सूतशेखर रस के 14 लाजवाब फायदे गुण और उपयोग | Sutshekhar Ras Health Benefits in Hindi

Last Updated on June 26, 2020 by admin

सूतशेखर रस क्या है : sutshekhar ras kya hai

सुतशेखर रस एक आयुर्वेदिक औषधि है जो अम्लपित्त(Acidity), वमन, संग्रहणी, खाँसी, गुल्म, मन्दाग्नि, पेट फूलना, हिचकी जैसे बहुत से रोगो के इलाज में काम आती है।
इसके दो प्रकार प्रकार है –

  1. सूतशेखर रस (स्वर्ण-युक्त) / sutshekhar ras gold
  2. सूतशेखर रस (सादा)

सूतशेखर रस की सामाग्री : ingredients of sutshekhar ras

शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, सुवर्ण भस्म, रौप्य भस्म, शुद्ध सुहागा, सोंठ, मिर्च, पीपल, शुद्ध धतूरे के बीज, ताम्र भस्म, दालचीनी, तेजपात, छोटी इलायची, नागकेशर, शंख भस्म, बेलगिरी और कचूर

सेवन की मात्रा और अनुपान :

1-1 गोली सुबह-शाम शहद, गाय का घी , मीठे बेदाने या अनार के रस, दाड़िमावलेह या शर्बत अनार अथवा लाजमण्ड के साथ दें।

सूतशेखर रस के फायदे , गुण और उपयोग : sutshekhar ras ke fayde , gun aur upyog

इस रसायन के उपयोग से अम्लपित्त, वमन, संग्रहणी, खाँसी, गुल्म, मन्दाग्नि, पेट फूलना, हिचकी आदि रोग नष्ट होते हैं।

1). श्वास  : श्वास तथा राजयक्ष्मा में भी इसका प्रयोग किया जाता है। ( और पढ़ेअस्थमा–दमा-श्वास के 170 आयुर्वेदिक घरेलु उपचार )

2). वात रोग  : यह रसायन पित्त और वातजन्य विकारों को शान्त करता है। विशेषतया– पित्त की विकृति जैसे अम्लता या तीक्ष्णता या आमाशय अथवा पित्ताशय में पित्त कमजोर हो अपना कार्य करने में असमर्थ हो गया हो, तो उसे सुधारता है। अतएव इसका प्रयोग अम्लपित्त में खट्टा वमन, कोष्ठ में दर्द होना, उदावर्त आदि पित्त-विकृति रोगों में प्राय: अधिक किया जाता है।

3). दस्त : यह पित्तदोषनाशक होते हुए हृदय को बल देनेवाला तथा संग्राही (दस्त को बाँधने वाला) भी है। इसलिए राजयक्ष्मा की प्रथम और द्वितीयावस्था में तथा संग्रहणी और अतिसार आदि वात प्रधान रोगों में दस्त कम करने तथा हृदय को बल पहुँचाने के लिए इसे देते हैं। ( और पढ़े दस्त रोकने के 33 घरेलु उपाय )

4). सूखी खाँसी : जिसमें कफ नहीं निकलता हो और रात में खाँसी का प्रकोप ज्यादा होता हो, तो सूतशेखर रस को सितोपलादि या तालीसादि चूर्ण के साथ उपयोग करने से खाँसी दूर हो जाती है।

5). पेट दर्द  : यह पाचक पित्त की विकृति को दूर कर जठराग्नि को प्रदीप्त करता है और कोष्ठ में होनेवाले दर्द को दूर करता है, क्योंकि यह वेदनाशामक भी है, परन्तु यह अफीम की तरह शीघ्र ही वेदना (दर्द) का शमन नहीं करता, क्योंकि यह अफीम जैसा तीक्ष्ण -वीर्य प्रधान नहीं है। यद्यापि इसका प्रभाव दर्द में धीरे -धीरे होता है, परन्तु स्थायी होता है। यह उपद्रव को शान्त करते हुए मूल रोग को नष्ट करता है।
जैसे – अम्लपित्त में वात-प्रकोप से दर्द होता है और पित्त-प्रकोप के कारण खुट्टा वमन होता है, ये लक्षण प्रधानतया देखने में आते हैं। सूतशेखर रस वात-पित्तशामक गुण के कारण उपरोक्त दोनों विकारों को नष्ट करते हुए अम्लपित्त रोग को भी नष्ट कर देता है। इसलिए इसका प्रभाव धीरे-धीरे किन्तु स्थायी होता है। ( और पढ़ेपेट दर्द या मरोड़ दूर करने के 10 रामबाण घरेलु उपचार )

