हम बीमार क्यों पड़ते हैं? : Why Do We Get Sick?

Last Updated on February 5, 2022 by admin

सामान्यतः बीमार होने के कारणों को समझने के लिये इन्हें चार भागों में बाँटा जा सकता है और प्रयास करें तो हम इन कारणों को दूर भी कर सकते हैं, यथा

1. भोजन –

लगभग पचीस प्रतिशत रोग भोजनकी गड़बड़ीसे सम्बद्ध रहते हैं –

  • जरूरत से ज्यादा भोजन करना।
  • स्वादिष्ठ चीजोंको अधिक मात्रामें भोजन करना।
  • तला हुआ भोजन करना।
  • मिर्च-मसालोंका अधिक सेवन करना।
  • सलाद, फल, शाक-भाजीका कम व्यवहार करना।
  • चबा-चबाकर भोजनको ठीक से नहीं करना।
  • जल पीने की सही जानकारी का अभाव। जब जल नहीं पीना चाहिये, तब हम पीते हैं एवं जब पीना चाहिये, तब नहीं पीते ।( और पढ़े –भोजन करने के 33 जरुरी नियम )

2. व्यायाम –

इसी प्रकार पचीस प्रतिशत रोग रोजाना व्यायाम नहीं करने से हो जाते हैं –

  • प्रातः सूर्योदय से पूर्व उठकर तेज चलना एक अच्छा व्यायाम है।
  • योग के कुछ आसन हमें नियमित करने चाहिये ताकि स्वस्थ रह सकें।
  • व्यायाम एवं योगासन के पश्चात् थोड़ी देर शवासन करने से अनेक बीमारियाँ स्वतः ठीक हो जाती हैं। ( और पढ़े – आओ सीखें योग)

3. भावनाएँ –

भावनाओं और संकल्पों का स्वास्थ्य से सीधा सम्बन्ध है। अच्छा स्वास्थ्य सद्भावनाओं एवं सद्विचारों पर निर्भर करता है। क्रोध, ईर्ष्या, निन्दा, घृणा, भय एवं अहङ्कार जैसी नकारात्मक भावनाओं पर नियन्त्रण रखकर इनसे बचते हुए यदि रचनात्मक तथा सकारात्मक विचारों को हम अपनाएँ तो जीवन का सही अर्थों में आनन्द ले सकते हैं। ( और पढ़े –रोग शारीरिक नहीं मानसिक )

4. प्रारब्ध –

‘पूर्वजन्मकृतं पापं व्याधिरूपेण जायते‘- अर्थात् जन्मान्तरीय पापकर्मका व्याधिरूप से प्राकट्य होता है। सद्ग्रन्थ यह बताते हैं कि प्रारब्धरूप इस असत्-कर्मका विनाश भोग करने से होता है।

प्राकृतिक आपदाएँ, अनजाने रोग, वंशानुगत रोग, दुर्घटनाएँ एवं जीवनकी कुछ अनिवार्य घटनाएँ, जिन्हें हम रोक नहीं सकते; इन्हें भोगना ही पड़ता है, इनपर किसी का वश नहीं चलता। इन्हें तो धैर्यपूर्वक एवं हँसते-हँसते स्वीकार करना चाहिये।

इस तरह देखा जाय तो यदि भोजन, व्यायाम तथा भावनाओं को हम नियन्त्रित कर लें तो अधिकांश रोगों की रोकथाम हम स्वयं कर सकते हैं और ऐसा करना प्रायः पूरी तरहसे हमारे अधिकार-क्षेत्र में हैं। इन बातों की उपेक्षा ही वह कारण है कि हम बीमार हो जाते हैं |

अतः नियमित जीवनशैली को अपनाकर, अपने शरीर की ऊर्जा को बढ़ाकर, उसे सकारात्मक उपयोग में लाकर हम अपना जीवन सुखी बना सकते हैं।

तो आइये, आज ही संकल्प लें कि स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होकर हम इस आरोग्यमय चर्या को अपने दैनन्दिन जीवन में सही रूपसे अमल में लायेंगे। इस संकल्पशक्ति से हमारा यह जीवन सुखमय हो जायगा और हम साधना-पथमें सुगमता से अग्रसर हो सकेंगे।

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