दमा (अस्थमा / श्वास) में क्या खाएं और क्या न खाएं | Dama Me Kya Khana Chahiye Aur Kya Nahi

Last Updated on October 13, 2021 by admin

दमा रोग क्या है ? : Dama in Hindi

कभी कहा जाता था कि दमा का रोगी कभी सुख की साँस नहीं ले सकता। यह रोग तो दम अर्थात प्राण के साथ ही जाता है। रोगी जीवनभर तड़पता रहता है। ठीक प्रकार से साँस नहीं ले पाता। उठ, चल नहीं सकता। भोजन नहीं कर सकता। अपने कामकाज नहीं कर सकता।
मगर नहीं। अब इस रोग से बचने के इतने उपाय सामने आ चुके हैं तथा अच्छी-अच्छी उपचार-विधियाँ आ गई हैं कि इस रोग को कम करना, शांत करना, ठीक करना अब कठिन नहीं रहा। थोड़ी कोशिश, थोड़ी सावधानी, थोड़ी खान-पान में नियमितता से इस रोग की उग्रता समाप्त हो सकती है।

दमा (अस्थमा / श्वास) रोग के लक्षण : Dama Rog ke Lakshan in Hindi

dama rog ke lakshan kya hai

दमा रोग के लक्षण भी सर्वविदित हैं। मगर दमा का रोगी, जिस कष्टदायक स्थिति से गुजरता है, यह वही जानता है। उसे श्वास-निःश्वास की क्रिया में काफी परेशानी होती है। जब वह साँस लेता है तो शुद्ध वायु, आक्सीजन अंदर नहीं जा पाती। ऐसा इसलिए होता है कि उसका गला तथा फेफड़े बुरी तरह सँधे होते है।

  • जब वह साँस बाहर निकालने लगता है तब भी बड़ी कठिनाई होती है। ऐसे में उसकी आँखें लाल हो जाती हैं। चेहरा तमतमा उठता है। उसकी साँस उखड़ जाती है।
  • यदि खाँसते, हाँफते हुए बलगम आ जाए तो उसे कुछ राहत मिलती है।
  • रात दो-ढाई घंटे सोने के बाद दमा के रोग में तेजी आती है। साँस उखड़ने लगती है। खाँसी काफ़ी होती है। कफ आसानी से नहीं आता। रोगी उठकर बैठ जाता है। उसका छटपटाना बढ़ जाता है। वह पसीना-पसीना हो उठता है।
  • रोग पुराना होने पर रोगी नीला पड़ जाता है। उसे साँस लेने व छोड़ने में बेहद कष्ट होता है।
  • यदि बलगम आ जाए तो अच्छा है, वरना उस दौरे को शांत करने के लिए सूई भी लगानी पड़ सकती है।
  • रोगी की दुर्दशा इसलिए भी होती है कि दमा शुरू हो जाने पर ताज़ी हवा अंदर नहीं जाती। ऐसे में उसके शरीर को आक्सीजन भी नहीं मिल पाती।
  • जब शुद्ध वायु के साथ आक्सीजन शरीर में नहीं जा पाती या बहुत कम जाती है तब अंदर से दूषित हवा और कार्बन डाई-ऑक्साइड भी बाहर नहीं आ पाती। शरीर विषाक्त होता रहता है।
  • रक्त भी अशुद्ध होता जाता है, क्योंकि खून को शुद्ध करने के लिए प्रर्याप्त आक्सीजन नहीं मिलती। इसीसे दमा का दारा शुरू होता है। जब दमा की तकलीफ बढ़ती है तो फेफड़ों के फैलने और सिकुड़ने में भी शिथिलता आ जाती है। रुकावट महसूस होने लगती है। इसीसे रोगी की छटपटाहट बढ़ जाती है। दम फूलने लगता है।

दमा (अस्थमा / श्वास) रोग कैसे होता है ? : Dama Rog Kyu Hota Hai in Hindi

dama rog ke karan in hindi

हर रोगी के लिए दमा होने के अलग-अलग कारण हो सकते हैं। सबके लिए एक जैसे कारण नहीं होते।