6). हृदय : सूतशेखर रस का प्रभाव वातवाहिनी और रक्तवाहिनी शिराओं पर भी होता है। रक्तपित्त की गति में वृद्धि हो जाने के कारण हृदय और नाड़ी की गति में वृद्धि हो जाती है। इसको सूतशेखर रस कम कर देता है। इस रसायन से रक्तवाहिनी नाड़ी कुछ संकुचित हो जाती है, जिससे बढ़ी हुई रक्त की गति अपने-आप रुक जाती है। रक्त की गति कम होने पर हृदय की गति भी ठीक रूप से चलने लगती है, जिससे हृदय को कुछ शान्ति मिल जाती है, अतएव यह हृद्य है।

7). आन्त्रिक सन्निपात में : पित्ताधिक्य होने पर सिर में दर्द, अण्ट-सण्ट बोलना, नींद न आना, प्यास, पीलापन लिये जलन के साथ दस्त होना, रक्त की गति में वृद्धि होना, सूखी खाँसी, पेशाब में पीलापन आदि लक्षण होते हैं। ऐसी अवस्था में सूतशेखर रस, प्रवाल चन्द्रपूटी और गिलोय सत्व में मिलाकर देने से पित्त की शान्ति हो जाती तथा बढ़ी हुई रक्त की गति कम हो जाती है। फिर धीरे-धीरे रोगी अच्छा होने लगता है।

8). वात और पित्त की वृद्धि  :  शरीर में वात और पित्त की वृद्धि से रक्त दूषित हो जाने पर रक्त का संचार सीधा न होकर कुछ टेढ़ा -मेढ़ा होने लगता है। यह संचार माथे की तरफ ज्यादा होता है। जिससे सिर में चक्कर आने लगता है, रोगी को मालूम होता है कि समस्त संचार घूम रहा है। रोगी बैठा हुआ रहे तो भी उसे मालूम होता है कि वह चल रहा है या ऊपर, नीचे आ-जा रहा है। इसमें आँखें बन्द हो जाती हैं, माथा शून्य होता है और कानों में सनसनाहट होने लगती है, हृदय की गति शिथिल हो जाती हैं, रोगी कभी-कभी घबराने भी लगता है। ऐसी अवस्था में सूतशेखर रस शंखपुष्पी चूर्ण १ माशा और यवासा चूर्ण १ माशा के साथ मिश्री मिला, गो-दुग्ध या ठण्डे जल के साथ देने से बहुत शीघ्र लाभ होता है।

9). आक्षेप जन्य वायु रोग में – जैसे धनुष्टंकार, अपतन्त्रक (हिस्टीरिया), अपतानक, धनुर्वात आदि रोगों में भी इसका उपयोग होता है, परन्तु ये रोग वात-पित्तात्मक होने चाहिए।

10). मासिक धर्म : कभी-कभी स्त्रियों को बच्चा पैदा होने के बाद अथवा मासिक धर्म खुल कर न होने से या दर्द के साथ होने पर चक्कर आने लगता है। यह चक्कर रह-रह कर आता है। इससे गर्भाशय में दर्द होना, कोष्ठ में दर्द होना, घबराहट और कमजोरी बढ़ते जाना, थोड़ा-थोड़ा वमन होना, बेचैनी, वमन होने के बाद पेट में दर्द होना आदि लक्षण होते हैं। ऐसी हालत में सूतशेखर रस के उपयोग से वातजन्य आक्षेप तथा पित्तज दोष शान्त हो जाते हैं। ( और पढ़ेमासिक धर्म में होने वाले दर्द को दूर करते है यह 12 घरेलू उपचार  )

11). वातज सिर-दर्द में : सिर में कील ठोंकने के समान पीड़ा होने से रोगी का व्याकुल हो जाना, सम्पूर्ण माथे में दर्द होना, दर्द के मारे रोगी का पागल-सा हो जाना, रोना चिल्लाना आदि लक्षण होते हैं और पित्तज सिर दर्द में – सिर में जलन के साथ दर्द होना, कफ और मुँह सूखना, वमन होना आदि लक्षण होते हैं। इसमें सूतशेखर रस बहुत फायदा करता है।

12). आमाशय के व्रण : आमाशय की श्लैष्मिक कला में सूजन के साथ छोटे-छोटे पतले व्रण हो जाते हैं, फिर इसमें कड़े अन्न का संयोग होने से दर्द होने लगता है और वह अन्न वहाँ पर रहकर सड़ने लगता है और जब वमन के साथ वह अन्न निकल जाता है तब कुछ शान्ति मिलती है। ऐसी अवस्था में सूतशेखर रस देने से आमाशय के व्रण का रोपण हो जाता तथा पित्त का स्त्राव भी नियमित रुप से होने लगता और अपचन आदि विकारों के नष्ट होने से दर्द भी नहीं होती है। औ.गु.ध.शा.

