बारीक पीसकर काँच की साफ शीशी में भरकर रख लें । रात्रि में सोने से पूर्व 5 ग्राम चूर्ण को गाय के दूध के साथ सेवन करने से एक माह में ही नपुंसकता दूर होकर बल वीर्य -शक्ति में अपार वृद्धि होती है ।

६) 20 ग्राम महुए के फूल 300 ग्राम गाय के दूध में डालकर खूब उबालें । जब दूध 200 ग्राम शेष रह जाये तो इसे उतारकर व छानकर हल्का गर्म पीने से 15-20 दिन में ही नपुंसकता दूर होकर बल वीर्य -शक्ति में वृद्धि होती है ।

७) 10 ग्राम शहद में 10 ग्राम प्याज का रस मिलाकर चाटने से एक माह में ही नपुंसकता दूर होकर बल-वीर्य में वृद्धि होती है ।

८) 10 ग्राम सोंठ 250 ग्राम दूध में उबालकर 40 दिन तक पीने से नपुंसकता दूर होती है ।

९) 10 ग्राम शतावर 400 ग्राम दूध में डालकर खूब उबालें । जब दूध 300 ग्राम शेष रह जाये तो इसे उतारकर मिश्री मिलाकर हल्का गरम पी लें । इस प्रयोग को एक माह तक करने से नपुंसकता दूर होकर बल-वीर्य की वृद्धि होती है ।

१०) 100 ग्राम विधारा और 200 ग्राम असगंध दोनों को मिलाकर बिल्कुल महीन पीसकर किसी काँच की साफ शीशी में भरकर रख लें । रात्रि में सोने से पूर्व 5 ग्राम चूर्ण 250 ग्राम गाय के दूध के साथ सेवन करने से एक माह में ही नपुंसकता दूर होती है। खटाई व चावल का परहेज रखें ।

११) शुद्ध शहद 5 ग्राम, सफेद प्याज का रस 10 ग्राम, शुद्ध देशी घी 2 ग्राम और अदरक का रस 5 ग्राम-इन सबको मिलाकर 45 दिन तक नित्य सेवन करें व स्त्री सहवास से दूर रहें । यह अद्भुत नुस्खा है । इसका सेवन करने से पुरुष वीर्यवान और बलवान हो जाता है ।

और पढ़े –
वीर्य शोधन वटी के फायदे और नुकसान
हस्तमैथुन से आई कमजोरी का इलाज
स्वप्नदोष से छुटकारा देंगे यह 11 जबरदस्त उपाय

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न : FAQ (Frequently Asked Questions)

प्रश्न – नपुसंकता का मतलब ?

उत्तर – नपुंसकता शब्द ‘पुंस्’ से बना है जिसका अर्थ होता है पुरुष यानी मर्द । इसी पुंस् से ‘पुंस्त्वम्’ यानी पुंस्त्व शब्द बना है जिसका अर्थ होता है पौरुष यानी मर्दानगी। जिस मनुष्य में पुरुष होते हुए भी पौरुष बल न हो, मर्द होते हुए भी मर्दागनी न हो उसे हिन्दी भाषा में नपुंसक और उर्दू में नामर्द कहा जाता है। एक पुरुष यानी मर्द में जो जो गुण और विशेषताएं होती हैं वे यदि न हों तो ऐसे पुरुष को नपुंसक कहा जाएगा। यौन विषय में, युवा पुरुष में स्त्री सहवास यानी मैथुन करने की क्षमता हो तो वह इस क्षेत्र में मर्द माना जाएगा और यदि यह क्षमता न हो, या कम हो, तो उसे नपुंसक माना जाएगा। ‘क्लीबः स्यात्सुरताशक्तस्तद्भावः क्लै ब्यमुच्यते’ (भाव प्रकाश-उत्तर खण्ड) के अनुसार जो पुरुष मैथुन करने में असमर्थ हो उसे क्लीब या नपुंसक कहते हैं और नपुंसक होने को नपुंसकता कहते हैं।

प्रश्न – शीघ्र पतन किसे कहते हैं ?