  1. एलर्जी होना इसका मुख्य कारण है। किसी को किसी एक चीज से एलर्जी हो जाती है तो किसी को दूसरी चीज़ से।
  2. किसी को किसी फूल की सुगंध से, किसी को किसी फसल से, किसी को किसी फल, सब्जी, भोजन, खाद्य पदार्थ के सेवन से तो किसी को कोई पेय पीने से। हर एक के लिए अलग-अलग अलर्जन होते हैं। इसे ढूंढ़ निकालना आसान नहीं।
  3. किसी को शुष्क जलवायु खराबी करती है तो किसी को तर जलवायु । कोई एक स्थान पर स्वस्थ रह सकता है तो कोई वहाँ आते ही दमा से पीड़ित हो जाता है। यह तो अपने-अपने स्वभाव व शरीर की प्रकृति पर ही निर्भर करता है। सभी के साथ एक ही जैसा नहीं होता।
  4. यह रोग वंशानुगत भी होता है। घर के बड़े-बजुर्ग, ननिहाल, दादा जात में से, किसी को जब यह रोग हो तो उसके बच्चे या दोहते-पोते को भी यह हो सकता है। इसके लिए कोई निश्चित फारमूला नहीं है।
  5. व्यक्ति का अपनी प्रकृति के विरुद्ध भोजन करना भी रोग का कारण बन सकता है। वातावरण का परिवर्तन, जलवायु का परिवर्तन, ऋतु का परिवर्तन, रहने के मकान में परिवर्तन, सुगंधों में परिवर्तन-मतलब यह कि किसी को परिवर्तन ठीक बैठता है तो किसी के लिए दमा रोग का कारण बन जाता है।
  6. यदि किसी के रोग का कारण कोई एलर्जी हो तो फिर वंशानुगत वाली कोई बात नहीं होती।
  7. दमा रोग के मानसिक कारण भी होते हैं। कोई चिंता, तनाव, क्रोध, भय आदि भी इस रोग के कारण हो सकते हैं।
  8. आम तौर पर, इस रोग का प्रकोप पूरे वर्ष भर रहता है। मगर वर्षा ऋतु तथा शीत ऋतु में यह अधिक परेशान करता है। इसमें दौरे भी पड़ सकते हैं।
  9. इस रोग का कारण जानकर, बचाव करना ही उत्तम माना गया है। दवा और परहेज़ से हालत ठीक रहती है। हानिकारक कारणों को अपनी दिनचर्या से हटा दें। रोग के कारणों को हटा देने से कई बार रोगी सदा के लिए स्वस्थ भी हो जाता है। अतः गंभीर होकर रोग के कारण ढूंढे तथा उनका निवारण करें।