13). अम्लपित्त : सूतशेखर रस 1 रत्ती (121.50 मि.ग्रा.) तथा कामदुधा रस 2 रत्ती (243 मि.ग्रा.) शहद के साथ प्रातः तथा सायं लें। भोजन व नाश्ते के बाद इसके ठीक पहलेवाला ऊपर लिखा नुस्खा सेवन करें। रात में सोते समय 3 ग्राम ईसबगोल की भूसी तथा 3 ग्राम मधुयष्ट्यादि चूर्ण मिलाकर पानी के साथ लें। यह उपाय सभी प्रकार के अम्लपित्त में लाभप्रद हैं ।

सूतशेखर रस के कुछ अन्य लाभ :

  1. वमन : किसी भी कारण से उलटी होती हो तो इस योग का प्रयोग करने से आराम होता है। इसकी एक गोली दूध या शहद में घोंट कर सेवन करने से अद्भुत लाभ होता है। उलटी के कारण पेट में कुछ न टिक पाता हो तब सूत शेखर रस का सेवन लाभ देता है। अपच, अम्लपित्त, उदर-व्रण (ड्यूडेनल अलसर), बस या वायुयान के सफ़र के कारण होने वाली उलटी (ट्रेवलिंग नासिया) और गर्भवती स्त्री को सुबह-सुबह होने वाली प्रातन्ति (मार्निग सिकनेस) के कारण होने वाली उलटियों को बन्द करने के लिए यह अच्छी दवा है। गर्भवती स्त्री को प्रातः उठते ही मुंह शुद्ध करके एक गोली दूध या शहद या आंवले के मुरब्बे की चाशनी के साथ सेवन करना चाहिए।
    यात्रा शुरू करने से एक घण्टे पहले इसकी एक गोली ले लेने से सफ़र में उलटी नहीं होती। उदरव्रण के रोगी को 40-45 दिन तक एक-एक गोली सुबह शाम सेवन करना चाहिए। उचित पथ्य का पालन और अपथ्य का त्याग करते हुए उदरव्रण का रोगी इस योग का सेवन करे तो अलसर ठीक हो सकते हैं। परीक्षित है।
  2. अम्लपित्त : पित्त का प्रकोप लम्बे समय तक बना रहे तो अम्लपित्त की स्थिति बन जाती है। कुछ दवाओं के सेवन से तात्कालिक लाभ हो जाता है पर दवा बन्द करते हुए पुनः वही स्थिति लौट आती है। इस योग का सेवन करने पर ऐसा नहीं होता।
  3. चक्कर : पित्त का प्रकोप होने पर जी मचलाना और घबराना, बेचैनी होना व चक्कर आना आदि लक्षण प्रकट होते हैं। इस रस का सेवन करने पर यह सब व्याधियां नष्ट होती हैं। यह योग हृदय और नाड़ी को बल देता है।
  4. पथरी : पित्त शामक औषधियों के साथ सूतशेखर रस का सेवन करने से पित्ताश्मरी (पथरी) निकल जाती है और कई बार ऑपरेशन की नौबत टल जाती है।
  5. टायफाइड : टायफाइड (आंत्रिक ज्वर) में पित्त प्रकोप के कारण रोगी को बेचैनी, सिरदर्द, घबराहट, अनिद्रा आदि कष्ट होते हैं। इन कष्टों को दूर करने के लिए यह रस उत्तम औषधि है।
  6. गेस्ट्रिक ट्रबल : खूब डकारें आना, हिचकी चलना, अफारा, छाती में जलन, घबराहट अपानवायु न निकलना जिससे पेट फूलना और छाती पर दबाव पड़ना आदि लक्षणों को दूर करने के लिए यह बहुत अच्छी दवा है।
  7. आंव : पाचन ठीक न होने पर आंव बनने लगती है जिससे पेट में मरोड़ होना, आंवयुक्त चिकनाई और कफयुक्त मल निकलना, पतले दस्त (आमातिसार) होना, जोड़ों व रग-पट्ठों में दर्द होना, ज्वरातिसार (दस्त के साथ बुखार) आदि व्याधियों के लिए सूतशेखर रस बहुत अच्छी दवा है। इस निरापद गुणकारी दवा को घर पर अवश्य रखना चाहिए।
  8. सिर दर्द : यदि पित्त या वात के प्रकोप से सिर दर्द हो रहा हो, सिर दर्द सहन न हो रहा हो मानो सिर फट जाएगा, उलटी होने पर आराम हो जाता है लेकिन वात प्रकोप में उलटी प्रायः नहीं होती और जल्दी आराम भी नहीं होता। ऐसी स्थिति में सूत शेखर रस लेना उत्तम लाभ करता है।
  9. अतिसार : पित्त या वात के प्रकोप के कारण लगने वाले दस्त (पित्तातिसार और वातातिसार) लगने पर भी यह रस अच्छा काम करता है।
  10. हिचकी : हिचकी चलने को हिक्का रोग कहते हैं। जब खूब तेज़ हिचकियां चलें, मुंह सूखे, सूखे-सूखे से उबके आएं, पसीना आए, कण्ठ में जलन हो, ठण्डा पानी पीने से राहत मालूम दे पर फिर हिचकी चलने लगे तो सूत शेखर रस का सेवन उपयोगी होता है।
  11. उदावर्त : वात कुपित होने पर पेट फूलता है, गैस बनती है और बढ़ती है, अपान और समान वायु विकृत होती है, अपान वायु के रुकने से इसकी विलोम गति होती है जिससे अफारा होता है, पेट फूलता है और कष्ट होता है। आंतों में पुरःसरण क्रिया होने से आंत फूलने लगती है जिससे पीड़ा होती है यही उदावर्त (गैस ट्रबल) है। सूत शेखर रस इन सब विकारों पर विशिष्ट कार्य करता है। इसके प्रभाव से वायु का अनुलोमन (नीचे की तरफ़ गति करना) होकर बाहर निकलना, पुरः सरण क्रिया व्यवस्थित होना और मल शुद्धि होना आदि गतिविधियां सुचारु रूप से होने से बेचैनी व पीड़ा नष्ट होती है। यह रस जुलाब नहीं है फिर भी शामक गुण वाला होने से वायु के प्रकोप का शमन करके उसे अनुलोम गति प्रदान करता है।
  12. जलन : त्वचा के भीतरी भाग में स्थित वातवाहिनी और संज्ञावाहिनी नाड़ियों में जब क्षोभ होता है तो त्वचा पर जलन होती है। यह क्षोभ कई कारणों से होता है जैसे रक्त विकार, कोष्ठ विकार, शराब पीना, दूषित जल पीना, तेज़ उष्णता का प्रभाव आदि। शराबियों को यह दाह अति उग्रता से होता है। सूत शेखर रस इस दाह को दूर करता है।
  13. सेन्द्रिय विष : लगातार अपच और क़ब्ज़ की स्थिति बनी रहे तो आंतों में फंसा मल या अपचा अन्न सड़ता है और इससे घोर आम विष की उत्पत्ति होती है। इससे उत्पन्न हुए सेन्द्रिय विष से विविध व्याधियां उत्पन्न होती हैं जैसा कि वाग्भट ने कहा है-
    ‘सर्वेषामेव रोगाणां निदानं कुपिता मलाः’ यानी मल कुपित होना कई व्याधियों को उत्पन्न करने का कारण हो जाता है। सूत शेखर रस इस विष को नष्ट करने वाली उत्तम दवा है।
  14. कीटाणु : कीटाणुओं के कारण भी कुछ व्याधियां उत्पन्न होती हैं। विसूचिका (Cholera), संक्रमित पीलिया (Infectious Jaundice), खांसी आदि संक्रमणजन्य व्याधियां कीटाणुओं के प्रभाव से होती हैं। कीटाणुजन्य विसूचिका (हैजा) में प्रथम अवस्था से तीसरी अवस्था (Stage) यानी प्रत्येक स्थिति और अवस्था में सूत शेखर रस बहुत अच्छा काम करता है। रोगी की पीड़ा, व्याकुलता खट्टी उलटी, एंठन, मरोड़ आदि कष्टों को दूर करने में यह रस अमृत की तरह काम करता है।

