ऐलोवेरा के फायदे गुण उपयोग और नुकसान | Aloe vera Benefits and Medical Uses in Hindi

Last Updated on September 17, 2023 by admin

ऐलोवेरा (घृत कुमारी) क्या है ? : Aloe Vera in Hindi

ऐलोवेरा संपूर्ण भारत वर्ष तथा उष्ण प्रदेश में सर्वत्र पाया जाने वाला बहुवर्षीय क्षुप होता है। यह ऊसर और रेतीली ज़मीन, खेतों के किनारे और नदी के तट पर पैदा होता है। आजकल लोग इसे अपने घरों में गमलों में भी ऊगाते हैं।

एलोवेरा का पौधा कैसा होता है :

ऐलोवेरा ऐसा पौधा होता है जिसमें तना नहीं होता, इसकी जड़ से ही चारों ओर 1 से 2 फुट लम्बे तथा 3-4 इंच चौड़े हरे रंग के चिकने पत्ते निकलते हैं। इन पत्तों के किनारे पतले और मध्य भाग मोटा होता है। किनारे पर दोनों ओर छोटे छोटे नुकीले कांटे होते हैं जो कि लौहे की आरी तरह दिखाई देते हैं। इन पत्तों के मध्य से 2-3 फीट लम्बा पुष्प ध्वज निकलता है जिस पर लाल रक्ताभ पुष्प आते है।

शीतकाल के अन्त में पुष्प और फल लगते हैं। इसके पत्तों को काटने या बीच में से छीलने पर घी की तरह चिकना पीताभ वर्ण का पिच्छल द्रव्य निकलता है इसीलिए इसे हिन्दी में घी कुंआर या घी गुवार और संस्कृत में घृतकुमारी कहा जाता है।

इस पिच्छिल द्रव्य के सूख कर जमे हुए रूप को कुमारी सार या एलवा या मुसब्बर कहा जाता है जो कई रोगों की दवाएं बनाने में प्रयोग किया जाता है। ये दवाएं विशेष कर महिलाओं के नारी रोगों को दूर करने वाली होती हैं। स्त्रियों के गर्भाशय-विकार, गर्भस्राव, रजोरोध, दूध की कमी, स्तनों का ढीलापन और मासिक ऋतु स्राव की अनियमितता आदि के लिए इसका उपयोग बड़ा ही लाभप्रद होता है।

ऐलोवेरा का विभिन्न भाषाओं में नाम :

  • संस्कृत – घृत कुमारी, गृहकन्या, स्थूलदला, दीर्घ पत्रिका, रसायनी
  • हिन्दी – घी गुवार, घीकुं आर, ग्वारपाठा, ढेकवार
  • पंजाबी – कुवार गंडल
  • बंगला – घृतकोमरी
  • गुजराती – कुंवार, कुंवार पाठु
  • मराठी – कोरफड, कोरकांड
  • तामिल – चिरुली, चिरु कत्तारे
  • तेलगु – कलबंद
  • कन्नड़ – लोलिसार
  • मलयामल – कराल,चेनी नायकम्, कुमारी
  • फ़ारसी – दरख्ते सिब
  • इंगलिश -इंडियन एलो (INDILAN ALOE)
  • लैटिन – ऐलोवेरा (ALOE VERA)