दमा रोग में सावधानियाँ : Dama Rog me Kya Savdhaniya Barte

  • दमा के रोगी को खाली दूध कभी नहीं लेना चाहिए। उसमें कुछ न कुछ डाल कर ही पीना चाहिए।
  • ऐसा रोगी दही का सेवन बिल्कुल बंद कर दे। विशेषकर भैंस के दूध का दही उसके लिए अधिक हानि कारक होता है।
  • दमा के रोगी को कभी भी पेट भरकर नहीं खाना चाहिए। आधा पेट भोजन से भरें । एक चौथाई पानी के लिए रखें तथा एक चौथाई वायु के लिए। ऐसा करने से साँस लेना सरल हो जाएगा। रोग शांत रहेगा।
  • रात का खाना सोने से दो घंटे पूर्व करें। रात का खाना खाकर 100-150 कदम जरूर चलें।
  • भोजन में खटाई, मिर्च-मसाले तथा तले पदार्थ न लें।
  • बहुत ठंडे पेय, जल या अन्य पेय पदार्थ न लें।
  • बासी भोजन न खाएँ।
  • भारी भोजन से बचें। भोजन सुपाच्य तथा हल्का ही किया करें।
  • फलों तथा सब्जी की भोजन में अधिकता रखें।
  • जब खेतों में या पेड़-पौधों में बौर आ जाती है तब कुछ लोगों को ठीक नहीं लगता। एलर्जी हो जाती है। यदि इसका पता चल जाए तो महीनाभर के लिए स्थान परिवर्तन कर, बौर के प्रभाव से बचा जा सकता है।
  • खाँसी नहीं होगी तो दमे का जोर भी नहीं बढ़ेगा। अतः खाँसी को पहले शांत रखें। फिर दमा शांत हो जाएगा। खाँसी का इलाज करने में कभी ढिलाई न करें। खाँसी के कारण को जरूर दूर करें।
  • प्रातः, सूर्य का उदय होने से काफी पहले बिस्तर छोड़कर खुली हवा में निकलें। सैर को जाएँ। ताजी हवा का सेवन करें। लंबी साँस लें। गहरी साँस अंदर तक उतरकर रक्त को स्वच्छ कर देगी।
  • खुली हवा में जाकर प्राणायाम कर सकें तो जरूर करें। दमा रोग को शांत करने में यह बड़ा उपयोगी रहता है।
  • योगाचार्य से पूछकर, वे सब आसन अथवा क्रियाएँ करें, जिनसे फेफड़ों को फैलने का अवसर मिले। फेफड़ों का फैलना तथा सिकुड़ना रोग को शांत करने में बड़ी भूमिका अदा कर सकता है।
  • दमा का रोगी भारी काम न करे। अधिक परिश्रम से बचे। ऐसा कोई काम न करे जो साँस चढ़ाने, साँस फुलाने का काम करता हो। साँस फूलेगा तो रोगी की शक्ति का ह्रास होगा। रोग से लड़ने की क्षमता घटेगी।
  • ऐसा रोगी बहुत लंबी, थकानेवाली सैर न करे, न ही ऐसे व्यायाम करे जो उसे थका दें। हल्की-हल्की थकावट तक की सैर, व्यायाम, योगासन ठीक रहते हैं। जब थोड़ा पसीना आने लगे तो समझ लें कि आपकी क्षमता के अनुसार व्यायाम पूरा हो गया। तब बंद कर देना चाहिए। खिलाड़ियों तथा पहलवानों की बात और है।

( और पढ़े – दमा के आयुर्वेदिक घरेलु उपचार )

दमा में क्या खाना चाहिए : Dama Rog me Kya Khaye in Hindi

दमा के रोगी को अपना भोजन चुनते समय, बहुत सावधान रहने की आवश्यकता है। जो सब खाते हैं, वही दमा का रोगी नहीं खा सकता। फिर एक दमे का रोगी जो खाता हो, वही सभी दमा-रोगियों के लिए सुपाच्य नहीं हो सकता। अपना स्वास्थ्य, रोग की स्थिति, शारीरिक परिश्रम, आयु, स्थान आदि को ध्यान में रखकर, अपने विवेक से काम लेते हुए भोजन चुनें। आपका भोजन ही आपका बचाव है, उपचार है, ठीक रहने का साधन है।