सारांश यह है कि सूत शेखर रस आयुर्वेद के महा सागर का ऐसा अमूल्य रत्न है जो अनेक व्याधियों को, जो पित्त और वात के प्रकोप के कारण उत्पन्न होती हैं, समूल नष्ट करने में सफल सिद्ध होता है। ऊपर वर्णित व्याधियों के अलावा अनिद्रा, नकसीर, रक्त प्रदर, मुंह में छाले, रक्तातिसार, ज्वरातिसार, पित्तज ग्रहणी, उन्माद, भ्रम, चक्कर, ह्रदौर्बल्य, त्रिदोषजन्य सन्निपात और प्रलाप, नींद में बड़बड़ाना, मानसिक थकावट, आक्षेप, गर्भाशय विकार, वातजन्य शूल, पित्त जन्य दाह, तीव्र अम्लपित्तजन्य लक्षण, उदर गुल्म, ग्रहणी आदि अनेक व्याधियों पर श्रेष्ठ कार्य करने वाला योग है।

सूतशेखर रस के नुकसान : sutshekhar ras ke nuksan (side effects)

  1. इस आयुर्वेदिक औषधि को स्वय से लेना खतरनाक साबित हो सकता है।
  2. सूतशेखर रस को डॉक्टर की सलाह के अनुसार सटीक खुराक समय की सीमित अवधि के लिए लें।

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