हृदय रोग के लिए उपयोगी आसन और प्राणायाम | Yoga And Pranayam For Healthy Heart

Last Updated on July 22, 2019 by admin

जैसा कि हम अन्यत्र भी उल्लेख कर चुके हैं कि स्वास्थ्य के लिए योगासनों का बहुत महत्त्व है। यद्यपि हृदय से सम्बन्धित रोगों से ग्रस्त व्यक्ति के लिए व्यायाम साधारणतया वर्जित समझा जाता है किन्तु योगासन उस प्रकार के व्यायाम की श्रेणी में नहीं गिने जा सकते । तदपि इस बात पर भी विशेष ध्यान देना होगा कि सभी आसन भी हृदय के रोगी के लिए उपयुक्त नहीं हैं। हृदय रोगी के लिए साधारण आसनों का ही विधान किया गया है।

यहां हम कुछ आसनों के नाम तथा उनके लाभ का उल्लेख कर रहे हैं। ये आसन किस प्रकार किए जाते हैं। इसका प्रशिक्षण किसी योग्य प्रशिक्षक के निरीक्षण में लिया जाना चाहिए।

आसन का नाम जानकर और उसकी साधारण विधि जान लेने मात्र से ही जो लोग आसन करना आरम्भ कर देते हैं, वह शायद इतना लाभकारी नहीं होगा। न केवल इतना अपितु कभी-कभी वह हानिकारक भी सिद्ध हो सकता है। अत: योगासन करते समय इस ओर विशेष ध्यान देना नितान्त आवश्यक है।

सामान्यतया आसन करने का समय प्रात: काल का ही होता है। सांयकाल भी कुछ आसन किए जा सकते हैं किन्तु जिस प्रकार भोजनोपरांत व्यायाम नहीं करना चाहिए उसी प्रकार आसन भी भोजनोपरांत नहीं करने चाहिए। तदपि कुछ आसन ऐसे हैं जो भोजनोपरांत भी किए जा सकते
हैं। उनका कहीं यदि हृदय के सम्बन्ध में उल्लेख पाया गया से तो हम यथा-स्थान उनका वर्णन करेंगे।

हृदय के लिए लाभकारी कतिपय आसनों का विवरण निम्मोद्धत है। जैसा कि हम ऊपर कह आये हैं कि यहां पर हम केवल उन आसनों के लाभ का ही उल्लेख कर रहे हैं विधि का नहीं। आसनों की विधि जानने के लिये पेज पर जायेआओ सीखें योग
आइये जाने मजबूत दिल के लिए योग ।

हृदय रोग के लिए व्यायाम ( योग / आसन)

ताड़ासन-
यह आसन हृदय को बलवान बनाता है, जिससे हृदय रोग होने की संभावना नहीं रहती। इसके अतिरिक्त इससे स्फूर्ति और उत्साह आता है, आलस्य दूर होता है, पेट का भारीपन दूर होता है, बड़ी आयु में होने वाला कम्पन नहीं होता, फेफड़ों की शक्ति बढ़ती है।

त्रिकोणासन-
इससे शरीर के नाड़ी तन्त्र में चेतना जागृत होती है। हृदय सुदृढ़ बनता है। पेट की गैस निकल जाती है। पेट का मोटापा दूर होता है। शरीर सुडौल बनता है। | इसकी विशेषता यह है कि जो व्यक्ति इस आसन को खड़े होकर करने में असमर्थ हों वे इसको लेटकर भी कर सकते हैं।

पद्मासन-
हृदय और मन का गहन सम्बन्ध है। चंचल मन को स्थिर करने के लिए यह उत्तम साधन है। मानसिक कार्य करने वाले, गहन चिन्तन करने वाले, सभी के लिए यह समानरूपेण लाभकारी है। वात-पित्त कफ आदि सभी दोषों का शमन करता है। इससे हृदय को लाभ पहुंचता है।

