बिना दवा के हृदय रोग का चमत्कारी प्राकृतिक उपचार

Last Updated on February 23, 2024 by admin

हृदय रोग क्यों और कैसे :

“हृदयधमनी के रोग” शब्दावली से रोगविषयक संलक्षणों का एक समूह अभिप्रेत है, जो हृदय को पर्याप्त रक्त पहुँचाने में हृदयधमनियों की असफलता से पैदा होता है। इनमें हृदय शूल (एन्ज़ाइना ऐक्टोरिस), कोरोनीर श्रोम्बोसीस अथवा हार्ट अटेक और रोधगलन (इनफारक्शन) के बिना अचानक मृत्यु शामिल है। हाल के वर्षों में हृदयरोग की घटनाओं में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। पाश्चात्य देशों में दिल के दौरे की बीमारी जानलेवा बीमारियों में पहले क्रमांक पर है। भारत में यह बीमारी क्षयरोग और संक्रमण के बाद तीसरे क्रमांक पर है। यह बीमारी सभी आयु वर्ग के लोगों में और स्त्रीपुरुष दोनों में पाई जाती है। फिर भी यह स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों में ज्यादा सामान्य है, विशेष रूप से 40 से 60 वर्ष के पुरुषों में।

शरीर का सब से आवश्यक अंग हृदय, बंद मुट्ठी के समान आकार की पेशी है। हृदय अपना कार्य जन्म से पहले ही, गर्भ में ही शुरु कर देता है। उसका वज़न लगभग 300 ग्राम होता है। और वह प्रतिदिन संपूर्ण शरीर में लगभग 4300 गैलन रक्त पंप के समान पहुँचाता है और सभी अंगों को प्राणवायु और पोषक तत्वों की आपूर्ति भी करता है। वह प्रतिदिन 1,00,000 बार धड़कता है, और 60,000 मील से भी अधिक, छोटी रक्तवाहिनियों में लगातार रक्त पंप करता है। फिर, क्रम से हृदय को अपने पोषण के लिये रक्त की आवश्यकता होती है, जो हृदयधमनियों द्वारा पूरी की जाती है।धमनियों में वसायुक्त पदार्थ जमा होने के कारण उनके सिकुड़ने या सख़्त होने की वज़ह से, रक्तप्रवाह में रुकावट आती है। तब, हृदय को पर्याप्त प्राणवायु नहीं मिलता। इस स्थिति को हृदय का रक्तसंचार रोध अथवा एन्ज़ाइना पेक्टोरिस कहते हैं।

‘एन्जाइना पेक्टोरिस लेटिन शब्द है, जिसका अर्थ है, ‘छाती में दर्द। वास्तव में, यह स्थिति अधिक रक्त पाने के लिये हृदय की चीख़-पुकार है। इस हालत में व्यायाम या आवेश से छाती में तीव्र दर्द उठता है और इस प्रकार यह दर्द मरीज़ की शारीरिक प्रवृत्तियों को बाधित करता है। यह धीमा होने के लिये चेतावनी है और इसकी रोकथाम के तात्कालिक उपाय से हृदय के दौरे को रोका जा सकता है। यदि संकुचित धमनियाँ थक्के (क्लोट) या अवरोध के कारण बाधित हो जायें, तो हृदय का वह हिस्सा मर जाता है, जो बाधित धमनियों पर निर्भर होता है। इसे हृदय का दौरा या हृदयधमनी का अवरोध कहते हैं। इसके फलस्वरुप मृत्यु हो सकती है या मरीज़ स्वस्थ हो जाता है पर निशान रह जाता है।

स्वस्थ होनेवाले मरीज़ गंभीर रूप से अपाहिज़ बन सकते हैं अथवा शारीरिक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण रखकर फिर से सामान्य जीवन बिताने में समर्थ होते हैं। उन व्यक्तियों में अचानक मृत्यु का अनुपात बहुत ज़्यादा होता है, जिन्हें हृदयशूल या हृदय धमनी का अवरोध होता है।

हृदय धमनियों के अंदरूनी आस्तर पर विभिन्न रासायणिक पदार्थों के जमा होने के कारण ये धमनियाँ सिकुड़ जाती हैं। यह वंशानुगत हो सकता है अथवा विविध पदार्थों के शरीर के अंदर पहुँचने और आत्मसात् होने की चयापचय की प्रक्रियाओं में ख़राबियों के कारण बाद में हो सकता है। वसायुक्त खाद्यपदार्थों से भरपूर आहार, विशेष रूप से प्राणीज चर्बीवाले खाद्यपदार्थ, हृदय धमनियों में वसायुक्त द्रव्यों के जमा होने में कारणभूत होते हैं। इनसे ये धमनियाँ अवरुध होकर संकुचित हो जाती हैं।

