बलिदान (बोध कथा) | Prerak Hindi Kahani

Last Updated on July 22, 2019 by admin

शिक्षाप्रद कहानी : Hindi Moral Story

★ पुराना जमाना था। एक महान् त्यागी तरुण ने अपनी घोर साधना के बाद सोलह साल की आयुमें भक्ति का एम० ए० पास किया। इनका नाम था उग्र तपस्वी दत्तात्रेय।

★ उस समय अवधमें राजा मूढ़ मान्धाता राज्य करते थे। वे काली माता के उपासक थे। पुजारी, उपासक और भक्त मैट्रिक, बी० ए० और एम० ए० की तरह अलग-अलग हैं। भक्त को महात्मा भी कहते हैं। एक रात सपने में राजाने काली माताको दर्शन किया। माताने कहा-‘बलिदान !’ माताजी के कहनेका लक्ष्य था-‘अपने अहंकार का बलिदान कर मेरी भक्ति प्राप्त कर।’ परंतु राजा उस लक्ष्यपर नहीं पहुँचा। उसने जाकर निश्चय किया कि कालीकी मूर्तिके सामने एक आदमी का बलिदान देना चाहिये नहीं तो राज्य का कुशल नहीं। सच है, कोई किसी का लक्ष्य नहीं देखता।

★ राजा को भय और चिन्ता से रातभर नींद नहीं आयी। प्रात: मन्त्रीको ताकीद कर दी कि राज्यभर में यह मुनादी करवा दो कि जो आदमी काली माताका बलिदान बनेगा, उसके घरवालों को राजा एक लाख रुपये देगा। इस पवित्र कामके लिये किसी नवयुवक को अग्रसर होना चाहिये। इस नोटिस को सालभर हो गया। कोई न आया।

★ एक दिन राजाने फिर वही सपना देखा और सुना वही–बलिदान’ का शब्द ! अबकी बार राजा ने ऐलान कराया कि अगर कोई नवयुवक अपनी जानकी मिथ्या लालसा नहीं छोड़ सकता तो न सही, परंतु एक मानव बलि देना राजा-प्रजाके हितके लिये जरूरी नजर आ रहा है। अगर कोई किसी बूढे, अंधे या पागल को इस पवित्र काम के लिये राजी कर लेगा तो वह एक लाख रुपया पुरस्कार पायेगा।

★ इस दूसरे विज्ञापन को भी एक साल हो गया। बहुतेरे बूढ़ोंसे उनके घरवालोंने कहा कि आखिर दो-एक सालमें स्वयं मर ही जाओगे, क्यों न घरवालोंको एक लाख दे मरो ! परंतु अपने हाथ अपनी मौत बुलाने पर कोई राजी न हुआ। एक रात राजाने फिर वही सपना देखा और फिर वही हुक्म सुना। राजा बहुत घबराने लगा।

★ राजाने निश्चय किया कि अब खुद उसे किसी आदमीकी खोज करनी चाहिये। शिकार खेलनेके बहाने राजा दिन-दिन भर इधर-उधर घूमने लगा। सातवें दिन एक जंगल में एक आमके वृक्षके नीचे राजा ने भक्त दत्तात्रेयजी को चुपचाप बैठे देखा। राजाने सोचा- जैसे भी हो, इसे ले चलना चाहिये। झूठ बोलूंगा, जालसाजी करूँगा, लेकिन इस लड़के का बलिदान जरूर दूंगा। राजाके लिये दफा ४२० है नहीं। मालूम होता है कि यह लड़का किसी बातपर माता-पिता से रूठकर यहाँ आ बैठा है। पचास रुपये मासिक की नौकरीका लोभ ही इसे मेरे महल तक पहुँचाने का साहस रखता है। सत्ययुग में भी कलियुग रहता है, कलियुगमें भी सत्ययुग रहता है। चारों में चारों हैं। भक्तके पास राजाने घोड़ा खड़ा कर दिया और उससे बातचीत शुरू की।

राजा- तुम कहाँ रहते हो?
भक्त–  शिव ही सब है।
राजा-मैं पूछता हूँ कि तुम किस गाँवमें रहते हो?
भक्त – महावीर-सा वीर महावीर ही है।
राजा-  तुम्हारा नाम क्या है?
भक्त – अन्तिम गुरु दो हैं-एक कच्चा बाबा, एक सच्चा बाबा ।
राजा-मैं यह पूछता हूँ कि तुम्हारा नाम क्या है?
भक्त– जो सत्य होगा, वही सुन्दर होगा और वही शिव होगा।
राजा सोचने लगा–’मैं खेतकी कहता हूँ और यह खलिहानकी सुनता है। मैं पटने जाता हूँ तो यह आगरा जाता है। वजह क्या है? यह खूबसूरत लड़का, जो एक गरीब राजकुमार की तरह बैठा है, अंटकी संट क्यों बहकता है? क्या सनकी है? पागल तो नहीं हो गया है? भयसे भेद खुलता है।’
राजा- तुम चोरी करके भागे हो। मैं राजा हूँ। मैंने तुमको गिरफ्तार किया।
भक्त – नेम का राजा रामचन्द्र, प्रेमका राजा कृष्णचन्द्र।
राजा– मेरे पास ‘तुम्हारा’ वारंट है।
भक्त– शिव ही सब है, सब ही शिव है।
राजा— चुप रहो बदमाश।
भक्त – माया बन रही है परमात्मा और परमात्मा बन रहा है जीवात्मा। हाय, अब कैसे ‘कल्याण’ होगा ! इतना कहकर वह फूट-फूटकर रोने लगा। उसके नयनाभिराम नयनों से मोती मालाओं का निर्माण होने लगा।

