मिर्गी (अपरमार) के 12 घरेलु उपचार | Mirgi ka Gharelu Upchar

Last Updated on June 25, 2020 by admin

मिर्गी (अपरमार) के लक्षण : mirgi rog ke lakshan

इसे दौरे पड़ना तथा मिर्गी आदि नामों से जाना जाता है। अचानक बेहोश हो जाना तथा बेहोश होने पर थोड़ी बहुत अकड़न को अपस्मार कहा जाता है। बेहोशी या मूच्छ आने से पूर्व प्रायः रोगी को कोई आभास नहीं होता है कि उसे दौरा कब पड़ने वाला है। बातें करते-करते या बोलते-बोलते अथवा चलते-चलते अचानक रोगी बेहोश हो जाता है।mirgi ka achuk ilaj

इस रोग में रोगी अचानक जमीन पर गिर पड़ता है, पहले अकड़न से गर्दन टेढ़ी पड़ती है, आँखें फटी-फटी तथा पलकें स्थिर सी हो जाती है तथा मुँह में फेन (झाग) भर जाते हैं, रोगी हाथ-पैर पटकता है, दांतों को जोर-जोर चलाता है, जिसके कारण जीभ भी कट जाती है या फिर दाती लग जाती है।

किसी-किसी की नीभ बाहर भी निकल जाती है। किसी-किसी मिर्गी के रोगी को बेहोशी की ही हालत में अनजाने में पाखाना या पेशाब भी हो जाया करता है।

रोगी को श्वास-प्रश्वास में भी कष्ट होता है, दौरा 10-15 मिनट से लेकर 2-3 घन्टे तक – रह सकता है। इसके उपरान्त दौरा घटना प्रारम्भ हो जाता है तथा श्वास-प्रश्वास – में भी सुधार आता चला जाता है अन्नतः रोगी होश में आ जाता है। फिर वह थकावट के कारण अक्सर सो जाता है।

इसके आक्षेप एकाएक प्रारम्भ होते है तब शरीर में अकड़न के समय टांगों या बाजुओं में जोर-जोर के झटके लगते रहते हैं, इन झटकों के कारण ही रोगी को थकावट हो जाती है। रोगी को जब दौरे आते हैं तब उसका मुँह एक तरफ को घूम जाता है, आँखों की पुतलियाँ गोलाई में घूमने लग जाती हैं या बहुत ऊपर चढ़ जाती हैं तथा पथरा सी जाती है, जबड़ा बैठ जाता है, मुट्ठियाँ कस जाती है, रोगी के मुख से उस समय ओं-ओं-गों गों की आवाज निकल जाती है तथा बेहोश भी हो जाता है ।

कभी-कभी यौवनावस्था में अपस्मार शान्त हो जाता है, कभी-कभी आजीवन चलता रहता है। जैसे-जैसे रोग बढ़ता है, मानसिक अवस्था बिगड़ती जाती है। बुद्धि मन्द होकर स्मरण शक्ति नष्ट होने लगती है। कभी-कभी ज्ञान-शक्ति बिल्कुल ही नष्ट हो जाती है।

मिर्गी (अपरमार) का कारण : mirgi ka karan in hindi

आज तक इस रोग का मूल कारण ज्ञात नहीं हो सका है। यह रोग अक्सर 10 से 20 वर्ष की आयु में ही होता है। हस्त मैथुन की अधिकता, अति सुरापान अत्यधिक मानसिक अथवा शारीरिक श्रम, ऋतु सम्बन्धी दोष, आंव, कृमिविकार तथा चोट आदि के कारणों से विद्वानों ने इस रोग की उत्पत्ति माना है। सिर में चोट या आँतो में कृमियों की अधिकता इस रोग में प्रधान कारण है।