चर्बी के द्रव्यों से धमनियों के भर जाने की इस प्रक्रिया को धमनी-काठिन्य (आर्टिरिओ सिरोसिस) कहते हैं और रक्तवह-तंत्र को प्रभावित कर उसका हास करनेवाला यह बड़ा बदलाव होता है।

हृदय रोग के सामान्य लक्षण :

  • हृदय रोग का सामान्य लक्षण है, साँस का छोटा होना, जो रक्त को प्राणवायु की उपयुक्त मात्रा न मिलने की स्थिति में पैदा होता है। अन्य सामान्य लक्षण हैं –
  • छाती में दर्द या दोनों बाजूओं में किसी एक के नीचे दर्द। अन्य लक्षणों में हैं –
  • हृदय का जोरों से धड़कना, बेहोश होना, भावात्मक असंतुलन, हाथ और पैरों का ठंडा होना
  • बार बार पसीना आना और थकान।
  • ये सभी लक्षण कई अन्य विकारों के कारण भी हो सकते हैं। इसलिये, इन लक्षणों के वास्तविक प्रकार को स्थापित करने के लिये उपयुक्त जाँच और अध्ययन आवश्यक हैं।

हृदय रोग के मुख्य कारण :

हृदय रोग के प्रमुख कारण हैं –

  • आहार की अनुचित आदतें, गलत जीवनशैली और अन्य कई बीमारियाँ।
  • नेशनल हार्ट एन्ड लंग इन्स्टीट्यूट्स के प्रसिद्ध फ्रेमिंग्घाम हार्ट स्टडी ने हृदय धमनी की बीमारी के सात मुख्य जोख़िमकारक कारण पता किये हैं –
  1. रक्त में कोलेस्टेरोल, ट्रायलीसिराइट्स और अन्य फेटी या वसायुक्त तत्वों का उच्च स्तर
  2. उच्च रक्तचाप
  3. युरिक एसिड की अधिक मात्रा (जो मुख्य रूप से उच्च प्रोटीनयुक्त आहार से पैदा होती है।)
  4. चयापनचय के कुछ ख़ास विकार, जिनमें मधुप्रमेह उल्लेखनीय है।
  5. मोटापा
  6. धूम्रपान और
  7. शारीरिक व्यायाम की कमी।

इनमें से किसी भी एक या ज़्यादा जोख़िमकारक कारणों से हृदयरोग होता है। इनमें से कई रोग आहार की गड़बड़ी से ही पैदा होते हैं। इन ज़ोखिमकारक कारणों को जीवनशैली में परिवर्तन करके तथा आहार को बदलकर नियंत्रित किया जा सकता है। निरंतर चिंता और तनाव से एड्रिनल ग्रंथियाँ अधिक एड्रिनल-ग्रंथि रस और कार्टिज़न्स उत्पन्न करने के लिये प्रेरित होती है। इससे भी धमनियों का संकुचन, उच्च रक्तचाप और हृदय के कार्य में वृद्धि को बढ़ावा मिलता है।

हृदय रोग का आहार द्वारा इलाज :

हृदय के सभी रोगों में मूलभूत कारण आहार ही है। कई मामलों में शरीर की संरचना में; दोषनिवारक आहार अपनाकर सामान्य पोषक तत्वों की गुणवत्ता को सुधारकर हृदय और रक्तवाहिनियों में क्षति से हुए नुकसान को भरपाई किया जा सकता है।

