साधुओं के अचूक आयुर्वेदिक नुस्खे | Ayurvedic Nuskhe In Hindi

Last Updated on February 25, 2024 by admin

आयुर्वेद के अचूक नुस्खे :

(१) मधुमक्खी काटने की दवा-
आक (मदार) के दूध में लौंग, गोल मिर्च, शुद्ध कड़वा तेल या सरसों का दाना एक में रगड़कर तेल में फेंटकर लगाये। पीड़ा समाप्त हो जायगी।

(२) मनुष्य के पेट में दर्द-
आकाश बवर पीसकर थोड़ा शुद्ध घी एक चम्मच जल के साथ पिला दिया जाय, दर्द मिट जायगा।

(३) जहर खा लेने पर-
अकोल्हा की छाल थोड़ा-सा पीसकर पिला दिया जाय तो कैसा भी जहर हो उसे उलटी द्वारा बाहर निकाल देता है। यह दवा रामबाण है।

(४) वातरोग या गठिया-
हरसिंगार की चार या पाँच पत्ती पीसकर एक गिलास पानी से सुबह-शाम दो या तीन सप्ताह पीने से रोग समाप्त हो जायगा।

(५) कान का दर्द-
पीपल के पत्ते का रस कान में डालने से कान का दर्द, बहना तथा बहरापन चला जाता है।

(६) चौथिया, जड़ेया बुखार-
कपास के पत्तों को सूंघने से चौथिया या जडैया बुखार जड़ से छूट जायगा।

(७) सिरदर्द या सर्दी-
पीपल के चार कोमल पत्तों का रस चूसिये। रस चूसते-चूसते दर्द या सर्दी जुक़ाम मिट जायगा।

(८) खाँसी, दमा-
पीपल के सूखे पत्तों को कूटकर कपड़छान कर ले तथा एक बड़े चम्मच शुद्ध मधु २५ ग्राम में, २५ ग्राम पीपल-पत्ते का चूर्ण । मिलाकर चाटनेसे खाँसी, दमा दो सप्ताह में जड़ से समाप्त हो जायगा।

( ९ ) पीपल के फल के उपयोग-
पीपल के फल को सुखाकर कूटकर कपड़छान कर ले। २५० ग्राम रोजाना गाय के दूध में मिलाकर सेवन करनेसे वह बल-वीर्य को बढ़ाता है, ताकत पैदा करता है और स्त्रियों के प्रसूत, प्रदर, मासिक धर्म की गड़बड़ी को भी यह दूर कर देता है।

(१०) हैजा-
अकवन (आक)-को कुछ लोग मदार भी कहते हैं। अकवनकी जड़ १०० मिलीग्राम, इतनी ही गोल मिर्च मिलाकर पीस ले और मटरके दाने के बराबर गोली बना ले। जिसे हैजा (कॉलरा) हो गया हो, उसे एक बार दो गोली खिलाये, हैजा तुरंत – बंद हो जायगा।

(११) गैस (घटसर्प)-
सफेद अकवन के फूल सुखाकर तवे पर भून ले तथा चार फूल हथेली पर रगड़कर शहद मिलाये। ४ या ६ बूंद उस मरीज को चटाये, जिसे गैस (घटसर्प)-की बीमारी हो, इससे ठीक हो जाती है। इस रोग में सीने में उठा दर्द साँपकी आकृति में ऊपर उठकर कण्ठपर जाकर रुक जाता है। ऐसे रोगीकी श्वास घुटने लगती है। जब कण्ठ पर श्वास रुक जाती है, उसी समय इसे देना चाहिये, कण्ठ खुल जायगा। पंद्रह दिन तीन समय देने से बिल्कुल आराम हो जाता है।

(१२) सूज़ाक-
अकवन (मदार)-की जड़ ११ ग्राम ६६४ मिलीग्राम, गोल मिर्च २५ ग्राम पीसकर गोली बनाये। एक-एक गोली रोजाना सुबह खाकर पानी पी ले तो गरमी, सूजाक जड़ से समाप्त हो जाता है।