भुजंगासन-
कोई-कोई इसको सर्पासन भी कहते हैं। सर्प और भुजंग पर्यायवाची शब्द हैं। घेरण्ड संहिता में इसके लाभों का उल्लेख करते हुए कहा गया है।
देहाग्निर्वर्द्धते नित्यं सर्वरोगविनाशनम् ।
जागर्ति भुजंगी देवी साधनात् भुजंगासनम् ।।
अर्थ- भुजंग-आसन के करने से जठराग्नि प्रदीप्त होती है, सब रोगों का नाश होता है और इसकी साधना से कुण्डलिनी जागृत होती है।
इसके अतिरिक्त भी इसके करने से अति श्रम के कारण होने वाली श्रान्ति दूर हो जाती है। भोजनोपरान्त होने वाली वायु पीड़ा का यह हरण करता है। कफ-पित्त वालों के लिए यह आसन लाभकारी है। इससे हृदय सबल होता है।

पवनमुक्तासन-
इससे पेट में भरने वाली वायु दूर होती है। पेट की चरबी घटती है। स्मरणशक्ति बढ़ती है। मस्तिष्क सम्बन्धी कार्य करने वाले यथा डाक्टर, वकील, प्राध्यापक, साहित्यकार, व्यापारी, विद्यार्थी अथवा हृदयरोगियों के लिए यह अत्यन्त लाभकारी आसन है।

योगमुद्रासन-
ऐसा माना जाता है कि यदि इस आसन को भली प्रकार कर लिया जाये तो इससे भी कुण्डलिनी जागृत होती है। पेट तथा आंतों के रोग दूर होते हैं। प्लीहा, यकृत और हृदय के लिए यह अत्यन्त लाभकारी है। मोटापा दूर करता है और मानसिक शक्ति की वृद्धि करता है।

धनुरासन-
यह उदर सम्बन्धी सभी विकारों के लिए उपयोगी है। मोटापा और चर्बी घटाता है। हृदय को सुदृढ़ करता है। जठराग्नि प्रदीप्त होती है। इसके करने पर रैक्टिक मसल्स में खिंचाव होने से पेट को बहुत लाभ होता है। अंतड़ियों में पाचनरस का संचार होने लगता है। इस आसन में भुजंगासन और शलभासन का समावेश होने से इन दोनों आसनों के सभी लाभ इससे प्राप्त होते हैं।

हृदयस्तम्भनासन-
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है यह हृदय के स्तम्भन के लिए है। इससे हृदय सुदृढ़ होता है। छाती, गर्दन और पीठ रोगों का इससे नाश होता है। जो व्यक्ति इस आसन को नियमित रूप से करता है उसकी हृदय गति कभी अवरुद्ध नहीं हो सकती।

खगासन-
इसके करने से सिर, ग्रीवा, कण्ठ, छाती और पेट के सब रोग नष्ट हो जाते हैं। पेट की गैस निकल जाती है। श्वास रोग दूर होता है। छती चैड़ी से जाती है और हृदय बलवान बनता है।

कोणासन-
यह आसन त्रिकोणासन की ही भांति लाभकारी है।

पर्वतासन-
इससे शरीर का ढीलापन दूर होता है, छाती का विकास होता है। रक्त की शुद्धि होती है। फेफड़ों के विकार दूर होते हैं, श्वास रोग में आराम देता है। हृदय को बलवान बनाता है।

वज्रासन-
इससे मन की चंचलता दूर होती है। रक्त संचार ठीक ढंग से होने लगता है, इस कारण यह हृदय के लिए लाभकारी है।
इस आसन को भोजन के आधा घण्टा बाद किया जा सकता है। इससे पेट की वायु का नाश होता है और पाचनशक्ति प्रबल होती है।

शयनद्विपादनासाग्रस्पर्शासन-
इस आसन से पीठ सुदृढ़ होती है, पेट हलका होता है, कटि पतली हो जाती है। शरीर स्वस्थ और हलकापन अनुभव करता है। विचार शुद्ध बनते हैं, बुद्धि प्रखर होती है और हृदय बलवान बनता है।