ऐलोवेरा के औषधीय गुण : Aloe Vera ke Gun in Hindi

  • भावप्रकाश निघण्टु के अनुसार यह दस्तावर, शीतल, नेत्रों के लिए हितकारी, रसायन, मधुर रस युक्त, पौष्टिक बलवीर्यवर्द्धक तथा वात, विष, गुल्म, प्लीहा व यकृत के विकार, अण्डवृद्धि, कफज्वर, ग्रन्थि, अग्निदाह, विस्फोट, रक्त पित्त, रक्त विकार और त्वचा रोग आदि विकारों को दूर करने वाली वनस्पति है।
  • सर्व सुलभ ऐलोवेरा (ग्वारपाठा) अत्यन्त ही उपयोगी औषधि है। इस हेतु इसके पत्तों के मध्य का गूदा उपयोग में लिया जाता है जो कि मीठा, कडुआ, शीतल, विरेचक, पिच्छिल तथा चिकना होता है। कड़आ व तिक्त होने से यह कफ-पित्त का नाश करता है, शरीर के अन्दर की सूजन को दूर करता है, दर्द को दूर कर घाव को जल्दी भरने वाला होता है।
  • यदि ऐलोवेरा का सीमित मात्रा में सेवन किया जाए तो यह रामबाण औषधि की तरह कार्य कर भूख बढ़ाकर भोजन को पचाने वाला, यकृत को क्रियाशील करने वाला तथा मल को बाहर निकालने वाला सिद्ध होता है।
  • ऐलोवेरा पेट के कीड़ों को नष्ट करने वाला है। छोटी आंत पर क्रिया कर पित्त के प्रवाह को बढ़ाता है।
  • ऐलोवेरा की अधिक क्रियात्मकता बड़ी आंत पर होती है जिससे आंतों की संकुचन क्रिया बढ़ जाती है। यही कारण है कि इसकी अधिक मात्रा सेवन करने पर यह विरेचन का कार्य करता है यानी दस्त लगाने वाला हो जाता है। कभी-कभी मरोड़ के साथ दस्त होने पर खून भी आ जाता है। हालाकि यदि सामान्य सीमित मात्रा में इसका प्रयोग किया जाए तो गहरे रंग का बंधा हुआ सामान्य दस्त होता है।
  • आयुर्वेद के अनुसार सीमित मात्रा में ऐलोवेरा का प्रयोग निर्भयता के साथ किया जा सकता है और समशीतोष्ण होने के कारण सभी ऋतुओं में इसका प्रयोग किया जा सकता है।
  • अल्प और सीमित मात्रा में उपयोग में लाने पर ऐलोवेरा मलशुद्धि कर जठराग्नि प्रदीप्त करता है, रोगोत्पादक तत्वों को शरीर से बाहर कर शरीर को बलवान बनाता है तथा खांसी, श्वास, उदर रोग, वात व्याधि, अपस्मार, गुल्म, नष्टार्तव, हल्का बुखार, कामला (पीलिया), पाण्डू (खून की कमी), अम्लपित्त, कृमिरोग आदि को दूर करता है।
  • ऐलोवेरा के पत्तों के गूदे का बाह्य प्रयोग भी होता है। जले व कटे हुए स्थान पर इसके गूदे का लेप तत्काल करने से लाभ होता है।
  • ऐलोवेरा के गूदे का लेप पेट के ऊपर बांधने से पेट के अन्दर का मल बाहर निकल जाता है और पेट मुलायम हो जाता है।
  • पीलिया के रोगी को अल्प मात्रा में ऐलोवेराका रस देने से दस्त साफ होता है तथा पित्त का जमाव कम होकर आंखें और शरीर का पीलापन कम होकर रोग में लाभ होता है।
  • चूंकि ऐलोवेरा खून साफ़ करता है अतः चर्म रोगों में भी लाभ करता है।
  • ऐलोवेरा दिमाग़ में ठण्डक प्रदान कर मस्तिष्क भ्रम को दूर करता है।
  • स्त्रियों के मासिक धर्म में होने वाली रुकावट को भी ऐलोवेरा दूर करता है।

रासायनिक संगठन :

ग्वारपाठा में एलोइन (Aloin) नामक ग्लूकोसाइड समूह होता है। इसके अतिरिक्त कुछ राल तथा एक सुंगधित तैल होता है। इसमें पाये जाने वाला एन्थ्राक्विनोन नामक तत्व छोटी आंत में देर से अवशोषित होता है और यह बड़ी आंत मेंउग्रता लाता है जिससे बड़ी आंत की गति तेज़ होती है। और उसमें रक्त संचार बढ़ता है।