(१३) मलेरिया-
तुलसी के सात पत्ते और गोल मिर्च सात दाने एक साथ चबाने से पाँच बार में मलेरिया जड़ से चला जाता है। बुखार शीघ्र उतर जाता है, आराम हो जाता है।

(१४) आँख की लाली–
अकवन का दूध पैर के अँगूठे के नखपर लगाने से आँख की लाली फौरन साफ हो जाती है, परंतु ध्यान रहे आँख में न लगने पाये।

(१५) तुलसी के अद्भुत गुण-
तुलसी के पत्ते और इसके बराबर गोल मिर्च मिलाकर पीस ले, मटर बराबर गोली बना ले, एक गोली दाँत पर रगड़ने से दाँत दर्द, पायरिया आदि में फौरन आराम होगा। दस रोज में दाँत से खून आना, मुख की दुर्गन्ध इत्यादि जड़ से चली जाती है। यह गोली बुखार खाने से रामबाण का काम करती है। बुखार उतर जाता है और तुरंत आराम होता है।

(१६) शक्तिवर्धन तथा भूख-प्यास लगना-
चिरचिरी (अपामार्ग)-का बीज १०० ग्राम रगड़कर साफ कर ले और गायका दूध २५० ग्राम या एक किलो लेकर उसमें मिलाकर उसे गरम करे, जब दूध गाढ़ा हो जाय तब सेवन करे। दस रोज सेवन करने पर ताकत बढ़ेगी, भूख-प्यास भी लगेगी।

(१७) बवासीर के अक्सीर नुस्खे-
(क) रसौत ११ ग्राम ६६४ मिलीग्राम, गेंदेका फूल ११ ग्राम ६६४ मिलीग्राम, मुनक्का ५० ग्राम-तीनों को पीसकर सात गोली बना ले; एक गोली रोजाना सुबह पानी के साथ सेवन करे, जड़से बवासीर चली जायगी।
(ख) निरी (हरसिंगार)-का बीज ५८ ग्राम ३१६ मिलीग्राम कुकरौंधा के रस में पीस ले। मटर बराबर नौसादर मिलाकर दस गोली बना ले। एक गोली नित्य ५८ ग्राम ३१६ मिलीग्राम गुलाबजल के साथ निगल जाय।
(ग) सूरन (जमींकन्द)-को ओल भी कहते हैं, इसे घी में भूनकर खाने से खूनी बवासीर दूर हो जाती है।
(घ) काले तिलका चूर्ण मक्खन में मिलाकर खाने से बवासीर दूर होती है।
(ङ) मदार (आक)-का पत्ता तथा सहिजन के जड़ की छाल-इन दोनोंको एक साथ पीसकर लेप करने से खूनी बवासीर दूर हो जाती है।

(१८) खुजली-दाद-
खुजली, दाद, घाव, एग्जिमा आदि चर्मरोगों में गेहूँ को जलाकर राख बना ले। इसे कपड़छान कर तेल (सरसों पीला)-में भिगोकर लगाये तो खुजली आदि में तुरंत आराम हो जायगा।

(१९) बिच्छू का काटना-
(क) बिच्छूने जहाँ काटा हो, वहाँ दूधी घास रगड़ देनेसे फौरन आराम हो जाता है।
(ख) मूलीको पीसकर बिच्छूके काटे स्थानपर लगाने से विष दूर हो जाता है।
(ग) सिन्धुवार के कोंपल को पीसकर बिच्छू के डंक मारने वाले स्थानपर लगाने से आराम हो जाता है।

(२०) गठिया-दर्द-
सिन्धुवार (सैंधा कचरी)के पत्ते एक किलो पानी में खूब गरम कर दे। उस गरम जल से धोने से गठिया, कनकनी गाँठका दर्द तथा सूजन अच्छा हो जाता है।

(२१) बुखार-
सिन्धुवार की जड़ हाथ में बाँधने से बुखार उतर जाता है।

(२२) त्रिफला के उपयोग-
५० ग्राम त्रिफला (आँवला, हरें, बहेड़ा)-का चूर्ण, शुद्ध शहद और तिलके तेलमें मिलाकर चाटने से खाँसी, दमा, बुखार, धातुक्षीणता, पेट के समस्त रोग जड़ से समाप्त हो जाते हैं। ऋषियों ने यहाँ तक कहा है कि इसे सुबह-शाम सेवन करने से शरीर का कायापलट हो जाता है। सूजाक, बवासीर में पूरा आराम मिलता है। स्त्रियों का प्रदररोग, प्रसूत तथा मासिककी गड़बड़ी जड़ से चली जाती है।