  • आहार दुग्ध-शाकाहारी होना चाहिए, जिसमें सोडियम और केलरी की मात्रा कम हो।
  • आहार में उच्च गुणवत्तावाले प्राकृतिक नैसर्गिक खाद्यपदार्थों, विशेष रूप से साबूत अनाज़, बीज़, ताज़े फल और सब्जियों होनी चाहिए।
  • जिन खाद्यपदार्थों से परहेज़ करना चाहिए, वे हैं – मेदे से बने खाद्यपदार्थ, मिठाइयाँ, चोकलेट, चाशनीवाले डिब्बेबंद खाद्यपदार्थ, सोफ्ट पेय, शरबत, सख़्त चर्बीवाले प्राणीज पदार्थ जैसे बटर, मलाई और फेटी मांस।
  • नमक और चीनी भी काफ़ी कम कर देनी चाहिए।
  • मांस के लगभग सभी खाद्यपदार्थों में सोडियम तत्त्व ज़्यादा होता है और मांस के कुछ प्रकार अधिक चर्बीवाले होते हैं। ये सभी बहुत ज्यादा एसिड पैदा करते हैं और इससे शरीरतंत्र में विषैले पदार्थों का स्तर बहुत बढ़ जाता है। हृदयरोग के मरीज़ को इन खाद्यपदार्थों से परहेज़ करना चाहिए।
  • मरीज़ को चाय, कॉफी, आल्कोहोल और तम्बाकू भी त्याग देना चाहिए। चाय और कॉफ़ी में मौजूद केफ़िन नाम के तत्त्व से हृदय और तंत्रिका तंत्र पर विष का असर पड़ता है। केफिन हृदय को उत्तेजित करनेवाला एक उग्र उत्तेजक है। यदि नियमित रूप से लिया जाय, तो उससे धड़कने बढ़ जाती हैं अथवा हृदय की स्पंदलय में बाधा पहुँचती है।
  • आल्कोहोल से लिवर को नुकसान पहुँचता है और हृदय ज़्यादा उत्तेजित होता है। वह रक्तशर्करा के स्तर को भी परिवर्तित करता है और शरीर के विटामिन B के संग्रह को कम कर देता है।
  • निकोटिन का हृदय की पेशियों पर विषैला, उत्तेजक प्रभाव पड़ता है और वह रक्तशर्करा के स्तर को भी विचलित कर देता है।
  • हृदय रोग के मरीज़ के आहार में शामिल पोषक तत्त्व, जहाँ तक संभव हो, अपने साबूत प्राकृतिक स्वरूप में ही होने चाहिए ताकि आवश्यक विटामिन, खनिज पदार्थ एवं सूक्ष्म मात्रिक तत्त्वों की पर्याप्त मात्रा सुनिश्चित हो जाय। आहार का एक बहुत बड़ा हिस्सा फलों और सब्जियों का बना होना चाहिए और जब भी संभव हो, उन्हें ताज़े कच्चे स्वरूप में लेने चाहिए।
  • अंगूर और सेब विशेष रूप से फ़ायदेमंद हैं।
  • आवश्यक फैटी एसिड, जो सीरम कोलेस्टेरोल के स्तर को कम करते हैं और धमनी काठिन्य के खतरे को कम करते हैं; को पाने के लिये सूर्यमूखी के बीज़ का तेल, मक्कई का तेल अथवा कुसुम का तेल उपयोग में लेना चाहिए।
  • कई अध्ययनों से पता चलता है कि लहसुन, उन व्यक्तियों का कोलेस्टेरोल कम कर सकता है, जिनका शरीर आमतौर पर उसे नियमित नहीं रख पाता।
  • कोलेस्टेरोल कम करने के लिये एक अन्य महत्त्वपूर्ण जड़ी-बुटी एल्फैल्फ़ा है। धमनियों में जमा फेटी पदार्थों को रोकने में लेसिथिन मदद करता है।
  • सर्वोत्तम खाद्य स्रोत हैं – बिना रिफाइन्ड किये हुए, कच्चे, अपरिष्कृत वेजिटेबल तेल, बीज़ और अनाज़।
  • हृदय रोग के मरीज़ को विटामिन E से समृद्ध खाद्य पदार्थों की मात्रा बढ़ानी चाहिए, क्योंकि यह विटामिन कोशिकाओं के ओक्सिजनीकरण में सुधार लाकर हृदय के कार्य को सुचारू ढंग से चलने में मदद करता है। यह परिसंचरण और पेशियों की ताक़त को भी बढ़ाता है। साबत गेहूँ के कई खाद्यपदार्थ और हरी सब्जियाँ, विशेष तौर पर पत्तागोभी के बाहरी पत्ते, विटामिन E के अच्छे स्रोत हैं।
  • विटामिन B समूह हृदय और परिसंचरण के विकारों के लिये महत्त्वपूर्ण है। विटामिन B के श्रेष्ठ स्रोत साबूत धान्य हैं।
  • विटामिन C भी हृदयरोग के मरीज़ के लिये ज़रुरी है क्योंकि वह रक्तवाहिनियों की दीवारों को अचानक टूटने से रोकता है, वरना हृदय का दौरा पड़ सकता है। रक्त में कोलेस्टेरोल की उच्च मात्रा के ख़िलाफ भी वह रक्षा करता है।
  • क्रोध, भय, निराशा और ऐसी ही समान भावनाओं का तनाव रक्त में चर्बी और कोलस्टेरोल के स्तर को तुरंत बढ़ाता है। परंतु तनाव का यह परिणाम कम नुकसान करता है, यदि आहार में विटामिन C और पेन्टोथेनिक एसिड की मात्रा पर्याप्त हो। विटामिन C के सब से समृद्ध स्रोत खट्टे फल हैं।