★ राजाने निश्चय किया लड़का पागल है।
घोड़े से उत रकर राजा ने उस लड़केको अपने पीछे घोड़े पर बैठा कर अपने महलकी राह ली।
राजधानी के बाहर, पूर्व में काली माता के मन्दिर पर आज भारी भीड़ हो रही है। चार पण्डित प्रात:काल से हवन कर रहे हैं। दोपहरीके एक बजे एक सुन्दर लड़के का बलिदान होगा। लड़के-लड़की, नर-नारी सभी आ रहे हैं। पुलिस सबको गोल चक्करमें बिठा रही है।
पुलिस कहती थी-‘शोर मत करो, राजा साहब पधार रहे हैं।’ ठीक बारह बजे एक बंद पालकी आयी। हाथमें नंगी तलवार लिये राजा साहब उतरे, हाथ-पैर बँधा एक लड़का भी पालकी से उतारा गया।

★ दोनों आकर हवनके पास काली माताके सामने खड़े हो गये। लोगोंने उन दोनोंको देखा। मास्टर दत्तात्रेय को देख सब चकित और सम्मोहित हो गये। ब्रह्मा, विष्णु और शंकर- तीनोंके आशीर्वाद से भक्त जी का जन्म हुआ था। माताएँ कहने लगीं-‘अगर मेरा बच्चा होता तो राजा की दाढ़ी में दियासलाई लगा देती हाय ! बेचारे की माँ मर गयी।’

★ पिताओंने कहा-‘अगर मेरा पुत्र होता तो चाहे मेरा तन, बदन तोले-तोले उड़ जाता, लेकिन जीते-जी इसपर आँच न आने देता।’ रमणियोंने कहा-‘कितना मनोरंजक पति होता।’ जब पूर्णाहुतिकी घंटी बजी, तब एक बजा। राजाने तीखे स्वरमें भक्त से कहा-‘कुछ खाओगे?”

भक्त– अज्ञानको खाऊँगा।
राजा- कुछ पिओगे?
भक्त – द्वैतको पी लूँगा ।
राजा – किसीको देखोगे?
भक्त — सबको देखुंगा ।
राजा— किसी से कुछ कहोगे?
भक्त – शिवसे कहूँगा कि तू ही सब है।
राजा- मैं कौन?
भक्त – सत्यं शिवं सुन्दरम् ।
राजा- तू कौन?

भक्त– सत्यं शिवं सुन्दरम् ।
राजा- (तलवार दिखलाकर) यह क्या है?
भक्त- सत्यं शिवं सुन्दरम्।
राजा— (काली-मूर्तिके प्रति इशारा कर) वह कौन?
भक्त– सत्यं शिवं सुन्दरम्।
राजा- तुम्हारा बलिदान दिया जायगा।
भक्त– सत्यं शिवं सुन्दरम्।
राजा- (तलवार उठाकर) जय काली !

★ पब्लिक में हाहाकार मच गया। कोई रोने लगा, कोई भागने लगा, कोई आँखें बंद करके बैठ गया, कोई चिल्लाने लगा, कोई मूर्च्छित हो गया और कोई राजाको गालियाँ देने लगा।

★ यह क्या?
राजा और भक्त के बीच स्वयं काली माता प्रकट हो गयीं। मारे भयके राजा की तलवार जमीन पर गिर पड़ी।
देवी– क्यों मूर्ख ! यह क्या कर रहा था?
राजा- माताजी का आज्ञा पालन जैसे हो सका, यही पागल लड़का तीन सालकी तलाशके बाद मिल सका। क्षमा करो माताजी !
देवी- पागल लड़का ?
राजा- जी हाँ।
देवी– कौन है पागल?
राजा— यह लड़का।
देवी- ये पागल हैं या तू पागल है?
राजा- माताजी !
देवी- परमात्मा रूपी बादशाहके ये एक शाहजादे हैं। इनके बचानेके लिये मुझे बड़ी दूर से आना पड़ा । अरे मूर्ख ! प्रथम यह बता कि मैंने तुझसे अहंकार का बलिदान चाहा था या किसी मेरे बच्चेको अकारण मार डालनेको कहा था ?
राजा- समझा नहीं माताजी !
देवी- और मारनेके लिये मिला वह… कि जिसे स्वयं मौत नहीं मार सकती !
राजा- समझा नहीं माताजी !
देवी- जो सबको ‘शिव’ देखता है, किसकी मजाल जो उसपर हाथ उठा सके।
राजा- समझा नहीं माताजी !
देवी- यदि मैं न आती और तू तलवार चला देता तो यह तलवार तेरा ही मस्तक काट डालती।
राजा- समझा नहीं माताजी !
देवी- राजा ! तू नहीं पहचानता कि यही महात्मा दत्तात्रेय हैं, जिनको भगवान् और जगद्गुरु-जैसे दो पद प्राप्त हैं।
राजा- समझा नहीं माताजी ! ।
देवी– इनके चरण कमल पर अपना सिर रख दो। आजसे इनको अपना गुरु मानना और इनके उपदेशसे जीवनका संचालन करना।
राजा- (भक्तके चरण पकड़) क्षमा करो हे क्षमानिधान !
देवी अन्तर्धान हो गयी। अमीर को उठाकर फकीर ने छाती से लगा लिया। पहले तो प्रजा दु:ख के आँसू बहा रही थी, अब वह सुखके आँसू बहाने लगी।

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