(२३) खाँसी-सर्दी–
बाक्स (अड़सा)-का रस ११ ग्राम ६६४ मिलीग्राम, शहद ११ ग्राम ६६४ मिलीग्राम के साथ सेवन करे तो यह खाँसी, सर्दी, पुराने बुखार आदि को जड़ से समाप्त कर देता है।

(२४) आँख की फूली, धुंधलापन-
गदहपूरना का रस आँख में डालने से आँख की फूली, माणी, धुंधलापन आदि रोग दूर हो जाते हैं।

(२५) गर्भ न गिरना-
अशोक के बीज का एक दाना लेकर सिलपर घिसकर बछड़े वाली गाय के दूध में मिलाकर स्त्री को देने से गर्भपात रुक जाता है, स्त्री पुत्रवती हो जाती है।

(२६) स्त्री का गर्भ न टिकता हो-
आम के वृक्षका अतरछाल, गाय के घी में पुराना गुड़ तथा एक फूल लवंग गर्भवती स्त्री को खिला देने से गर्भधारण हो जायगा।

(२७) दर्द-
सहिजन के जड़ की छाल को बिना पानी के पीसकर दर्द में लगाने से शीघ्र आराम हो जाता है।

(२८) फाइलेरिया-
फाइलेरिया के रोगी को जब दर्द हो, ज्यादे सूजन हो जाय तो सहिजन और सिन्धुवार (सैंधाकचरी)-के पत्तों को किसी कच्चे मिट्टी के बर्तन में गरम करे, जब गरम हो जायँ तो जहाँ पर फाइलेरिया हो वहाँ बाँधने से तुरंत आराम हो जाता है।

(२९) टूटी हुई हड्डी को जोड़ना, गुप्त चोट में आराम-
(क) नागफनी का एक पूरा टुकड़ा आग में डाल दे, भुन जाने पर काँटे छील डाले और बीच में फाड़कर आँबाहलदी, खारी, सेंधा नमक का चूर्ण कपड़छान कर उसे दे और चोटपर बाँध दे। २४ घंटे के बाद खोले, उसी तरह फिर तैयार कर बाँधे। सात दिन में टूटी हड्डी जुड़ जायगी।
(ख) हड़जोड़ जो पेड़ों पर पलता है बिना जड़के, कहीं-कहीं इसे चौराहाजी कहते हैं। अगर महुआ के वृक्षपर का मिल जाय तो उत्तम, न मिले तो कहीं किसी वृक्षपर हो, उसे पीसकर शुद्ध घीमें भून ले और आँबाहलदी, खारी, सेंधा नमकका चूर्ण मिलाकर बाँधने तथा हड़जोड़ की पकौड़ी (माजिये) सेवन करने से टूटी हड्डी तथा गुप्त चोट ठीक होती है।

(३०) दन्त-रोग तथा दर्द-
(क) मदार (आक) या थूहर के दूध को रुई में भिगोकर दाँतों के घावपर रखने से दाँतों का दर्द दूर हो जाता है और घाव भी भर जाता है।
(ख) गुलाइची वृक्ष का या छीतवन का दूध रुई में रखकर दाँतों पर रखने से दाँत का दर्द चला जाता है।

(३१) दन्तमंजन-
बादाम के छिलके तथा नीम की डाल का कोयला बना ले। डम्बर का बीज, बबूल की छाल, काली मिर्च, सफेद इलायची, चूल्हेकी मिट्टी तथा लाहोरी नमक-इन्हें समान भाग लेकर कूट-छानकर नित्य मंजन करे। यह पायरिया तथा हिलते दाँतों को मजबूत तथा सांफ रखता है।