ऐलोवेरा के फायदे और उपयोग : Health Benefits and Uses of Aloe Vera in Hindi

ग्वारपाठा कई व्याधियों में उत्तम औषधि का कार्य करता है। इसके पत्तों के गूदे को विभिन्न प्रकार से औषधीय प्रयोग में लिया जाता है जैसे गूदे का सीधा लेप करना, गूदे के रस का सेवन कराना तथा गूदे के रस से विभिन्न औषधियों का निर्माण कर सेवन कराना आदि इसके गूदे को सुखाकर बनाये गए ‘एलवा’ का भी विभिन्न औषधि निर्माण में उपयोग होता है। आजकल सौन्दर्य प्रसाधन के रूप में एलोवेरा जेल या ग्वारपाठे के पत्तों के रस के लेप का प्रचलन ब्यूटी पार्लर में बहुत बढ़ गया है।
इसके अलावा ग्वारपाठे के उपयोग से शास्त्रोक्त विधि से निर्मित औषधियां जैसे कुमारी आसव, कन्या लोहादि वटी, विरेचन वटी आदि का बहुत प्रयोग किया जाता है। कुछ नुस्खे घर पर ही निर्मित किये जाते हैं जैसे घीकुंवार का अचार, कुमारी पाक, कुमारी घृत आदि। आइए अब विभिन्न व्याधियों में ग्वारपाठे के औषधीय प्रयोग पर चर्चा करते हैं

1. अग्निदग्ध में ऐलोवेरा के फायदे : हर घर में ग्वार पाटे लगे होने की एक उपयोगिता यह है कि यह त्वचा के जल जाने पर प्राथमिक उपचार की महत्वपूर्ण औषधि है। आंच, गर्म वस्तु, गरम पानी चाय आदि के कारण जलने पर ग्वारपाठे के गूदे का लेप तत्काल जले हुए स्थान पर करने से जलन में तुरन्त राहत होती है और जले का निशान भी नहीं पड़ता है। ( और पढ़े – आग से जलने पर आयुर्वेद के सबसे असरकारक 79 घरेलु उपचार)

2. गांठ या अपरिपक्व व्रण में ऐलोवेरा के फायदे : यदि कोई घाव (व्रण) पक नहीं रहा हो या अधपकी गांठ (Abscess) हो तो ग्वार पाठे के गूदे में थोड़ा सज्जीखार और हल्दी मिलाकर बांधने से वह जल्द पक कर फूट जाता है और मवाद बह कर घाव शुद्ध हो जल्दी भर जाता है। मात्र ग्वार पाठे के गूदे को गरमकर बांधने से भी फोड़ा पक कर मवाद बाहर निकल जाता है और घाव शुद्ध हो कर जल्दी भर जाता है।

3. सामान्य गांठ व बाहरी सूजन में ऐलोवेरा के फायदे : ग्वार पाठे के पत्तों को बीच में से छील कर, कांटे अलग कर, उन पत्तों पर गूदे की ओर हल्दी चूर्ण लगा कर कुछ गरम कर बांधने से बाहरी गांठ या सूजन बैठ जाती है। ( और पढ़े -गाँठ कैसी भी हों यह रहे 9 रामबाण घरेलु उपाय )

4. चोट-मोच में ऐलोवेरा के फायदे : ग्वार पाठे के पत्तों को छील कर उसके गूदे की तरफ अफीम या हल्दी मिलाकर लगा कर चोट या मोच पर बांधने से दर्द में लाभ होता है व चोट या मोच ठीक हो जाते हैं।

5. तिल्ली बढ़ना में ऐलोवेरा के फायदे : ग्वार पाठे के 5 मि.लि. रस में सुहागा का चूर्ण 250 मि. ग्रा. मिलाकर दिन में एक बार सुबह देने से तिल्ली रोग में लाभ मिलता है।

6. सिर दर्द में ऐलोवेरा के फायदे : ग्वारपाठे के ताजे रस में थोड़ी मात्रा में दारु हरिद्रा का चूर्ण मिलाकर हल्का गरम कर सिर पर बांधने से सिर दर्द में लाभ मिलता है। ग्वार पाठे का रस निकाल कर उसमें गेहूं का आटा मिलाकर 2 रोटी बना लें। इसके बाद रोटी को गाय के घी में डुबो दें। रोटी को सुबह सूर्योदय से पहले खाकर फिर से सो जाएं। इस प्रकार 5-7 दिन लगातार प्रयोग करने से माइग्रेन या हर प्रकार के सिर दर्द में लाभ होता है।

7. गंजापन में ऐलोवेरा के फायदे : ग्वारपाठे के रस को सिर पर लेप करने से बाल उगने लगते है। ( और पढ़े –गंजापन का चमत्कारी इलाज )

