पंचगव्य के फायदे, गुण और उपयोग – Panchagavya Benefits in Hindi

Last Updated on March 5, 2024 by admin

पंचगव्य क्या है ? : Panchagavya in Hindi

एलोपैथिक तीव्र औषधियाँ एक बीमारी हटाकर दूसरी पैदा करती हैं। अनेक औषधियाँ रिएक्शन करती हैं, परंतु पञ्चगव्य यानी गौके मूत्र, गोबर, दूध, दही तथा घी को एक सुनिश्चित अनुपात में मिलाकर औषधि के रूप में सेवन किया जाय तो लाभ-ही-लाभ होता है, कोई रिएक्शन नहीं होता। पञ्चगव्य एक सशक्त टॉनिक है।आइये जाने पंचगव्य कैसे बनाया जाता है|

पंचगव्य बनाने की विधि : How to Make Panchagavya

पञ्चगव्य बनानेकी विधि जान लें-छाना हुआ गोमूत्र ५ चम्मच, कपड़े में रखकर निचोड़ा गया गोमय-रस १ चम्मच, गोदुग्ध २ चम्मच, गो-दधि १ चम्मच, गोघृत १ चम्मच, शुद्ध मधु २ चम्मच-इन छहों वस्तुओंको चाँदी अथवा काँच की कटोरी में रखकर मिलायें।

पंचगव्य कैसे सेवन करें : How to use Panchagavya

प्रातः मुखशुद्धि के पश्चात् थोड़ा जल पीकर पञ्चगव्य धीरे-धीरे पीना चाहिये। आदत लगानेसे यह जलपानकी तरह आपको सबल बनायेगा। जाड़े में पञ्चगव्यकी मात्रा बढ़ा देनेसे आपको जलपान करनेकी आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी।
पञ्चगव्य आरम्भ करनेके पूर्व एक सप्ताहतक त्रिफला, गोमूत्र अथवा गर्म दूधमें घृत डालकर पेट साफ कर लें। पञ्चगव्य का सेवन अधिक लाभकारी सिद्ध होगा। आइये जाने पंचगव्य के गुण उपयोग और लाभ के बारे में |

पंचगव्य के फायदे और उपयोग : Panchagavya Benefits in Hindi

1. पुष्टिकारक टॉनिक – गर्भवती माताओंको आप विटामिन कैप्सूल खिलाते हैं। यह कैप्सूल गर्भवतीका वजन बढ़ाता है, बच्चेको लाभ नहीं पहुँचाता। परंतु पञ्चगव्य गर्भस्थ बच्चे को पुष्ट करेगा। नॉर्मल डिलेवरी होगी। जच्चा बच्चा दोनों स्वस्थ रहेंगे। डिलेवरी के बाद पञ्चगव्य में घृत की मात्रा बढ़ा दें, शरीरकी निर्बलता जल्दी हटेगी। शीतकाल में गोदुग्ध में किशमिश-खजूर को कूटकर मिला दें। पुरुषों को शक्तिदाता तथा माताओं को पुष्टिकारक टॉनिक (विटामिन बी 12) मिलेगा। ( और पढ़े – पंचगव्य से असाध्य रोगों का उपचार व देसी नुस्खे)

2. शरीर की शुद्धि तथा पोषण – पञ्चगव्यमें भी गोमूत्र महौषधि है। गोमूत्रमें कार्बोलिक एसिड, पोटैशियम, कैल्सियम, मैग्नेशियम, फॉस्फेट, पोटाश, अमोनिया, क्रिएटिनिन, नाइट्रोजन, लैक्टोज, हार्मोन्स (पाचक रस) तथा अनेक प्राकृतिक लवण पाये जाते हैं, जो मानव-शरीर की शुद्धि तथा पोषण करते हैं।

3. दातों के रोग – दन्तरोग में गोमूत्र का कुल्ला करने से दाँत का दर्द ठीक होना सिद्ध करता है कि उसमें कार्बोलिक एसिड समाविष्ट है।

4. हड्डियों को मजबूत बनाएं – बच्चों के सुखंडी रोग में गोमूत्र में विद्यमान कैल्सियम हड्डियों को सबल बनाता है। ( और पढ़े – पंचगव्य क्यों है इतना महत्वपूर्ण ? )

5. दिमाग को कमजोरी – गोमूत्र का लैक्टोज बच्चों-बूढ़ों को प्रोटीन प्रदान करता है। हृदय की पेशियों को टोन-अप करता है। वृद्धावस्था में दिमाग को कमजोर नहीं होने देता। महिलाओं के हिस्टीरिया जनित मानस-रोगों को रोकता है सिफलिसगोनोरिया जैसे यौन रोगों को मिटाता है।