(३२) पायरिया एवं दाँत हिलना-
तूतिया और फिटकरी एक किलो पानी में पकाये। जब एक भाग जल जाय और तीन भाग बच जाय तो शीशी में रख ले, रोज थोड़ा गरम करके कुल्ला करे तो रोग ठीक हो जायगा।

(३३) कान का दर्द तथा बहना-
नीम की मुलायम पत्ती का रस तथा रस के बराबर शुद्ध शहद मिलाकर कान में डालने से बहता कान, कान का दर्द तथा बहरापन दूर हो जाता है। नीम की पत्ती का रस हथेली द्वारा निकालना चाहिये ।

(३४) खाज, गजकर्ण, अपरस, खुजली का मरहम-
अकवन का दूध, नीला थूथा का दूध, गन्धक, फिटकरी, सोहागा, नौसादर–प्रत्येक वस्तुको ११ ग्राम ६६४ मिलीग्राम लेकर लोहे के बर्तनमें खरल कर खूब बारीक मरहम-जैसा बना ले। घाव को नीम के पत्ते युक्त गरम जल से अच्छी तरह साफ कर ले। जब घाव का पानी सूख जाय तो मरहम को नारियल के तेल में मिलाकर लगाये।

(३५) श्वेत कुष्ठ (सफेद कोढ़)-
तिल के तेल में नौसादर मिलाकर लगाने से सफेद कोढ़ के दाग मिट जाते हैं।

(३६) तेज ज्वर-
(क) काली मिट्टी की पट्टी पेट पर लगाने से आधे घंटे में तेज ज्वर शान्त हो जाता है।
(ख) तेज ज्वर में ठंडे पानी से सिर धोने या ठंडे जलका कपड़ा भिगोकर सिरपर रखने से ज्वर कम हो जाता है।

(३७) दमा या श्वासरोग-
(क) आम के कच्चे पत्तों को सुखाकर चीलम में भरकर पीने से दमा रोग नष्ट हो जाता है।
(ख) बेर के पत्तों को पीसकर घी में भूनकर तथा सेंधा नमक मिलाकर सेवन करने से दमा-रोगी को आराम मिलता है।
(ग) अजवाइन को पान में डालकर चूसने से खाँसी तथा श्वास रोग नष्ट हो जाते हैं।
(घ) मदार के चार-पाँच पत्तों को आग में राख करके उस राख को रातभर पानी में रहने दे। सुबह छानकर पीने से श्वास रोग हमेशा के लिये नष्ट हो जाता है।

(३८) आँख के रोहे का काजल-
तूतिया को गुलाबजल में पीसकर रख ले, सरसों के तेल के दीपक में रुई की बत्ती से काजल पार ले, बाद में पीसा हुआ तूतिया-गुलाबजल मिला ले, हो सके तो पुराने गाय के घी में फेंट ले। फिर रोहे वाले आँख में लगाये।

(३९) प्रदररोग-
(क) शुद्ध शहद के साथ प्रतिदिन आँवला चूर्ण चाटने से श्वेतप्रदर दूर होता है।
(ख) चावल के धोवन में कपास की जड़ पीसकर पीने से श्वेतप्रदर दूर होता है।
(ग) घी के साथ लाख चूर्ण खाने से रक्तप्रदर दूर हो जाता है।
(घ) गूलर के सूखे फल का चूर्ण मिश्री के साथ सेवन करने से प्रदररोग ठीक हो जाता है।
(ङ) गूलर के पके फलों का साग बनाकर खाने से रक्तप्रदर दूर होता है।

(४०) हृदय की जलन तथा पेशाब की जलन –
गूलर के कच्चे फल खानेके उपरान्त गायका धारोष्ण दुग्ध मिस्री मिलाकर पीने से हृदय की जलन, पेशाब की जलन तथा मूत्रजनित रोग हमेशा के लिये दूर हो जाते हैं।

(४१) बहुमूत्रता-
सिंघाड़ा-चूर्ण ११ ग्राम ६६४ मिलीग्राम बकरी के दूध के साथ नित्य सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है।

(४२) गुल्मरोग (वायुगोला )-
(क) गुग्गुल को गोमूत्र के साथ सेवन करने से लाभ होता है।
(ख) अदरक, सहिजन की छाल और सरसों का तेल-इन तीनों को मिलाकर गोमूत्र के साथ सेवन करने से वायुगोला समाप्त हो जाता है।