नाभि आसन-
पाचन शक्ति को बढ़ाता है। पेट के वायु विकार नष्ट करता है। इससे मस्तिष्क के रोगों को भी लाभ पहुंचता है। छाती बलवान होती है और हृदय को लाभ पहुंचाता है।

मत्स्यासन-
इस आसन से समस्त शरीर सुदृढ़ होता है, कण्ठ, छाती और पेट की व्याधियां दूर होती हैं, श्वासक्रिया सुधरती है। फेफड़ों का विकास होता है। पेट की चरबी घटती है। त्वचा रोगों को दूर करता है। हृदय के लिए लाभकारी है।

जानुशिरासन-
इस आसन के करने से तिल्ली, जिगर, खांसी दमा, साधारण ज्वर में लाभ होता है। पाचनशक्ति बढ़ती है। रक्त का संचार बढ़ता है। पेट की चरबी कम होती है, चमड़ी के रोग नहीं होते, वात और कफ का नाश होता है। सायटिका में लाभकारी है। हृदय के लिए उत्तम है।

उत्तानपादासन-
पेट के समस्त रोगों में लाभकारी हैं चरबी घटाता है। मस्तिष्क और आंखों की दुर्बलता को दूर करता है। श्वास और रक्त के विकारों का नाश करता है। पेट की गैस निकाल कर भूख बढ़ाता है। हृदय के लिए लाभकारी है।

शुतुरमुर्गासन-
यह हाथ पैरों को सुदृढ़ करता है, कमर के रोग दूर करता है, गठिया के लिए लाभकारी है, उदर सम्बन्धी रोगों में लाभकारी है और हृदय को बलवान बनाता है।

गोमुखासन-
इससे शरीर में गौ जैसी स्फूर्ति आती है। टांगों को सुदृढ़ करता है। गठियानाशक है। चित्त को शान्त करता है और हृदय को लाभ पहुंचाता है।

मण्डूकासन-
टांगों को शक्ति प्रदान करता है, गठिया दूर करता है, पेट के वायुविकार हरता है, पाचनशक्ति बढ़ाता है। शरीर को स्फूर्ति प्रदान करता है और हृदय को बलवान बनाता है।

योगासन-
इससे मन की चंचलता मिटती है, ध्यान लगाने में मन लगता है। आलस्य, प्रमाद और तन्द्रा हरता है। रक्त के रुके हुए प्रवाह में गति आती है। मस्तिष्क प्रफुल्लित होता है और हृदय को लाभ होता है।

नाभि-पीड़ासन-
यह आसन भी ‘नाभि-आसन’ की भांति पेट को साफ करके पाचन क्रिया को बढ़ाता है। पेट के वायु विकार में लाभकारी है। टांगें बलवान होती हैं और हृदय को लाभ पहुंचाता है।

पादहस्तासन-
कटि प्रदेश के रोग दूर होते हैं। रीढ़ की हड्डी को लचीला करता है, जिससे शरीर के अनेक रोग दूर हो जाते हैं, पेट हलका होता है, पाचन शक्ति बढ़ती है। हृदय को आराम पहुंचाता है।

सुप्तवज्रासन-
सुप्तवज्रासन में प्राणायाम करने से श्वास तथा दमे के रोग दूर होते हैं। पेट हलका होता है। छाती चौड़ी होती है, उदर रोगों में अत्यन्त लाभकारी सिद्ध होता है। हृदय को आराम पहुंचाता है।

हंसासन-
इस आसन से भुजाओं की मांसपेशियां बलवान होती हैं। चेहरा तेजस्वी बनता है, शरीर में स्फूर्ति आती है, भोजन शीघ्र पचता है और नाड़ी तन्त्र में विकार नहीं आने पाता। हृदय के लिए लाभकारी है।

स्वस्तिकासन-
पद्मासन की ही भांति यह भी उतना ही लाभकारी है। इसको अधिकाधिक समय तक किया जा सकता है। मन को शान्त और स्थिर करता है। मन की चंचलता दूर होती है। हृदय को आराम मिलता है।