8. नेत्र रोग में ऐलोवेरा के फायदे : इसके गूदे को आंखों पर लगाने से आंखों का लालपन खत्म हो आंखों की जलन खत्म होती है। आंखों में दर्द हो तो इसके गूदे में अफीम मिलाकर पोटली बनाकर आंखों पर रखने से दर्द दूर होता है।

9. स्तन की गांठ में ऐलोवेरा के फायदे : स्तन में सूजन या गांठ होने की प्रारम्भिक अवस्था में ग्वारपाठे की जड़ का चूर्ण बनाकर उसमें हल्दी चूर्ण मिलाकर हल्का गरम कर बांधने से दर्द कम होकर सूजन में लाभ मिलता है। यह उपचार दिन में दो बार करना चाहिए।

10. पेट की गांठ में ऐलोवेरा के फायदे : जब पेट में मल जमा हो कर पेट के किसी भाग में उभार या गांठ सा हो जाए तब रोग के लक्षण की शुरुआत में ग्वारपाठे के गूदे को पेट पर बांधने से पेट की गांठ बैठ जाती है, कठोर पेट मुलायम हो जाता है और आंतों का जमा मल बाहर आ जाता है, लाभ न होने पर आभ्यांतर रूप से औषध लेनी चाहिए।

11. वायु गोला या गुल्म रोग में ऐलोवेरा के फायदे : ग्वारपाठे का गूदा 60ग्राम, शुद्ध घी 60 ग्राम, हरीतकी चूर्ण 10 ग्राम व सेन्धा नमक 10 ग्राम- सबको अच्छी तरह से मिला कर इसकी 10-10 ग्राम मात्रा सुबह-शाम गरम पानी के साथ लेने से पेट की गांठ, वायु गोला आदि में लाभ होता है।

12. अपच में ऐलोवेरा के फायदे : ग्वारपाठे का ताज़ा रस 10 मि. लि. में 5 मि.लि. शहद व थोड़ा सा ताज़ा नींबू का रस मिलाकर सुबह-शाम खाली पेट लेने से भोजन का पाचन होकर भूख खुलती है। ( और पढ़े –खाना हजम न होना, अपच,बदहजमी के 6 घरेलु उपचार )

13. अपान दुष्टि या गैस में ऐलोवेरा के फायदे : ग्वारपाठे का गूदा 5 ग्राम, गाय का घी 5 ग्राम, हरड़ चूर्ण 1 ग्राम और सेन्धानमक 1 ग्राम मिलाकर सुबह-शाम लेने से पेट में गैस बनने की समस्या में आराम मिलता है।

14. पेट दर्द में ऐलोवेरा के फायदे : ग्वारपाठे की जड़ का चूर्ण 5 ग्राम पानी मिलाकर घोट कर छान लें। फिर इसमें मूंग के दाने के बराबर भुनी हींग मिलाकर सेवन करने से पेट दर्द दूर होता है।

15. अम्लपित्त में ऐलोवेरा के फायदे : ग्वारपाठे के रस की 5 मि.लि. मात्रा दिन में दो बार पीने से अम्लपित्त या एसिडिटी में लाभ होता है।

16. यकृत रोग में ऐलोवेरा के फायदे : लिवर के रोगों के लिए ग्वारपाठा सबसे उत्तम औषधि है। 200 ग्राम ग्वारपाठे के पत्तों का रस को 100 ग्राम शहद में मिलाकर कांच या चीनी मिट्टी के पात्र में डाल कर कपड़े से मुंह बन्द कर एक सप्ताह तक धूप में रखे। फिर इसे अच्छे से मिलाकर छान लें। यह घृतकुमारी का आसव है। इसकी 10 ग्राम मात्रा सुबह शाम गरम पानी के साथ लेने से यकृत के रोग दूर होते हैं। इसकी अधिक मात्रा विरेचक होती है परन्तु उचित मात्रा में सेवन करने से मल एवं वात की प्रवृत्ति ठीक होने लगती है, यकृत सबल हो जाता है और उसकी क्रिया सामान्य हो जाती है।

