माहवारी में अधिक रक्‍तस्राव (अत्यार्तव) का आयुर्वेदिक उपचार

Last Updated on July 22, 2019 by admin

माहवारी में अधिक रक्‍तस्राव के प्रमुख कारण :

मासिक स्राव में अधिकता भी रोग सूचक है । स्राव की अधिकता से शरीर में दुर्बलता आ जाती है, सिर दर्द, कटि में दर्द, योनि शूल आदि उपसर्गों के साथ भी इसकी व्याप्ति देखी गई है। इसके अनेक कारण हो सकते हैं –

• किसी रोग विशेष के कारण गर्भाशय पर प्रभाव पड़ने से अत्यार्तव की उत्पत्ति, किन्तु कभी- कभी बाद में नष्टार्तव या कष्टार्तव के रूप में परिवर्तित हो जाना ।
• ऐसा थाइराइड (गलग्रन्थि) की क्रिया में गड़बड़ी से भी सम्भव है।
• उष्ण जलवायु से भी अत्यार्तव की प्रवृत्ति हो सकती है । ठण्डे प्रदेश से गर्म प्रदेश में
जाने से भी इसका होना सम्भव है।
• गर्भाशय के भीतरी झिल्ली में कोई गड़बड़ी – उसमें किसी प्रकार का अर्बुद, क्षय, शोथ आदि ।
• आधुनिक मतानुसार इस प्रकार के उपद्रव हार्मोनों के असन्तुलन से भी हो सकते है।
• मनोविकार – शोक, चिन्ता, भय, द्वेष उत्तेजना आदि दुष्प्रभाव पड़ने से अत्यार्तव का होना सम्भव है।
• अधिक प्रसवों के पश्चात् गर्भाशय पेशी में विद्यमान लचक की कमी हो जाती है, क्योंकि एलास्टिक तन्तुओं में वृद्धि हो जाती है तो संकुचन- शक्ति में कमी आने से स्राव अधिक होने लगता है।
• युवावस्था के आरम्भिक दिनों में किसी किसी बालिका के अत्यार्तव की प्रवृत्ति होती है। किन्तु वह प्रवृत्ति स्थायी नहीं होती । एकाध मास में स्वतः ही ठीक हो जाती है । इसलिये इस अवस्था में किसी प्रकार के औषधोपचार की आवश्यकता नहीं होती।

माहवारी में अधिक रक्त आना रोकने के उपाय :

अत्यार्तव रोग की ठीक चिकित्सा तभी हो पाती है, जबकि उसके कारण की जानकारी मिल जाय । क्योंकि कारण का निवारण रोग निवृत्ति का मुख्य उपाय है । वैसा न हो सकने की स्थिति में अनुमान से काम लिया जाता है। साथ ही यह व्यवस्था करें –
❉ रोगिणी को कार्य न करने दें, उसे पूर्ण विश्राम की प्रेरणा दें। पलंग का पायताना ऊँचा और सिराहना नीचा रखना चाहिये ।
❉रोगिणी को दुश्चिन्ताओं से बचाना चाहिये । क्रोध, शोक, मोह आदि से दूर, शान्त रखने का यत्न करें ।

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निम्न औषधोपचार शीघ्र लाभकारी हो सकते हैं –

1-सरफका की जड़ का कपड़छन चूर्ण 1 ग्राम की मात्रा में चावलों के पानी के साथ देने से अधिक रजःस्राव का शमन होता है ।
अथवा –सोनागेरू, मुलहठी, गूलर, खस, चन्दन, चौलाई और अडूसा का फूल समान भाग का चूर्ण 1 या डेढ़ ग्राम की मात्रा में वासा पानक या वासावलेह के साथ देना चाहिये । इससे भी रजःस्राव की कमी हो जाती है ।

2-अत्यार्तव शामक योग –

नागकेशर 24 ग्राम, मुक्ता भस्म, संगजराहत भस्म और नागभस्म 3-3 ग्राम, तीनों को। खरल में घोट कर एक जीव कर लें । इसे 1-1 ग्राम की मात्रा में आवश्यक अन्तर से, निम्न द्राव के साथ सेवन करावे –
30 ग्राम जावित्री को महीन पीस कर, गुलाबजल और केवड़ा जल, प्रत्येक 100 मिग्रा. में डालें तथा चूर्णित मिश्री अथवा ‘श्वेत शर्करा 100 ग्राम उसी में मिला कर, बोतल पर मजबूत डाट लगाकर 10-15 दिन रखी रहने दें, तत्पश्चात् छान कर रख लें।
इस प्रयोग से रोगिणी उद्वेग- रहित शान्त रहेगी, निद्रा भी आ सकती है, और रजःस्राव भी रुकेगा ।