सर्वांगासान-
यह जठराग्नि को प्रदीप्त करने वाला है। ढीली चमड़ी ठीक हो जाती है। बालों का श्वेत होकर झड़ना रुक जाता है। इसको मृत्यु को जीतने वाला आसन माना गया है।
शास्त्रकार का कथन है कि रसायनरूपी इस आसन के अभ्यास से शरीर के सामर्थ्य में वृद्धि होती है। तीनों दोषों का शमन होता है। वीर्य की वृद्धि होती है और अन्त:करण की शुद्धि होती है। मेधा-शक्ति बढ़ती है। चिर-यौवन की प्राप्ति होती है। आयुष्य बढ़ता है।
मानसिक श्रम करने वाले यथा वकील, डॉक्टर, प्राध्यापक, विद्यार्थी, व्यापारी एवं साहित्यकार आदि-आदि के लिये यह आसन अत्यन्त लाभकारी है। रक्त के दोषों को दूर करता है। दुर्बल को यह आसन सबल बनाता है।

ऊर्ध्व सर्वांगासन-
सर्वांगासन की ही भांति यह भी उतना ही उपयोगी और लाभकारी है। हृदय के लिये यह विशेष लाभकारी माना गया है।

तानासन-
इससे शरीर में रक्तसंचार में सुधार होता है और इसके साथ ही शिथिलीकरण से शरीर को जो लाभ होता है, वह इससे मिलता है। यह आसन अत्यन्त सरल होने से किसी भी रोग में हानिकारक कदापि नहीं है। हृदय के लिये अत्यन्त लाभकारी है।

शवासन-
यह एक प्रकार से समस्त शरीर के विश्राम की स्थिति है। आसनों में यह सबसे अन्त में किया जाता है। यह आसन जितना सरल है उतना ही प्रभावपूर्ण भी है। तानासन की ही भांति इससे सारे शरीर का शिथिलीकरण होता है। यह मन और शरीर दोनों को विश्रान्ति । प्रदान करता है।
शवासन करते समय मनुष्य को अपने मन को विचारों से मुक्त रखना चाहिए। अर्थात् वह स्वयं शव के समान बन जाये। शरीर के सभी अंगों को इस आसन में विराम दिया जाना आवश्यक है। यह स्वयं भी शरीर की श्रान्ति को दूर करता है। इससे हृदय को विश्राम मिलता है। हृदय के लिये यह अत्यन्त लाभकारी आसन है।

हृदय रोग के लिए लाभदायक प्राणायाम :

योगासनों की ही भांति प्राणायाम भी हृदय के लिये लाभकारी होता है। जिस प्रकार योग का प्रशिक्षण किसी सुविज्ञ से लिया जाना आवश्यक है उसी प्रकार प्राणायाम भी किसी सुविज्ञ से सीखना उत्तम होगा। नाक से हवा भरना और निकालना मात्र प्राणायाम नहीं होता। हृदय रोगी के लिये प्राणायाम लाभकारी होता है।

( और पढ़ेप्राणायाम के लाभ और इसके 15 आवश्यक नियम )

हठयोग प्रदीपिका तथा घेरण्ड संहिता आदि योग के ग्रन्थों में आठ प्रकार के प्राणायामों का वर्णन किया गया है, वे हैं-

सूर्यभेदन उज्जायी सीताकारी शीतली तथा ।
भस्त्रिका भ्रामरी मुच्छों प्लाविनीत्यद कुम्भकाः ।।
है. यो. प्र. 2-44

इन आठों प्राणायामों के लाभ क्रमश: निम्नोद्धृत हैं।

सूर्यभेदन-
इसके करने से शरीर में ऊष्णता आती है, पाचन शक्ति बढ़ती है। रक्त और श्वास की नाड़ियां शुद्ध होती हैं। शरीर में स्फूर्ति आती है। मस्तिष्क स्वच्छ बनता है। वात विकार नष्ट होते हैं, आन्नद की अनुभूति होती है। शारीरिक और मानसिक श्रान्ति दूर होती है। शीत ऋतु में लाभकारी है।