6. यौन रोग – खाली पेट आधा कप गोमूत्र पिलाने से यौन रोग नष्ट हो जाते हैं। यदि गोमूत्रमें अमृता (गुडूची) अथवा शारिवा (अनन्तमूल) का रस अथवा 5 ग्राम सूखा चूर्ण मिला दिया जाय तो बीमारी शीघ्र ठीक हो जाती है।

7. असरकारक दवा – मायोसिन, साइक्लिन-जैसी शक्तिशाली दवा से ठीक हुआ यौन रोग लौटकर आ सकता है, परंतु गोमूत्र से ठीक किया गया यौन रोग कभी नहीं लौटता। (और पढ़े – गाय के घी के अद्भुत फायदे )

8. संतान लाभ – गोमूत्र का कार्बोलिक एसिड अस्थिस्थित मज्जा एवं वीर्य को परिष्कृत कर देता है। नि:संतान को संतान देता है। अनेक रोगी इसके प्रमाण हैं। एक नवयुवक यौन रोग ग्रस्त युवती के सम्पर्क में आ गया। दोनों मेरे पास आये। मैंने गोमूत्र में टिंचर कार्डम् (दालचीनीका तेल) मिलाकर एक वर्ष तक पिलाया, दोनों को आशातीत लाभ हुआ। गोमूत्र में मधु मिलाकर युवती का उपचार किया गया। इस चिकित्सासे लाभ हुआ। डिस्टिल वाटरमें गो मूत्र मिलाकर एनिमा भी लगाया गया। दोनों ठीक हो गये। कालान्तर में नवयुवक का विवाह हुआ,उसे स्वस्थ पुत्र की प्राप्ति हुई। मैंने इसे गोमाताका दिया | हुआ आशीर्वाद समझा।

9. कृमि रोग – बच्चोंकी सूत्र-कृमि ( शेड वर्म)-आधा औंस गोमूत्र में 2 चम्मच मधु मिलाकर पिलानेसे बच्चोंके पेटके कृमि निकल जाते हैं। शुद्ध मधु न मिले तो सुरक्ता अथवा साफी 1 चम्मच मिलाकर गोमूत्र पिलायें। एक सप्ताह में गोमूत्र पेटके कृमि को निकालकर बच्चेको स्वस्थ बना देगा।

10। उत्तम टॉनिक – टॉनिक के रूप में गोमूत्र तथा मधु पिलाने से उसके सभी रोग नष्ट हो जायँगे। बच्चा सदा स्वस्थ रहेगा।

11. पाचन तन्त्र की मजबूती – गैस्ट्रिक-पावरोटी, बिस्किट, पकौड़े, फास्टफूड खिलानेसे पेटदर्द, गैस, खट्टी डकार तथा अम्लपित्त जैसे रोग बहुत प्रचलित हैं। डॉक्टर गोलियाँ तथा मिक्स्चर देते हैं, परंतु रोग स्थायी हो जाता है। पक्वाशय (ड्यूडनम)-की सूजनके कारण अल्सर होनेपर ऑपरेशन होता है। यदि आरम्भमें ही गोमूत्र का सेवन कराया जाय तो पाचन तन्त्र धीरे-धीरे सबल बन जायगा और रोगमुक्ति अवश्य मिलेगी।

12. गैस – यदि गैस पीडित को खट्टी उलटी हो तो उसे अविपत्तिकर चूर्ण मिलाकर गोमूत्र का सेवन कराना चाहिये। गोमूत्र-सार अथवा गोमूत्र-क्षारवटी गोघृत में मिलाकर भोजन से पहले सेवन कराना चाहिये। गर्मी के मौसम में गोमूत्र-वटी ग्लूकोज के शरबत से लें, जाड़े में मधु मिलाकर सेवन करें। पेप्टिक अल्सर हो तो आरोग्यवर्धिनी दो गोली जलसे खिलाकर आधा घंटा पश्चात् गोमूत्र पिलायें। मैंने पेटके रोगियों को ऑपरेशन के बाद भी गोमूत्र पिलाया है। लंबे समय तक गोमूत्र का सेवन पेट की समस्त बीमारियों को ठीक कर देता है।

13. जुकाम – जुकाम, सर्दी, साँस फूलना, दमा-तवे को खूब गर्म करके, फिटकरी तोड़कर गर्म तवे पर डालकर उसका जलीय अंश सुखा दें। चाकू से खुरचकर सफेद पाउडर शीशी में सुरक्षित रखें। इसे आयुर्वेद में टंकण (बालसुधा) कहते हैं। आधा कप गोमूत्र में चौथाई चम्मच बालसुधा मिलाकर खाली पेट पीने से पुराना जुकाम अवश्य ठीक होगा।