  1. फलों को खाने तथा इनका रस का सेवन करने के लिए उचित समय है प्रातः कालीन नाश्ता या फिर दोपहरी में।
  2. भोजन दोपहर का हो या रात का, फलों का सेवन भोजन के तुरंत पहले, भोजन के बीच में तथा तुरंत बाद में न लेने की सलाह है।
  3. जब फलों का रस लेना है तो उसे बनाते समय सब्जियाँ मत डालें। दोनों का रस अलग-अलग तैयार करें तथा अलग-अलग ही लें। दोनों रसों के रासायनिक गुण तथा उनकी प्रक्रिया एक सी नहीं होती।
  4. ताजे फल तथा इनका रस बहुत उपयोगी होता है।
  5. दमे का रोगी नींबू, पपीता, मौसमी, संतरा, मीठी खुमानी तथा अनार आदि खा सकते हैं। ये उसे ठीक रहेंगे। इनका रस भी रोगी के लिए ठीक रहता है।
  6. दमे का रोगी शुद्ध घी दो चम्मच कटोरी में डाले। इसमें चार साबुत काली मिर्च के दाने डाले तथा जरूरत अनुसार देशी खाँड़। यदि यह न हो तो मिसरी कुटी हुई भी डाल सकता है। उसे आँच पर गर्म करे और खा ले। मगर इसके बाद पानी तो बिल्कुल भी नहीं पीना। घी शुद्ध और असली हो।
  7. दमे के रोगी बेसन की रोटी बनवाकर खाएँ। इसे शुद्ध घी के साथ खाएँ। बहुत ठीक रहती है। घी थोड़ा गर्म रहे।
  8. बेसन में चने के छिलके नहीं होते। यह चने की धुली दाल से तैयार होता है। यदि साबुत चने का आटा पिसवाकर रोटी खाएँ, वह भी शुद्ध घी के साथ तो अधिक लाभ मिलेगा।
  9. यह सत्य है कि दमा या खाँसी चिकनाई की कमी के कारण होती व बढ़ती हैं। यदि चिकनाई युक्त भोजन करेंगे तो दमा शांत रहेगा। कफ बाहर आएगा तथा साँस सरल हो जाएगी।
  10. यदि शुद्ध असली घी की बनाई जलेबी प्राप्त हो सके तो उसे दूध में डालकर रोगी खाए। फायदा मिलेगा।
  11. सेवियों (सिवइयों) को पानी में उबालकर, निकालकर देशी घी और खाँड के साथ खाना भी हितकर होता है।
  12. दमा को शांत करने के लिए खजूर को दूध में उबालकर लें। यदि खजूर उपलब्ध न हों तो छुहारा उबालकर भी ले सकते हैं। दमा काबू में आ जाएगा।
  13. जो खजूर को या छुहारे को दूध में उबालकर लेता है, उसके शरीर में प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। प्रतिरक्षा शक्ति आ जाती है। आराम मिलता है। पेट भी साफ़ रहने लगता है। जिसका पेट साफ़ रहेगा, उसे इस रोग के अधिक बढ़ने का भय नहीं रहेगा।
  14. कभी खजूर, कभी छुहारा, तो कभी मुनक्का-दाख दूध में उबालकर लें और रोग को शांत रखें।
  15. पेट साफ़ रहे।रक्त में वृद्धि हो। लाल रक्तकण निर्मित हों। शरीर में चुस्ती आए। पुष्टि आए। जीने का मन करे। सुस्ती बिल्कुल न रहे। यह ऐसी स्थिति है जिसे प्राप्त करने के लिए दाख-मुनक्का, खजूर व छुहारे का दूध के साथ सेवन ठीक रहता है। न कठिन, न बहुत महँगा ही। दमे के रोगी के अतिरिक्त अन्य लोग भी इसे लेकर अपने शरीर में नवजीवन का संचार कर सकते हैं।
  16. जिस वातावरण में आप रहते हों, उसीमें तैयार हुआ शहद यदि मिल जाए तो उसका सेवन साँस के रोगी के लिए ठीक रहेगा। दमा के रोगी को यदि किसी भी पदार्थ से एलर्जी होती हो तो उससे दूर रहे और भूल से भी उसका सेवन नहीं करे।
  17. दमा के रोगी के लिए शतावर का चूर्ण, किसी भी रूप में लेना बहुत आरामदायक होता है। यदि शतावरी चूर्ण गर्म दूध के साथ रोज लें तो ज्यादा लाभ होगा।
  18. कोई भी हरी सब्जी तथा ताजा फल सेवन करने से लाभ होता है। ज्यादा हरी सब्जियों के पत्तों (मूली के पत्ते, गाजर के पत्ते, पालक, पत्ता गोभी) इन सब का सेवन करें। अदरक ठीक रहेगा। नींबू, काला नमक व जीरा डालकर फल, सलाद आदि खाएँ।
  19. चोकरयुक्त रोटी जरूरी है। मैदे के पदार्थ न लें।
  20. सर्दी से बचकर रहें।
  21. यदि इन बातों को ध्यान में रखेंगे तो दमे का तेज दौरा नहीं पड़ेगा। बल्कि धीरेधीरे शांत होकर रोगी ठीक हो सकेगा।

दमा में क्या नहीं खाना चाहिए (परहेज) : Dama Rog me Kya Nahi Khana Chahiye

dama rog me parhej

1. भैंस का दूध, 2. इससे बनी दही, 3. चावल, 4. आलू, 5. कोई भी ठंडा पेय, 6, आइसक्रीम, 7, चाट, 8. चटनी, 9. टिक्कियाँ-समोसे आदि, 10. धूम्रपान, 11. शराब, 12, बासी भोजन, 13.अधिक मिर्च-मसाले, 14. भारी भोजन। ठंडे पानी से स्नान भी न करें।

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