कर्मकांडों में आसन का धार्मिक व वैज्ञानिक महत्व | Asan ka Dharmik aur Vaigyanik mahatv

Last Updated on July 22, 2019 by admin

धार्मिक कर्मकांडों में आसन पर बैठना आवश्यक क्यों माना गया है ?

हमारे धर्म शास्त्रों में पूजा-पाठ, यज्ञ, हवन, साधना, तपस्या आदि समस्त कर्मकांडों में व्यक्ति को आसन पर बैठने की सलाह दी गई है । आसन पर बैठकर कर्मकांड करने से जहाँ व्यक्ति की सात्विक व आत्मिक शुद्धता होती है, वही इसके कई लाभ भी बताए गए हैं।
यह एक प्राकृतिक तरीका है, जो सेहत के लिए भी आवश्यक है । इससे जीवन में अनुशासन व सदाचार की भावना का विकास होता है ।
आसन खुद में एक योग भी है । यह शरीर की शुद्धता व स्वच्छता के लिए आवश्यक है । जब हम आसन में बैठकर कर्म कांड करते हैं, तो धर्म व कर्म की श्रेष्ठता सिद्ध होती है। धर्म का उद्देश्य सार्थक होता है। शरीर के विकार नष्ट होते हैं। सभी युगों में यह चिर सत्य है कि आसन पर बैठना कार्य सिद्धि के लिए आवश्यक माना गया है।

शास्त्रों में निषिद्ध आसनों के बुरे प्रकार :

अगर ब्रह्मांड पुराण तंत्रसार की बात कहें, तो उसमें इस बात का उल्लेख किया गया है कि
✶ धार्मिक कर्मकांडों को भूमि या जमीन पर बैठकर करने से मनुष्य का दुख बढ़ जाता है,
✶ पत्थर पर बैठने से रोग होता है,
✶ अगर कोई व्यक्ति पत्तों पर बैठकर धार्मिक कर्मकांड करता है, तो उसका चित्त भ्रमित होता है । Asan ke labh
✶ यदि कोई व्यक्ति कर्मकांडों के लिए लकड़ी का आसन बनाता है, तो घर में दुर्भाग्य का आगमन होता है
✶ घास-फूस पर बैठकर धार्मिक कर्मकांड करना मना है । यह आसन अपयश लाता है । इस तरह व्यक्ति को उसके कार्य में सिद्धि नहीं मिलती है ।
✶ इसी तरह अगर कोई व्यक्ति कपड़े पर बैठकर तपस्या करे, तो उसकी तपस्या कभी पूरी नहीं होगी । कुछ-न-कुछ अवरोध आते रहेंगे ।
✶ जो व्यक्ति धार्मिक कर्मकांडों के लिए बांस पर बैठता है, उसके घर में दरिद्रता आती है।
यानी उपरोक्त तरीके से बैठकर कर्मकांड नहीं किए जा सकते । कर्मकांड की सिद्धि व सफलता के लिए सिर्फ व सिर्फ आसन पर बैठना ही समस्या का समाधान है। इसमें सिद्धि व यश प्राप्त होता है । कर्मकांड का अभीष्ट पूर्ण होता है।

ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि किस प्रकार के आसन बिछाए जाएँ, ताकि व्यक्ति को उसके कार्यों में सिद्धि व सफलता मिल सके । आइए इस पर एक नजर डालते हैं।

शास्त्र अनुकूल आसनों के चमत्कारी लाभ :

पुराने जमाने में ऋषि-महर्षि, मुनि, साधु-संत, तपस्वी जब किसी कार्य की सिद्धि हेतु आसन बिछाया करते थे, तो आमतौर पर वे आसन मृगछाला, कुश के आसन, (मृगछाला के अन्तर्गत् प्राय: काले हिरणों के चर्म का ही प्रयोग किया जाता था) । गोबर का चौका, बाघ या चीता की खाल, कम्बल (लाल) ही होते थे ।

✶ ऐसा माना जाता था कि जो साधक मृग छाला पर बैठकर साधना करता था, उसमें ज्ञान की सिद्धि बिना अवरोध हो जाती थी ।

✶ इसी तरह, कुशासन बिछा कर मंत्र की सिद्धि की जाती थी । जो साधक मंत्रों की सिद्धि करना चाहते थे, वे प्रायः कुश के आसन पर ही बैठकर साधना किया करते थे । इससे उनके लक्ष्य की पूर्ति हो जाती थी। उनकी साधना निर्विघ्न सफल व पूरी होती थी ।