(४३) श्लीपद (हाथीपाँव)-
(क) देवदार और हलदी का चूर्ण गोमूत्र के साथ सेवन करने से हाथी पाँव ठीक हो जाता है।
(ख) गुडुच (गुरुच)-का रस गोमूत्र के साथ सेवन करने से भी हाथीपाँव ठीक होता है।

(४४) तिल्ली-
(क) हर्रे का चूर्ण गोमूत्र के साथ सेवन करने से तिल्ली (पीलही) कट जाती है।
(ख) नित्य सुबह-शाम पपीता-सेवन करने से तिल्ली (पीलही) कट जाती है।

(४५) मूर्छा रोग ( दौरा)-
(क) पेठा ( भतुआ)| की सब्जी शुद्ध घी में भूनकर खाने से मूर्छा दूर हो जाती है।
(ख) नौसादर तथा चूने का पानी सुंघाने से मूर्छा दूर हो जाती है।

(४६) कृमि-
(क) गाजर खाने से कृमिरोग दूर हो जाता है।
(ख) कृमिरोग में पोदीना का काढ़ा देने से बच्चों को लाभ होता है।

(४७) कण्ठमाला-
(क) त्रिफले के जल में अरंडी (रेंड़ी)-की जड़ को पीसकर लगाने से कण्ठमाला रोग दूर हो जाता है।
(ख) गेंदे की पत्ती को गोमूत्र में पीसकर लगाने से कण्ठमाला नष्ट हो जाता है।
(ग) सूरजमुखी और लहसुन की पुटली बनाकर लगाने से कण्ठमाला दूर हो जाता है।
(घ) गोमूत्र के साथ जल कुम्भी का भस्म सेवन करने से कण्ठमाला नष्ट होता है।

 (४८) पतले दस्त-
(क) अमरूद (वीही)-के जड़ की छाल तथा कोमल पत्तों को ६० ग्राम लेकर उसका काढ़ा बना ले, उसे पीने से पतले दस्त बंद हो जाते हैं।
(ख) अशोक के फूल ४० ग्राम पीसकर पीने से पतले दस्त बंद हो जाते हैं।
(ग) भुनी अजवाइन का अर्क पीने से पतले दस्त बंद हो जाते हैं।
(घ) गूलर का दूध बतासा में डालकर बच्चों को देने से उनका आँव (मल) दस्त बंद हो जाता है।
(ङ) गाय के कच्चे दूध में कागजी नीबू निचोड़कर पीने से आँव (मल) दस्त चला जाता है, परंतु नीबू निचोड़कर तुरंत पी जाना चाहिये। दूध पेट में जाकर फटना चाहिये, देर होनेपर जम जायगा।
(च) धवई के फूल मट्ठे के साथ सेवन करने से पतले दस्त बंद हो जाते हैं।

(४९) पुरुष का हृष्ट-पुष्ट होना-
(क) गोखरू, कौंच का बीज, मुलहठी, शतावर, श्वेत मुसली, छोटी इलायची के दाने, तालम खाना-इन्हें समान भाग लेकर कूटकर कपड़छान कर ले और रात में सोते समय गाय के दूध के साथ सेवन करे। शक्ति बढ़ेगी और हृदय पुष्ट होगा।
(ख) शतावर, गोखरू के बीज, कौंच के बीज, गगेरन की छाल, तालमखाना, कंथी की छाल-इन्हें बराबर मात्रा में लेकर कूट-छान ले और रात में सोते समय गाय के दूधके साथ सेवन करे।
(ग) असली नागकेशर, वंशलोचन, शतगिलोय, मुलहठी, श्वेत राल, मरगमीहमी-सबको समान भाग लेकर कूटकर, कपड़छान कर प्रतिदिन गाय के दूधके साथ सेवन करे।
(घ) अश्वगन्धका चूर्ण ११ ग्राम ६६४ मिलीग्राम, विधारा-बीज ११ ग्राम ६६४ मिलीग्राम प्रतिदिन गाय के दूध के साथ सेवन करे।