17. पीलिया (कामला) में ऐलोवेरा के फायदे : कामला रोग में ग्वारपाठे के गूदे का रस एक से दो चम्मच मट्ठे के साथ सुबह-शाम देने से तथा इसके रस की सुबह एक बार 15 से 20 बूंदें नाक में डालने से लाभ होता है। ग्वारपाटे का गूदा निकाल कर इसके बाद जो छिलका बचे उसे मटकी में भर दें तथा फिर इसमें बराबर मात्रा में नमक मिलाकर मुंह बन्द कर कंडे की आंच में रख दें। जब मटकी अन्दर का द्रव्य जल कर काला हो जाए तब इसे बारीक पीस कर शीशी में भर कर रखें। इसे कुमारी लवण कहते हैं। इसकी 1-2 ग्राम मात्रा सुबहशाम गरम पानी या मट्ठे के साथ देने से पीलिया रोग में लाभ होता है।

18. ज्वर में ऐलोवेरा के फायदे : ग्वारपाठे की जड़ का काढ़ा बनाकर दिन में तीन बार पीने से ज्वर कम होता है।

19. जोड़ों का दर्द में ऐलोवेरा के फायदे : 5 ग्राम ग्वार पाठे के गूदे को एक ग्राम सोंठ चूर्ण में मिलाकर सुबह एक बार देने से जोड़ों के दर्द या गठिया में लाभ होता है।

20. क़ब्ज़ में ऐलोवेरा के फायदे : ग्वारपाठे के गूदे का रस 5 ग्राम, 4-5 तुलसीपत्र व 1 ग्राम सनायपत्ती चूर्ण मिलाकर भोजन के एक घण्टे बाद सेवन करने से क़ब्ज़ दूर होता है या ग्वारपाठे के रस की 5 ग्राम मात्रा में एक ग्राम हरड़ चूर्ण व थोड़ा सा काला नमक मिलाकर देने से भी क़ब्जियत दूर होती है।

21. शोथ या सूजन में ऐलोवेरा के फायदे : ग्वारपाठे के पत्तों का रस 20 मि. लि. में 5-5 ग्राम सफ़ेद जीरा व हल्दी चूर्ण मिलाकर लेप करने से सूजन में आराम पड़ता है।

22. बवासीर में ऐलोवेरा के फायदे : जब खूनी बवासीर के कारण गुदा द्वार पर जलन या दर्द हो तो 50 ग्राम ग्वारपाठे के गूदे में 5 ग्राम गेरू (गैरिक) मिलाकर टिकिया बना लें। इस टिकिया को रूई के फाहे पर रखकर गुदा स्थान पर रखकर लगोंट की तरह पट्टी बांध देने से दर्द व जलन में राहत होती है तथा मस्से सिकुड़ कर दब जाते हैं।

23. हिचकी में ऐलोवेरा के फायदे : 2 चम्मच ग्वारपाठे के रस में आधा चम्मच सोंठ चूर्ण मिलाकर सेवन करने से लाभ मिलता है।

24. मासिक धर्म की अनियमितता में ऐलोवेरा के फायदे : स्त्रियों में मासिक धर्म ठीक से न होने की अवस्था में 20 ग्राम ग्वारपाठे के गूदे में 10 ग्राम पुराना गुड़ मिलाकर सेवन कराने से अथवा 10 ग्राम ग्वारपाठे के गूदे में आधा ग्राम पलाशक्षार मिला कर 25-सेवन कराने से मासिक धर्म खुल कर समय पर आता है।

26. कमर दर्द में ऐलोवेरा के फायदे : 10 ग्राम ग्वारपाठे के गूदे में शहद एक चम्मच और सोंठ चूर्ण एक ग्राम मिलाकर सेवन कराने से कमर दर्द में लाभ मिलता है। अथवा 10 ग्राम ग्वारपाटे का गूदा 20 ग्राम सोंठ चूर्ण, 20 ग्राम असगंध चूर्ण तथा 45 नग लौंग का चूर्ण – सबको मिलाकर इसकी चटनी बना लें। इस चटनी की 4 ग्राम मात्रा सुबह एक बार लेने से भी कमर दर्द में लाभ होता है।

27. कान का दर्द में ऐलोवेरा के फायदे : ग्वारपाठे के ताजे रस को हल्का गुनगुना गरम कर कान में डालने से दर्द में राहत होती है।

28. पेशाब में जलन में ऐलोवेरा के फायदे : 10 ग्राम ग्वारपाठे के गूदे में 2 चम्मच शक्कर मिलाकर दूध और पानी मिलाकर पीने से पेशाब की जलन व तकलीफ़ दूर होती है।

