अमीरी-गरीबी (प्रेरक लघु कहानी) | Prerak Laghu Kahani

Last Updated on July 22, 2019 by admin

एक बार एक बहुत ही दरिद्र आदमी, जिसे कभी भर पेट अन्न नहीं मिलता था,घबराकर एक महात्मा के पास पहुँचा और बोला, “महाराज, मैं धन के बिना बडा अशांत हुँ, खाने को अन्न नहीं, पहनने को वस्त्र नहीं, ऐसी कृपा करो कि मैं पूर्ण धनी हो जाऊँ।”
संत को उसपर दया आ गई। उसके पास एक पारसमणि थी, उन्होंने वह पारसमणि उसे देते हुए कहा, “जाओ, इससे जितना चाहो, सोना बना लेना।”

पारसमणि पाकर वह दरिद्र व्यक्ति खुशी-खुशी अपने घर आ गया और पारसमणि से बहुत सा सोना बनाया, फिर वह धनी बन गया। उसकी गरीबी दूर हो गई, लेकिन अब उसे अमीरी का दुःख सताने लगा। नित्य नए दु:ख, राज्य का दुःख, चोरों का भय, सँभालने की परेशानी, किसी प्रकार का चैन नहीं।

एक दिन वह हारकर फिर संत के पास गया और बोला, “महाराज आपने गरीबी का दु:ख तो दूर कर दिया, लेकिन मैं जानता नहीं था कि अमीरी में भी दु:ख होता है। उन दुःखों ने मुझे घेर लिया है। कृपया कर इनसे बचाइए।”

संत बोले, ‘लाओ पारसमणि मुझे लौटा दो, फिर वैसा ही हो जाएगा।”
वह व्यक्ति बोला, “नहीं महाराज, अब मैं गरीब तो नहीं होना चाहूँगा, लेकिन ऐसा सुख दीजिए, जो गरीबी और अमीरी में बराबर मिले, जो मृत्यु के समय भी कम न हो।”

संत बोले, “ऐसा सुख तो ईश्वर में है। आत्मज्ञान में है। तू आत्मज्ञान को प्राप्त कर।” यह कहकर संत ने उसे आत्मज्ञान का उपदेश देकर आत्म-दर्शन कराया और पूर्ण बना दिया। गीता में कहा गया है–सुखी वही है, जो आत्मन्येव आत्मनः तुष्ट होता है।

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