(५०) कील-मुहाँसे–
लवंग, धनिया, वर्च का लेप मुँहासों को दूर करता है।

(५१) कालापन-
हलदी के चूर्ण को आक (मदार)-के दूध में मिलाकर चेहरे पर लेप करने से मुँह का कालापन दूर हो जाता है।

(५२) हृदयरोग-
(क) अर्जुन की छाल रात में एक गिलास पानी में भिगो दे। सुबह दातौन करने के पश्चात् छानकर पी ले। हृदयरोग जड़से चला जायगा।
(ख) विजयशाल की लकड़ी के गिलास में पानी पीने से भी हृदयरोग में आराम होता है। अगर लकड़ी हो तो उसे एक गिलास पानी में रातको भिगो दे। फिर दूसरे दिन भी पानी में उसी लकड़ी को डालकर पानीका प्रयोग करे।

(५३) मधुमेह-
शहदइया की जड़ ११ ग्राम ५०० मिलीग्राम साफ-सुथरा कर उसमें चार-पाँच दाना काली मिर्च मिलाकर पीस ले, गाय का दूध २५० या ५०० ग्राम लेकर उसी के साथ निगल जाय। दातौन करने के पश्चात् सुबह लगातार इक्कीस दिन करना है। बीच में नागा नहीं करना है। परंतु गरमी में ही करना है, जाड़े में करने से गठिया की बीमारी हो सकती है।

(५४) बहता खून बंद करना-
काले कुकरौंधा के पत्ते का रस हाथ से निकालकर कटे हुए स्थान पर डाले,
बहता हुआ खूनं तुरंत बंद हो जायगा।

(५५) पेट के अंदर से खून आता हो-
सफेद दूर्वा (दूब) लेकर पीस ले और उसे चीनी या गुड़ डालकर शर्बत बनाकर रोगी को पिला दे, खून फौरन बंद कर देगा। यह दो-तीन बार देना है।

(५६) शरीर के अंदर से कट-कटकर खून कहीं से आता हो-
खस (कतरा)-की जड़, कमल का फूल और दूर्वा (दूब), पुराने चावल (चावल जितना ही पुराना हो अच्छा रहेगा। कम-से-कम एक सालका पुराना अवश्य हो)-के पानी में पीसकर रोगी को एक गिलास जल में शर्बत बनाकर पिला दे। खून तुरंत बंद हो जायगा। इसे दो-तीन बार देना चाहिये।

(५७) कुँए की दवा-शरीफा (मेवा)-
की गुद्दीको निकालकर पीस डाले और उसे पानीमें घोल दे, सिरमें लगाये, सभी कुँए समाप्त हो जायँगी।

(५८) पशु के पेट में दर्द-
आक (मदार)-का थोड़ा छिलका, आकाश बवर और थोड़ा गुड़ शुद्ध जल के साथ खिला दे। पेट का दर्द शान्त हो जायगा।

(५९) पशु रोग-
पशु को मूत्र, पैखाना ज्यादे हो रहा हो और पेशाब शुद्ध न आता हो तो गम्हार की पत्ती पीसकर थोड़ा गुड़ और एक गुड़हल (अड़हुल)-का फूल पीसकर पिलाने से वह ठीक हो जायगा।

(६०) पशु का पेशाब रुकना-
गम्हार की पत्ती, गुड़हल (अड़हुल)-का फूल पीसकर पिलाने से ठीक हो जायगा।

(६१) पशु का पेट फूल गया हो या पेट में कोई गड़बड़ी हो-
फिटकरी और अजवाइन को पीसकर ठंडे जल से दो ढर का (सिरे पर कलम की तरह कटा हुआ बाँसका चोंगा, जिससे पशुओं को दवा आदि पिलायी जाती है) दे देने से पेट साफ हो जायगा, पशु ठीक हो जायगा।

अस्वीकरण: इस लेख में उपलब्ध जानकारी का उद्देश्य केवल शैक्षिक है और इसे चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं ग्रहण किया जाना चाहिए। कृपया किसी भी जड़ी बूटी, हर्बल उत्पाद या उपचार को आजमाने से पहले एक विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क करें।

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