29-उपदंश के घाव या व्रण में ऐलोवेरा के फायदे :
ग्वारपाठे के गूदे का लेप करने से जलन कम होकर घाव भरने लगता है।

30-दमा या श्वास रोग में ऐलोवेरा के फायदे :
ग्वारपाठे के 250 ग्राम पत्तों और 25 ग्राम सेन्धा नमक को मिलाकर मिट्टी के बरतन में डालकर अग्नि पर रखें। जब बरतन में रखे पदार्थ जल कर राख बन जायें तब इसे आग से उतार लें। इस राख की 2 ग्राम मात्रा 10 ग्राम मुनक्का (द्राक्षा) के साथ सेवन कारने से दमा रोग में लाभ होता है।

31-खांसी में ऐलोवेरा के फायदे :
आधा चम्मच ग्वारपाठे के रस में चुटकी भर सोंठ चूर्ण मिलाकर शहद के साथ चाटने से खांसी में लाभ होता है।

32-नपुंसकता एवं वात रोग में ऐलोवेरा के फायदे :
ग्वारपाठे का गूदा 1 भाग, गेहूं का आटा 1 भाग और गाय का घी 1 भाग – तीनों लेकर मिलाकर मन्दी आंच पर सेकें। जबआटे का रंग हल्का गुलाबी हो जाए। तब उसमें दो भाग शक्कर मिलाकर हलुआ बना लें। इसका सेवन 8 से 10 दिन करें। सेवन काल की अवधि में खटाई, गुड़, बासी भोजन, तेज़ मिर्च मसाला, शराब व अन्य व्यसनों का परहेज़ रखते हुए मधुर सुपाच्य पौष्टिक भोजन ही करें। इससे शरीर की धातुएं पुष्ट होती है, वीर्य वृद्धि हो पौरुष शक्ति बढ़ती है तथा अनेक प्रकार के वात रोग का शमन होता है। इसके सेवन से पहले उदर शुद्धि करें तथा यदि मधुमेह या अन्य ऐसा कोई रोग हो तो सेवन करने से पूर्व चिकित्सक से सलाह लें।

ऐलोवेरा के नुकसान : Side Effects of Aloe vera in Hindi

  1.  ऐलोवेरा लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
  2. इसका अत्यधिक मात्रा में सेवन शरीर के लिए नुकसानदेय हो सकता है। मरोड़ के साथ खूनी दस्त होना, गर्भाशय के संकुचनों के बढ़ने से रक्तप्रदर होना तथा खूनी बवासीर जैसे रोगों की उत्पत्ति इसके अधिक सेवन से हो सकती है। अतः इसका खयाल रखें।
  3. घीगुवार या ग्वारपाठा के रस को सुखाकर एक पदार्थ बनाया जाता है जिसे ‘मुसब्बर कहते है और संस्कृत भाषा में कृष्णबोल, कुमारी रस, हिन्दी में एलवा, मराठी में एलिया, गुजराती में एलियो, बंगला में मोषब्बर, फ़ारसी में शबयार और इंगलिश में एलो (Aloe) कहते हैं। उत्तम क़िस्म का एलवा कुछ सुनहरी भूरे रंग का बाहर से कठिन भीतर से नरम पारदर्शी होता है। जफराबाद (काठियावाड़) का एलवा काले रंग का होता है। एलवा को औषधि के रूप में नष्टार्तव, अनार्तव, मासिक धर्म की अनियमितता आदि स्त्री रोगों तथा पेट साफ करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। चूंकि यह गर्म होता है इसलिए गर्भवती स्त्री को नहीं दिया जाता अन्यथा गर्भपात का भय रहता है। एलवा का प्रयोग भी अल्प अवधि के लिए ही उचित है, लम्बे समय तक लेने से पेट खराब हो सकता है तथा पेचिस, मरोड़ युक्त पतले दस्त आदि पेट के रोगों की उत्पत्ति हो सकती है।

अस्वीकरण: इस लेख में उपलब्ध जानकारी का उद्देश्य केवल शैक्षिक है और इसे चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं ग्रहण किया जाना चाहिए। कृपया किसी भी जड़ी बूटी, हर्बल उत्पाद या उपचार को आजमाने से पहले एक विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क करें।

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