नाड़ीशोधन प्राणायाम की विधि व इसके 8 जबरदस्त फायदे | Nadi Shodhan pranayama Steps and Health Benefits

Last Updated on March 31, 2023 by admin

नाड़ीशोधन प्राणायाम : Nadi Shodhan pranayama in Hindi

नाड़ीशोधन प्राणायाम(nadi sodhana ) के अभ्यास का पहला कदम है जो प्राणायाम की उच्च साधना का मार्ग बनाता है। इस प्राणायाम को किसी आसन के बाद ही करना चाहिए। आइये जाने nadi suddhi pranayama(anulom vilom pranayama ) के लाभ

नाड़ीशोधन प्राणायाम के फायदे : Nadi Shodhan pranayama ke Fayde (Benefits) in hindi

  • नाड़ीशोधन प्राणायाम से मानसिक तनाव दूर होता है।
  • यह आलस्य को दूर करता, प्राणशक्ति और मन की प्रसन्नता को बढ़ाता है।
  • नाड़ीशोधन प्राणायाम से शरीर की सभी सूक्ष्म कोशिकाओं की रुकावट दूर होती है तथा इसके खत्म होने से इड़ा और पिंगला नाड़ियों में प्राण का संचार समान होता है।
  • गलत भोजन करने या किसी अन्य कारणों के द्वारा शरीर में उत्पन्न होने वाले विषैले अंश दूर होते हैं जिससे रक्त संचार प्रणाली (खून के बहाव) और स्नायुविक प्रणाली साफ होती है।
  • इस क्रिया में स्वच्छ वायु शरीर में जाने से शरीर स्वस्थ रहता है।
  • इससे मस्तिष्क के कोषों (कोशिका) के शुद्ध होने से मस्तिष्क की कार्यशक्ति बढ़ती है।
  • इस क्रिया से शरीर की तीन मुख्य नाड़ियां इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना शुद्ध व साफ होती हैं और शरीर के अनेक रोग दूर होते हैं।
  • नाड़ीशोधन प्राणायाम फेफड़ों की खराबी दूर करता है तथा चक्कर आदि की शिकायतों को समाप्त करता है।

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नाड़ीशोधन प्राणायाम की विधि : Nadi Shodhan pranayama Steps in Hindi

  1. नाड़ीशोधन प्राणायाम का अभ्यास सूर्योदय से पहले करना चाहिए। इसका अभ्यास साफ, एकान्त व हवादार स्थान पर बैठ कर करें।
  2. इसके अभ्यास के लिए पहले पद्मासन या सुखासन की स्थिति में बैठ जाएं। मन को एकाग्र करें अर्थात मन को शांत और स्थिर रखें।
  3.  इसके बाद बाएं हाथ को दाएं घुटनें के नीचे रखें और दाएं हाथ के अंगूठे को नाक के दाएं छिद्र के पास रखें। अब शरीर को सीधा करके सिर, गर्दन व रीढ़ की हड्डी को तानकर रखें।
  4. नाक के दाहिने छिद्र को दाहिने हाथ के अंगूठे से बंद करके बाएं छिद्र से धीरे-धीरे गहरी सांस लें। फिर नाक के बाएं छिद्र को बाकी अंगुलियों से बंद करके नाक के दाएं छिद्र को खोलकर धीरे-धीरे सांस को बाहर छोड़ें।
  5. anulom vilom pranayamaइसके बाद फिर नाक के दाएं छिद्र से ही गहरी सांस लें और नाक के दाएं छिद्र को बंद करके बाएं छिद्र से सांस को बाहर छोड़ें। इस तरह दाएं से सांस लेकर बाएं से छोड़ें और फिर बाएं से सांस लेकर दाएं से छोड़ें। इस तरह नाड़ीशोधन का एक चक्र पूरा हो जाएगा। इस क्रिया को 10 से 15 बार करें तथा प्रतिदिन 1-1 चक्र बढ़ाते हुए इसे 25 बार तक इसका अभ्यास करें।
  6. नाड़ीशोधन की इस क्रिया को सफलतापूर्वक करने के बाद कुम्भक क्रिया करने का भी अभ्यास करें।
  7. कुम्भक क्रिया में सांस को अंदर और बाहर रोककर रखा जाता है। इस क्रिया में नाक के बाएं छिद्र से वायु को अंदर खींचें और सांस को जितनी देर तक अंदर रोककर रखना सम्भव हो रोककर रखें। फिर बाएं छिद्र को बंद करके दाएं छिद्र से वायु को बाहर छोड़ें और तब बाहर ही सांस को जितनी देर तक रोककर रखना सम्भव हो रखें।
  8. फिर दाएं छिद्र से ही वायु को अंदर खींचे और दाएं छिद्र को बंद कर सांस को रोककर रखें। फिर बाएं छिद्र को खोलकर सांस बाहर निकाल दें और जितनी देर तक सांस को रोककर रखना सम्भव हो रखें। फिर बाएं छिद्र से ही सांस को अंदर खींचे और जितनी देर तक रोककर रखना सम्भव हो, रोककर रखें। फिर बाएं को बंद करके दाएं छिद्र से वायु को बाहर छोड़ें।

विशेष :

  • इस प्राणायाम के अभ्यास के समय सांस लेने में जितना समय लगे, उससे अधिक समय सांस छोड़ने में लगना चाहिए।
  • सांस लेते और छोड़ते समय सांस की गति इतनी धीरे होनी चाहिए कि स्वयं को भी सांस लेने की आवाज सुनाई न दें।
  • इस क्रिया को 1 महीने तक करने के बाद आंतरिक और बाहरी कुम्भक करें।

नाड़ीशोधन प्राणायाम करने में सावधानीयां :

  1. उच्च रक्तचाप के रोगी को नाड़ीशोधन का अभ्यास नहीं करना चाहिए। रक्तचाप के समाप्त होने पर कुम्भक का अभ्यास कर सकते हैं।
  2. अभ्यास के अंत में गहरी सांस लेकर ही अभ्यास को खत्म करना चाहिए।
  3. इसका अभ्यास पेड़, खुले मैदान अथवा समुद्र आदि स्थानों पर न करें तथा अभ्यास के समय शरीर खुला न रखें।
  4. इस क्रिया में जब सांस अनियमित हो जाए तो अभ्यास को रोककर तथा गहरी सांस लेकर कुछ देर आराम करें।
  5. जब अंतरिक कुम्भक का अभ्यास हो जाए, तब बाहरी कुम्भक का अभ्यास करें।

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