हृदय रोग में आहार :

निम्नलिखित प्रस्तावित पथ्य उन मरीज़ो के लिये हैं, जो हृदय के किसी भी विकार से पीड़ित हैं –

  1. प्रात:काल उठने पर : साधारण गर्म पानी, नींबू का रस और शहद मिलाकर।
  2. सुबह का नाश्ता : ताज़े फल जैसे सेब, अंगूर, नाशपत्ती, आडू, अनन्नास, संतरे, खुरबुज़े, गेहूँ की ब्रेड की एक-दो स्लाइस और मलाई उतारा हुआ दूध।
  3. नाश्ते और दोपहर के भोजन के बीच : ताज़े फल का रस अथवा नारियल पानी।
  4. दोपहर का भोजन : सब्जियों का मिश्रित सलाद; जैसे, लेटिस, पत्तागोभी, कासनी, गाज़र, ककड़ी, बीट, टमाटर, प्याज़ और लहसुन, गेहूँ की ब्रेड एक-दो स्लाइस अथवा रोटियाँ और एक ग्लास छाछ।
  5. शाम का नाश्ता : ताज़ा फल का रस।
  6. रात का भोजन : ताज़ा सब्जी का रस या सूप; भाप से पकाई गई या कम पकाई गई सब्जियाँ; एक या दो गेहूँ की रोटियाँ ।
  7. मरीज़ को स्वास्थ्यवृद्धि के लिये प्रकृति के अन्य नियमों की ओर भी ध्यान देना चाहिए; जैसे हल्का व्यायाम, उचित विश्राम और निद्रा, सकारात्मक दृष्ठिकोण और ताज़ी हवा में रहना तथा शुद्ध पानी पीना।

हृदय रोग के उपचार की रुपरेखा :

(अ) – पथ्य

I) तीन से पाँच दिनों के लिये सिर्फ़ फलाहार का सेवन करें। प्रतिदिन तीन बार, हर पाँच
घंटों के अंतराल पर ताज़े रसदार फल और आँतों को साफ़ करने के लिये हल्के गर्म पानी से एनिमा का प्रयोग करें।

II) इसके पश्चात्, निम्नलिखित निर्देशों के अनुसार सुसंतुलित आहार को अपनायें –
i) प्रात:काल उठने पर : एक ग्लास हल्का गर्म पानी जिसमें आधे नींबू का ताज़ा रस
और एक टीस्पून शहद मिलाया हो।
ii) सुबह का नाश्ता : ताज़े फल और शहद डालकर मीठा बनाया हुआ, मलाई उतारा हुआ दूध।
ii) दोपहर का भोजन : एक कटोरा भाप से पकाई गईं और तुरंत की बनी सब्जियाँ, दो या तीन गेहूँ की रोटियाँ और एक ग्लास छाछ।
iv) शाम का नाश्ता : सब्जी या फल का रस या नारियल पानी।
v) रात का भोजन : ताज़ी, हरी सब्जियों का सलाद और नींबू का रस निचोड़कर अंकुरित दाने। बाद में यदि चाहें, तो कोई गर्म चीज़ ले सकते हैं।
vi) रात को सोने से पहले : एक ग्लास दूध या एक सेब।

(ब) – भोजन के नियम

1. भोजन के साथ पानी न पीयें, बल्कि भोजन से आधे घंटे पहले या एक घंटे बाद पीयें।
2. धीरे धीरे खायें, खाने को अच्छी तरह चबायें और कभी भरपेट न खायें।
3. नमक की मात्रा नियंत्रण में रखें।
4. विटामिन E से समृद्ध खाद्यपदार्थों को अधिक मात्रा में लें।

(क) – अन्य उपाय

1. एकान्तर दिन में, 30 मिनट तक गर्दन की बायीं ओर गर्म कोम्प्रेस रखें और छाती पर, हृदय के ठीक ऊपर एक मिनट के लिये गर्म पैक रखें। बाद में पाँच मिनटों के लिये ठंडापैक रखें।
2. योगासन करें। जैसे, शवासन, वज्रासन और गोमुखासन।
3. हल्का व्यायाम, जैसे चलना।
4. सप्ताह में एक बार पेट और पीठ के ऊपरी स्नायुओं का मसाज़।
5. ताज़ी हवा और सकारात्मक दृष्टीकोण।

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