✶ पुराने जमाने से ही गोबर का चौका अत्यंत पवित्र, शुद्ध, सात्विक व सफलता का पर्याय मान लिया गया है । किसी भी कार्य की सिद्धि के लिए गोबर का चौका लगाना श्रेष्ठ माना गया है । धार्मिक कर्म कांडों में गोबर का प्रयोग ना हो, तो उसकी सिद्धि नहीं होती है। आज भी शादी-ब्याह में गोबर का चौका लगाया जाता है, ताकि व्यक्ति द्वारा किया गया कर्मकांड निर्विघ्न सफलता पूर्व सम्पन्न हो सके । यही कारण है कि लोक गीतों में भी (प्राय: शादी के अवसर पर महिलाएँ गाय के गोबर से चौका लिपने….जैसे गीत गाती हैं) गोबर के चौके के महात्मय को दर्शाया गया है ।

✶ पुराने जमाने में मोक्ष प्राप्ति के लिए ऋषि-महर्षि चीता या बाघ के चर्म से निर्मित आसनों का प्रयोग करते थे । इससे उनकी आध्यात्मिक शक्ति भी बढ़ती थी व तेज में भी इजाफा होता था ।

✶ अब लाल कम्बल की बात करते हैं । आपने देखा व प्रत्यक्षतः महसूस किया होगा कि जब आपके घर में कोई यज्ञ व हवन होता है, पूजा-पाठ होता है, कथा का आयोजन होता है, तो पंडित जी व जजमान के लिए दो आसान बिछाए जाते हैं । वे प्रायः कम्बल के ही आसन होते हैं, जिनका रंग सफेद ,भूरा या लाल होता है । इसी आसन पर बैठकर पंडित जी का जजमान धार्मिक कर्मकांड करते हैं। पुराने जमाने से चली आ रही यह परम्परा बदस्तूर कायम है। ऐसी मान्यता है कि कम्बल से बने आसन पर बैठने से व्यक्ति के मन की सारी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं तथा उसके कार्यों में सफलता मिलती है ।

आसनों का वैज्ञानिक महत्त्व :

न केवल धार्मिक व आध्यात्मिक दृष्टिकोण से ही, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि कोण से भी आसनों का काफी महत्त्व है ।

✶ उचित आसनों का प्रयोग करने से व्यक्ति प्रभाव शाली बन जाता है। उसके चेहरे पर एक ऐसी अलौकिक चमक व तेज विद्यमान रहता है, जो उसे असाधारण पुरुष बनाता है।
✶ साधु-संतों, तपस्वियों, महात्माओं के चेहरे पर एक अद्भुत तेज विद्यमान रहता है। उनकी आँखों में जैसी चमक होती थी, उसका सामना करना हर किसी के वश की बात नहीं होती थी । यह चमक या तेज क्या था ? दरअसल यह एक ऐसी आध्यात्मिक शक्ति व बल होता था, जो तपस्वी को सर्वश्रेष्ठ व असाधारण बनाता था । आज भी आपने ऐसे साधु-महात्माओं, ऋषि-मुनियों को देखा होगा, जो नियमित रूप से पूजा-पाठ व धार्मिक अनुष्ठान करते रहते हैं, उनके चेहरे पर एक विशेष प्रकार की आभा देखी जा सकती है । एक विशेष प्रकार की आध्यात्मिक शक्ति का संचय होने के कारण उनका व्यक्तित्व प्रभावशाली बन जाता है । ये लोग कर्मकांड करते समय विद्युत के कुचालक आसनों का प्रयोग करते हैं। ऐसे आसन बिछाकर बैठने व कर्मकांड करने से या तपस्या या साधना करने से मनुष्य या योगी की संचित की गई शक्ति व्यर्थ नहीं जाती और शरीर में एकत्रित होती जाती है। वहीं अगर विद्युत के सुचालक आसन बिछाकर तपस्या की जाती है, साधना की जाती है, कार्य सिद्धि की जाती है, तो व्यक्ति के शरीर में संचित की गई आध्यात्मिक शक्तियाँ सुचालक आसनों के कारण जमीन में समाकर नष्ट हो जाती हैं। इस तरह व्यक्ति को उसके कार्य व सिद्धि का कोई लाभ नहीं मिलता है। इन सब कारणों से यह कहा जा सकता है कि आसन बिछाने के वैज्ञानिक लाभ भी हैं ।

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