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3-महिला संजीवनी वटी –

चन्द्रपुटी प्रवाल भस्म 50 ग्राम, प्रवाल भस्म, वंग भस्म, कान्तलौह और रजत भस्म 30-30 ग्राम, सहस्रपुटी अभ्रक भस्म और मुक्ता भस्म 20-20 ग्राम, षड्गुण गन्धक जारित मकरध्वज 1 ग्राम, स्वर्णमाक्षिक भस्म, संगजराहत भस्म और गिलोय सत 2-2 ग्राम लेकर खरल में घोटें । फिर – लाल चन्दन, मंजीठ, दारुहल्दी, काली सारिवा, बरगद की जटा, अशोक की छाल और वासा की छाल, प्रत्येक 100 ग्राम, इन्द्रजौ और छोटी इलायची के बीज प्रत्येक 50 ग्राम तथा वंशलोचन 20 ग्राम लेकर कूट- छान लें और भस्मों का मिश्रण भी इसी में मिलावें । तदुपरान्त क्रमशः खिरेंटी, सेमल की छाल और गूलर की छाल के क्वाथ में कम से कम 3-3 दिन खरल करके 1 ग्राम की गोलियाँ बनाकर छाया में सुखावें ।
मात्रा –1 से 2 सेर तक बलाबल के अनुसार मिश्रीयुक्त गोदुग्ध के साथ प्रातः- सायं सेवन करावें ।
इसके सेवन से अधिक रजःस्रावे, रक्तप्रदर, श्वेत प्रदर, रक्तस्राव, गर्भाशय- प्रदाह तथा प्रसवोपरान्त गर्भाशय से अतिस्राव या गर्भाशय शैथिल्य में अभूतपूर्व लाभ होता है। नारियों के सभी रोगों में हितकर तथा बल, वर्ण और पुष्टि को बढ़ाने वाली है ।

4-अधिक स्राव पर प्रभावकारी योग –

गोदन्ती हरताल भस्म 50 ग्राम, सत गिलोय 25 ग्राम, फूलाई हुई फिटकरी, शुद्ध सोना गेरू और वासा घन- सत्व प्रत्येक 15 ग्राम ले कर ठीक प्रकार से खरल करके रखें ।।
मात्रा –1 से 3 ग्राम तक धारोष्ण गोदुग्ध के साथ सेवन करावें । अथवा रोगिणी को अनुकुल प्रतीत हो तो केले की जड़ के स्वरस के साथ दें ।
इससे स्राव 3 दिन में ठीक हो जाता है । तब दवा बन्द कर देनी चाहिए। यदि स्राव पुनः आरम्भ हो जाय तो पुनः दे दें ।

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5-अधिक रजःस्राव रसायन –

प्रवाल पिष्टी 10 ग्राम, लौह भस्म 2 ग्राम, मुक्ताशुक्ति भस्म 1 ग्राम, वासाघनसत्य, मुलहठी और श्वेत चन्दन 3-3 ग्राम, खरल करके रखें ।
मात्रा – 1-1 ग्राम दिन में 3-4 बार तक अनार के स्वरस में शहद मिला कर, अथवा शर्बत अनार के साथ दें। इससे अत्यार्तव का शमन होता है ।
औषधिक्रम में भोजनोपरान्त 20-25 मि.लि. तक अशोकारिष्ट अथवा वासारिष्ट देना अधिक हितकर रहता है ।
सरफका की जड़ का चूर्ण करके चावलों के पानी के साथ सेवन करावे अथवा सरफोका की जड़ चावलों के पानी में पीस कर पिलावें । अति रजःस्राव या रक्तस्राव इससे रुक जाता।

नोट :- ऊपर बताये गए उपाय और नुस्खे आपकी जानकारी के लिए है। कोई भी उपाय और दवा प्रयोग करने से पहले आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह जरुर ले और उपचार का तरीका विस्तार में जाने।

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