उज्जायी-
यह सरल-सा प्राणायाम बहुत ही लाभकारी होता है। इसको चलते-फिरते, उठते-बैठते, लिखते-पढ़ते अथवा लेटे हुए किसी भी समय कर सकते हैं। यह शरीर की ऊष्णता को शान्त करता है। जठराग्नि तीव्र होती है। पेट साफ रहता है। कफ आदि दोष दूर होते हैं। भूख बढ़ती है। शरीर कान्तिमान बनता है। ग्रीष्म-ऋतु में इसे अवश्य करना चाहिए। | शीतकारी-यह भी गर्मी के मौसम में बहुत लाभ पहुंचाता है। यह कुपित पित्त का शमन करता है, भूख बढ़ाता है। निद्रालाता है। आलस्य को दूर भगाकर शरीर में स्फूर्ति उत्पन्न करता है।

शीतली-
सब प्रकार के ज्वरों में इससे लाभ पहुंचता है। इससे पेट के रोग नष्ट होते हैं।

भस्त्रिका-
इससे जठराग्नि तीव्र होती है। वात-पित्त और कफ के लिये लाभकारी है। कण्ठ रोगों को दूर करता है। खांसी और दमा में लाभ पहुंचाता है। रक्त और श्वास की नसों को सुदृढ़ कर उनके विकार नष्ट करता है। हृदय को बलवान बनाता है।

भ्रामरी-
सिर का भारीपन दूर होता है। नाक साफ होकर श्वास क्रिया में सरलता होती है। चित्त की वृत्तियां स्थिर होती हैं और मन की चंचलता दूर होकर मन प्रफुल्लित रहता है। मूर्च्छा-मन की चंचलता दूर होकर मन एकाग्र होता है। रक्त श्वास तथा त्वचा के रोग दूर होते हैं। पेट के सभी रोग नष्ट हो जाते हैं। पाचन क्रिया में लाभ होता है। शरीर में शक्ति का संचार होता है।

प्लाविनी-
शरीर हलकापन अनुभव करता है। पेट साफ रहता है जिससे पाचन क्रिया सुधरती है। वायु विकार नष्ट होते हैं। पेट पतला और छाती चौड़ी हो जाती है। इसका भली प्रकार अभ्यास हो जाने पर मनुष्य अथाह जल में भी कमलपुष्प के समान तैर सकता है।

यदि हम इन आठों प्राणायामों के लाभों पर दृष्टिपात करें तो हम पायेंगे कि ये उन सब बाधाओं का शमन करते हैं जो हृदय के लिए हानिकारक होती हैं अथवा रोग उत्पन्न करती हैं। अतः हमने पृथक् यह न लिखकर कि यह हृदय रोग के लिये लाभकारी है, केवल यह लिखने का यत्न किया है कि इनसे कौन-कौन से रोग दूर होते हैं तथा इनसे क्या-क्या लाभ हैं।

विभिन्न प्रकार के हृदय रोगी को चाहिए कि वे किसी योग्य शिक्षक से इनकी शिक्षा ग्रहण करने के उपरान्त ही इनको अभ्यास करें।
यही स्थिति योगासनों की भी है। जैसा कि हम आरम्भ में ही संकेत कर आये हैं कि किसी भी योगासन को हृदय अथवा शरीर की किसी भी व्याधि के लिये लाभकारी जान अथवा पढ़कर सहसा स्वयमेव उसका अभ्यास आरम्भ नहीं कर देना चाहिए। इससे यदि कोई क्रिया विपरीत हो गई तो लाभ की अपेक्षा हानि की अधिक सम्भावना होती है।
कहा है : योगः कर्मसु कौशलम्। कर्म में कुशलता ही योग है। अत: इसमें कुशलता प्राप्त करने के लिये अधिकारी व्यक्ति से इसका प्रशिक्षण लेना आवश्यक है।

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