उत्तर – शीघ्र गिर जाने को शीघ्रपतन कहते हैं। सहवास के मामले में यह शब्द, वीर्य के स्खलन के लिए, प्रयोग किया जाता है। पुरुष की इच्छा के विरुद्ध उसका वीर्य अचानक स्खलित हो जाए, स्त्रीसहवास करते हुए मैथुन शुरू करते ही वीर्यपात हो जाए और पुरुष रोकना चाह कर भी वीर्यपात होना रोक न सके, इसे शीघ्रपतन होना कहते हैं। इस व्याधि का सम्बन्ध स्त्री से नहीं होता, पुरुष से ही होता है और यह व्याधि सिर्फ़ पुरुष को ही होती है।

प्रश्न – वाजीकरण किसे कहते हैं ?

उत्तर- वाजी कहते हैं घोड़े को। घोड़ा हमारे यहां साहस, शक्ति और फुर्ती का प्रतीक माना जाता है इसीलिए मोटर या इंजिन की शक्ति को अश्व शक्ति से नापा जाता है कि इतने हार्स पावर का इंजिन या मोटर है। जो पदार्थ या आयुर्वेदिक नुस्खा, पुरुष में घोड़े की तरह पौरुष शक्ति भर दे या पैदा कर दे उस पदार्थ को वाजीकारक कहते हैं यानी बल, साहस और चुस्ती फुर्ती में उस मनुष्य को घोड़े की तरह फीला और शक्तिशाली बनाना और यौन शक्ति बढ़ाना वाजीकरण कहलाता है।

प्रश्न – स्तम्भन शक्ति किसे कहते हैं ?

उत्तर – किसी चीज़ का रुक जाना, रुका रहना, ठहर जाना या ठहरा हुआ रहना और इच्छा के अनुसार वह चीज़ रुकी रहे, ठहरी हई रहे तो इसे स्तम्भन होना कहते हैं। यौन विषय में सहवास क्रिया करते समय जितनी देर तक पुरुष का वीर्यपात नहीं होता उतनी देर की रुकावट को स्तम्भन होना कहते हैं। रुकावट को प्रायः किसी भी क्षेत्र में अच्छा नहीं माना जाता और उसे दूर करने की भरपूर कोशिश करके रुकावट को हटा दिया जाता है जैसे टीवी पर चलते कार्यक्रम में रुकावट आ जाती है तो लिखा हआ आ जाता है कि ‘रुकावट के लिए खेद है’ पर यौन विषय के क्षेत्र में रुकावट का भारी महत्व है। वीर्यपात में रुकावट होना खेद की बात नहीं होती बल्कि सन्तुष्टि की बात होती है। इस रुकावट की क्षमता को ही स्तम्भन शक्ति (Retention power) कहते हैं।

प्रश्न – वृष्य और शुक्रल किसे कहते हैं?

उत्तर- जो पदार्थ वीर्यवर्द्धक और पौष्टिक हो उसे ‘वृष्य’ कहते हैं जैसे उड़द, कौंच के बीज । जिस पदार्थ के सेवन से शुक्र की वृद्धि होती हो, उसे शुक्रल कहते हैं जैसे असगन्ध, सफ़ेद मुसली।

प्रश्न – वीर्य शरीर में कहां रहता है ?

उत्तर – वीर्य शरीर में किसी विशेष जगह पर नहीं रहता बल्कि जब पुरुष को कामोत्तेजना होती है तब तीन ग्रन्थियों से स्राव निकलना शुरू होता है और शुक्राशय (Seminal vesicle) में यह स्राव इकट्ठा होने लगता है। इस मिश्रण को ही वीर्य कहते हैं। इन ग्रन्थियों के नाम हैं- (1) पौरुष ग्रन्थि (Prostate gland) (2) मूत्र प्रसेकीय ग्रन्थि (Bulbourethral gland) और स्वयं (3) शुक्राशय (Seminal vesicle).
आयुर्वेद ने भी ऐसा ही कहा है –

यथा पयसि सर्पिस्तु गूढश्चक्षो रसोयथा ।
एवं हि सकले काये शुक्रं तिष्ठति देहिनाम् ।।
– भाव प्रकाश 3-200

