पीपल का धार्मिक व वैज्ञानिक महत्व | Pipal ka Mahatva in Hindi

Last Updated on July 23, 2019 by admin

पीपल (pipal)पेड़ के फायदे

हमारे शास्त्रों और धार्मिक मान्यताओं में पीपल के पेड़ को भी काफी महत्वपूर्ण दर्शाया गया है। इसे एक देव वृक्ष का स्थान देकर यह उल्लिखित किया गया है कि पीपल के वृक्ष के भीतर देवताओं का वास होता है। गीता में तो भगवान कृष्ण ने पीपल को स्वयं अपना ही स्वरूप बताया है।

स्कन्दपुराण :

स्कन्दपुराण में पीपल (pipal)की विशेषता और उसके धार्मिक महत्व का उल्लेख करते हुए यह कहा गया है कि पीपल के मूल में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में हरि और फलों में सभी देवताओं के साथ अच्युत देव निवास करते हैं। इस पेड़ को श्रद्धा से प्रणाम करने से सभी देवता प्रसन्न होते हैं।

अक्षय वृक्ष :

पीपल के वृक्ष को अक्षय वृक्ष भी कहा जाता है जिसके पत्ते कभी समाप्त नहीं होते। पीपल के पत्ते इंसानी जीवन की तरह है, पतझड़ आता है वह झड़ने लगते हैं, लेकिन कभी एक साथ नहीं झड़ते और फिर पेड़ पर नए पत्ते आकर पेड़ को हरा-भरा बना देते हैं। पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर तप करने से महात्मा बुद्ध को आत्म बोध प्राप्त हुआ था।

पीपल के नीचे बैठकर तप :

प्राचीन समय में ऋषि-मुनि पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर ही तप या धार्मिक अनुष्ठान करते थे, इसके पीछे यह माना जाता है कि पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर यज्ञ या अनुष्ठान करने का फल अक्षय होता है।

अंतिम संस्कार :

दरअसल अंतिम संस्कार के पश्चात अस्थियों को एक मटकी में एकत्रित कर लाल कपड़े में बांधने के पश्चात उस मटकी को पीपल के पेड़ से टांगने की प्रथा है। उन Pipal ka mahatva in hindiअस्थियों को घर नहीं लेकर जाया जाता इसलिए उन्हें पेड़ से बांधा जाता है,

शिवलिंग की स्थापना :

शास्त्रों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति पीपल(pipal) के वृक्ष के नीचे शिवलिंग की स्थापना करता है और रोज वहां पूजा करता है तो उसके जीवन की सभी परेशानियां हल हो सकती हैं। आर्थिक समस्या बहुत जल्दी दूर होती है। पीपल के वृक्ष के नीचे हनुमान चालीसा का पाठ करना चमत्कारी लाभ प्रदान करता है।

शनि की साढ़ेसाती :

शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या के कुप्रभाव से बचने के लिए हर शनिवार पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाकर सात बार परिक्रमा करनी चाहिए। शाम के समय पेड़ के नीचे दीपक जलाना भी लाभकारी सिद्ध होता है।

खुशहाल परिवार :

जो व्यक्ति अपने जीवन में पीपल का पेड़ स्थापित करता और नियमित रूप से जल देता है तो उसका जीवन खुशियों से भर जाता है। उसे आजीवन ना तो आर्थिक समस्या होती है ना कोई अन्य दुख सताता है। वृक्ष जैसे-जैसे बड़ा होगा उसका खुशहाल परिवार और फलता-फूलता जाएगा।

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ऐतिहासिक महत्व :

धार्मिक के साथ-साथ पीपल के पेड़ और उसके कोमल पत्तों का ऐतिहासिक और वैज्ञानिक महत्व भी है। चाणक्य के काल में पीपल के पत्ते सांप का जहर उतारने के काम आते थे। आज जिस तरह जल को पवित्र करने के लिए तुलसी के पत्तों को पानी में डाला जाता है, वैसे पीपल के पत्तों को भी जलाशय और कुंडों में इसलिए डालते थे ताकि जल किसी भी प्रकार की गंदगी से मुक्त हो जाए।

शुभ संकेत :

किसी जलकुंड या कुएं के निकट पीपल के पेड़ का उगना बेहद शुभ संकेत माना जाता है। विद्वानों के अनुसार हड़प्पा या सिंधु घाटी सभ्यता वैदिक काल की नहीं है, खुदाई के दौरान सिंधु घाटी सभ्यता से संबंधित प्राप्त मुद्रा में इस सभ्यता के देवता गण पीपल के पत्तों से ही घिरे हुए थे।

अलौकिक वृक्ष :

ऋग्वेद में पीपल(pipal) के वृक्ष को देव रूप में दर्शाया गया है, यजुर्वेद में यह हर यज्ञ की जरूरत बताया गया है। अथर्ववेद में इसे देवताओं का निवास स्थान बताया गया। इसका उल्लेख बौद्ध पौराणिक इतिहास के साथ-साथ रामायण, गीता, महाभारत, सभी धार्मिक हिन्दू ग्रंथों में है।

अनूठा वृक्ष :

आधुनिक वैज्ञानिकों ने इसे एक अनूठा वृक्ष भी कहा है जो दिन रात यानि 24 घंटे ऑक्सीजन छोड़ता है, जो मनुष्य जीवन के लिए बहुत जरूरी है। शायद इसलिए इस वृक्ष को देव वृक्ष का दर्जा दिया जाता है।

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