14। दमा – दमा के पुराने रोगियों को गोमूत्र में अडूसा (वासाचूर्ण) 5 ग्राम मिलाकर पिलायें। दमा के रोग में चावल, आलू, चीनी, उड़द की दाल, दही, मांसाहार तथा धूम्रपान न करें। शक्ति प्रदान करने के लिये सीतोपलादि चूर्ण, च्यवनप्राश, वासावलेह मधु मिलाकर दें, परंतु गोमूत्र भी दोनों समय पिलायें।

15. डब्बा रोग – डिप्थीरिया (डब्बा रोग) में दो ग्राम बालसुधा मिलाकर गोमूत्र एकएक घंटेपर पिलायें। डीप्थीरियाका इंजेक्शन तभी लगायें, जब साँस तथा भोजनकी नली सिकुड़ गयी हो। गोमूत्र में सरसों के तेलकी दो बूंद मिलाकर नाकमें टपकावें। बंद नाक खुल जायगी। रोगी आरामसे साँस लेने लगेगा।

16. कफ – गोमूत्र में गोघृत तथा शुद्ध कर्पूर मिलाकर कपड़ा तर करके सीनेपर रखें। कफ पिघलकर निकल जायगा।

17. वात रोग – वात रोग-घुटने, कुहनियों, पैर की पिण्डलियों में साइटिका रोग होने पर, मांसपेशियों में दर्द, सूजन होनेपर, गोमूत्र से बढ़कर दूसरी कोई औषधि नहीं है। संधिवात,हड़फूटन, रूमेटिक फीवर तथा आर्थराइटिस में सभी दवाइयाँ फेल हो जाती हैं। अस्सी प्रकारके वातरोगों की एकमात्र औषधि गोमूत्र है। आधा कप गोमूत्रमें शुद्ध शिलाजीत 2 ग्राम, रास्त्रादि क्वाथ, रास्नादि चूर्ण, सोंठचूर्ण, शुद्ध गुग्गुल अथवा महायोगराज गुग्गुल दो गोली मिलाकर पिलायें।

18. कब्ज – कब्ज होने पर सप्ताह में एक दिन गोमूत्रमें शुद्ध एरंडतेल (कैस्टर ऑयल) मिलाकर पिलायें।

19. अँगुलियों में टेढ़ापन – हाथ-पैर की अँगुलियों में टेढ़ापन आ जाय तो स्वर्णयुक्त महायोगराज गुग्गुल तथा स्वर्णयुक्त चन्द्रप्रभावटी के साथ गोमूत्रका सेवन करायें। चुम्बक-चिकित्सा इस रोग में लाभकारी है। महानारायणतेल सरसों के तेल में अफीम गलाकर मालिश करें। धतूर, आक अथवा एरंड के पत्तों में तेल चुपड़कर रात में पट्टी बाँध दें आराम मिलेगा।

20. डायबिटीज – शक्कर (चीनी)-की बीमारी अनेक बार चाय तथा कॉफी पीने एवं पेनक्रियाजकी कमजोरीसे होती है। बीमारीका पता लगते ही चावल, आलू, चीनी, गुड़, मिठाई, मांसाहार बंद कर दें। सुबह खाली पेट स्वर्णयुक्त चन्द्रप्रभावटी दो गोली चबाकर गरम जल तथा एक घंटेके बाद ताजा गोमूत्र पिलायें। संध्याकालका नाश्ता और चाय बंद करके शिलाजीत कैप्सूल खिलाकर गोमूत्र पिलायें। मेथी-चूर्ण एक चम्मच जलके साथ दें। जामुनके हरे पत्ते पाँच, नीमके पत्ते दस तथा बेलपत्र पाँच, आमके पीले या हरे पत्ते पाँच पीसकर रस निकालें, इसी रसके साथ शिलाजीत कैप्सूलका प्रयोग करें। ब्लड-शुगर अधिक बढ़ा हुआ हो तो स्वर्ण-वसंतकुसुमाकर दोनों समय गोमूत्रके साथ दें। डायबिटीजके कारण गुर्दे, लीवर तथा हार्ट कमजोर हो जाते हैं जिन्हें केवल गोमूत्र और शिलाजीत ही ठीक कर सकेगा।

21. कब्ज – पेट में शुष्क मल का जमा होना सभी रोगोंको बढ़ाता है। गोमूत्र पेशाब तथा क़ब्ज़ दोनों का खुलासा करता है।क़ब्ज़ में गोमूत्र दोनों समय पिलायें। शामको त्रिफला चूर्ण गर्म पानीसे दें फिर गोमूत्र पिलायें। गोमूत्रमें एरंडका तेल अथवा बादाम रोगन दो चम्मच मिलाकर सेवन कराने से दस्त साफ होगा। गाय के गरम दूध में एक चम्मच गाय का शुद्ध घृत मिलाकर पिलाने से गर्भवती महिलाओं को क़ब्ज़ नहीं रहेगा।