अर्थात् – जिस प्रकार दूध में घी और गन्ने में रस छिपा रहता है उसी भांति प्राणियों के सम्पूर्ण शरीर के अन्दर शुक्र भी व्याप्त रह कर छिपा रहता है।

यही बात चरक संहिता (शारीर स्थान) में कही है-

सप्तमी शुक्रधरा या सर्व प्राणिनां सर्व शरीर व्यापिनी

यानी (सात कलाओं में से) सातवीं कला शुक्रधरा कला है जो सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त रहती है।
दोनों प्रमाणों से यही सिद्ध होता है कि शरीर में वीर्य किसी विशेष स्थान पर नहीं रहता बल्कि जैसे दूध में घी और गन्ने में रस सर्वत्र व्याप्त रहता है वैसे ही शुक्र (वीर्य), शुक्रधरा कला के रूप में सारे शरीर में व्याप्त रहता है। जब पुरुष कामुक विचार और क्रीड़ा करता है तब यौनांग जाग्रत और उस्थित होता है और तब ‘शक्रं प्रच्यवते स्थानाज्जलमाात पटादिव’ (भाव प्रकाश) के अनुसार शुक्र (वीर्य) अपने स्थान (शुक्राशय) से चल कर शुक्र स्खलन नलिका (Ejaculary duct) से होता हुआ शिश्न से बाहर निकल जाता है।

जब तक कामुक विचार और कामुक क्रीड़ा नहीं की जाती, तब तक वीर्य का स्राव ही नहीं होता और शुक्राशय खाली पड़ा रहता है। यही सिद्धान्त पश्चिमी शरीर विज्ञान भी प्रतिपादित करता है।

प्रश्न – शुक्र स्तम्भन क्या होता है और कैसे होता है ?

उत्तर – यौन क्रीड़ा करते समय बहुत देर तक वीर्य पात न होने को शुक्र स्तम्भन कहते हैं। यह स्थिति शीघ्रपतन के बिल्कुल विपरीत है क्योंकि सहवास (यौन-क्रीडा) शुरू करते ही या करने से पहले या कामुक विचार करने मात्र से वीर्य स्खलित हो जाने को शीघ्रपतन कहते हैं। शुक्र स्तम्भन दो तरह से होता है। जो पुरुष बचपन से ही चरित्रवान रहते हैं, यौन क्रीड़ा करना तो दूर, उसका विचार तक नहीं करते, अच्छा पौष्टिक आहार-विहार करते है, व्यायाम या खेल कूद करके जिन्होंने अपने शरीर को बलवान बनाया है उन युवकों को प्राकृतिक रूप से ही शुक्र स्तम्भन होता है। दूसरा उपाय आयुर्वेद के श्रेष्ठ वाजीकारक योग और स्तम्भनकारी द्रव्यों का सेवन करना जैसे वीर्यस्तम्भन वटी नामक योग और जायफल, जावित्री, बड़ का दूध, भांग, केसर या खसखस आदि द्रव्य स्तम्भन करते हैं। इस दूसरे उपाय की अपेक्षा पहला प्राकृतिक उपाय अच्छा भी है और टिकाऊ भी।

प्रश्न – बांझपन का ज़िम्मेदार कौन होता है, पत्नी या पति?

उत्तर- दोनों में से कोई भी ज़िम्मेदार हो सकता है। पत्नी के गर्भाशय में कोई विकृति हो, फेलोपियन ट्यूब बन्द हो, अन्दर कोई सिस्ट या ट्यूमर हो, ओवूलेशन न होता हो आदि कारणों से स्त्री बांझ हो जाती है। यदि पुरुष के वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या, आवश्यकता से कम हो, जिसे ओलिगोस्पर्मिआ (Oligospermia) कहते हैं या शुक्राणु क़तई न हों जिसे अज़ोस्पर्मिआ(Azoospermia) कहते हैं तो ऐसा पुरुष गर्भ स्थापित नहीं कर सकता इसलिए वह भी बांझ होता है। इस तरह बांझपन के लिए सिर्फ़ स्त्री ही नहीं, पति भी ज़िम्मेदार होता है।

Share to...