22. यकृत्-रोग – मलेरिया के कारण तिल्ली (स्प्लीन) बढ़ जाती है। शराब पीने तथा मांस खानेसे यकृत् निष्क्रिय होकर जांडिस-पीलिया और अन्तमें कामला रोग हो जाता है। खून में हीमोग्लोबीन की कमीसे पेशाब पीला हो जाता है तथा आँखें पीली हो जाती हैं। इस बीमारीमें खाली पेट गोमूत्र पिला यें। पुनर्नवा (साँटरक्त पुनर्नवा)-को पीसकर पचीस ग्राम रस में पचास ग्राम ताजा गोमूत्र मिलाकर पिलायें। पुनर्नवा का चूर्ण पाँच ग्राम रस नहीं मिलने पर मिलायें। भोजनके बाद पुनर्नवारिष्ट पिलायें। अधिक दुर्बलता में पुनर्नवा मंडूर पाँच ग्राम मधु में मिलाकर चटायें। एक घंटाके पश्चात् गोमूत्र पिलायें।

23. पाचनतन्त्र की मजबूती – गोआर पाठा (घृतकुमारी)-के पचीस ग्राम रस में पचास ग्राम गोमूत्र मिलाकर पिलाने से पाचनतन्त्र के सभी अवयव रोगमुक्त हो जाते हैं। दो ग्राम अजवायन का चूर्ण अथवा जायफल घिसकर गोमूत्र में मिलाकर पिलाने से पेट का दर्द, मरोड़, आँव, भूख की कमी निश्चित दूर हो जायगी।

24. बवासीर – खूनी तथा बादी दोनों बवासीर (पाइल्स) गोमूत्र पीने से ठीक होते हैं। शाम को खाली पेट गोमूत्र में दो ग्राम कलमी शोरा घोलकर पिलायें। क़ब्ज़ की स्थिति में त्रिफला चूर्ण मिलाकर गोमूत्र पिलायें।

25. जलोदर – जलोदर में दो ग्राम यवक्षार मिलाकर गोमूत्र पान करना चाहिये। अन्न खाना बंद कर दें। फलों तथा सब्जियों का रस पिलायें। दूध भी दे सकते हैं।

26. खाज-खुजली – खुजली, एग्जिमा, सफेद दाग, कुष्ठ-रोगमें दोनों समय गोमूत्र पिलायें। गिलोय (अमृता, गुडूची)-के रसमें गोमूत्र मिलाकर पिलाने से शीघ्र लाभ होता है। चावल मोगराका तेल गोमूत्रमें मिलाकर
चमड़ी पर मालिश करें।

27. हृदयरोग – गोमूत्र पीने से खूनमें थक्के नहीं जमते ।हाई एवं लो ब्लडप्रेशर में गोमूत्र का लैक्टोज असर करता है।
हृदयरोगमें गोमूत्र अच्छा टॉनिक है। यह सिराओं और धमनियों में कोलेस्टेरॉलको जमने नहीं देता। दस ग्राम अर्जुन-छालका चूर्ण गोमूत्र में मिलाकर पिलायें। अर्जुन-छालकी चाय बनाकर पिलानेसे भी बहुत लाभ होता है। मिठासके लिये चीनीके स्थानपर किशमिश खजूर, सेबका रस व्यवहार में लायें।

28. हाथी-पाँव (फीलपाँव) – सौ ग्राम गोमूत्र में हल्दी चूर्ण पाँच ग्राम, मधु अथवा पुराना गुड़ मिलाकर पिलायें।

29. फाइलेरिया – फाइलेरिया में अण्डकोष, हाथ की नसों में सूजन आ जाती है। सुबह-शाम दोनों समय नित्यानन्दरस दो-दो गोली गरम पानी से खिलाकर आधा घंटा के बाद गोमूत्र पिलायें। क़ब्ज़ में एरंड का तेल मिलाकर गोमूत्र पिला यें। चाय, कॉफी, चॉकलेट, मांसाहार तथा धूम्रपान बंद कर दें।

30. किडनी – गुर्दा-रोग-किडनी मानव के रक्त से अशुद्धि यों को छानकर मूत्र द्वारा शरीर का विष निकालती है। किडनी फेल होनेपर इसका प्रत्यारोपण होता है। डायलिसिस एक महँगा इलाज है। जिनका गुर्दा कमजोर हो, रात में बार-बार पेशाब लगे, प्रोस्टेट ग्रन्थि बढ़ गयी हो, उन्हें नियमित गोमूत्र पीना चाहिये।

31. माह औषधि – गोमूत्र से बढ़कर कोई औषधि नहीं है। बाल्यावस्था से वृद्धावस्थातक बिना किसी रोग के गोमूत्र पीना स्वस्थ रहने के लिये सर्वोत्तम है। गोमूत्र पीने के पश्चात् तुरंत – जल पीने से गला मीठा हो जाता है।

(अस्वीकरण : दवा, उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)

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