मिर्गी (अपरमार) में क्या खाएं : mirgi me kya khaye in hindi

  • फलों में आम, अंजीर, फालसा, अनार, संतरा, सेब, नाशपाती, आडू, अनन्नास का आप सेवन करें।
  • अंकुरित मोठ, मूंग, या दूध को आप सुबह नास्ते में लें।
  • रात्रि का भोजन हलका और सीमित मात्रा में सोने के दो घंटे पहले ले ।
  •  लहसुन को तेल में सेंक कर सुबह-शाम खालिपेट खाएं और कच्ची कली तोड़कर सूंघे ।
  • गेहूं के आटे की चोकर सहित बनी रोटी, सेकी हुई अरहर, मूंग की दाल भोजन में लें।

मिर्गी (अपरमार) में क्या नहीं खाना चाहिए : mirgi me kya nahi khaye in hindi

  •  आवश्यकता से अधिक ,तला-भूना ,भारी, मिर्च-मसालेदार ,चटपटा भोजन न खाए।
  • मिर्गी (अपरमार) में वात बढ़ाने वाले पदार्थ जैसे-उड़द, राजमा, कचालू, गोभी, मसूर की दाल, चावल, बैगन, मूली, मटर आदि का सेवन नहीं करना चाहिये ।
  • उत्तेजक पदार्थों में कड़क चाय, कॉफी, तंबाकू, गुटखे, शराब, मांसाहारी भोजन, पिपरमेंट आदि का मिर्गी रोग में परहेज करें।
  •  मिर्गी में अधिक ठंडे और अधिक गर्म पदार्थों का सेवन न करें। खाली पेट ना रहें ।
  • अत्यधिक गुस्सा ना करें तथा यथा संभव मानसिक तनाव से दूर रहें ।

आवश्यक निर्देश :

  1. बच्चों तथा दुर्बल जनों को बेट्री या टेलीविजन या सिनेमा हाल में नजदीक पर्दे के पास से फिल्म देखने आदि से भी यह रोग हो जाता है। अत: इस पर प्रतिबन्ध लगायें।
  2. रोगी को दौरा पड़ने पर बाँयी या दाँयी करवट से लिटा दें ताकि उसका मुँह तथा सिर एक ओर होने से मुँह का तरल तथा झाग आसानी से निकल जाये क्योंकि यदि रोगी चित्त लेटेगा तो मुँह ऊपर रहेगा ऐसी परिस्थिति में मुँह का तरल व झाग आदि उसकी वायु प्रणाली में चली जाने से रोगी की सांस रुक जाने से रोग बढ़ जाता है। साफ कपड़े से रोगी नाक, मुँह तथा गले से तरल एवं झाग साफ करते रहना चाहिए।
  3. रोगी के बेहोश होने पर शीघ्र स्वस्थ बनाने हेतु उसको ब्रान्डी शराब, गर्म-गर्म चाय या काफी उसके गले में न डालें, क्योंकि यह तरल वायु प्रणालियों में जाकर हानि पहुँचा सकता है।
  4. जिस रोगी को मिर्गी के दौरे पड़ते हों तथा उसकी चिकित्सा (कोई मिर्गी नाशक टिकिया) चल रही हो तो उसे पूर्ण लाभ न होने तक चालू ही रखें अन्यथा कभी-कभी दवा बन्द कर देने से मिर्गी के दौरों में अधिक तीव्रता आ जाती है। इस अवस्था को (STATUS EPILEPTICUS) कहते हैं और फिर पुनः दवा देने पर भी नहीं रूकते हैं, इस अवस्था में रोगी की मृत्यु भी हो जाती है।
  5. गर्भाशय की खराबी, ऋतुदोष, कृमिविकार, दांत निकलना इत्यादि जो भी कारण प्रतीत हो उसकी चिकित्सा करनी चाहिए। पेट साफ रखना चाहिए।
    आइये जाने मिर्गी से छुटकारा कैसे पायें ,मिर्गी के अचूक इलाज , mirgi ka achuk ilaj,mirgi se chutkara kaise paye

मिर्गी (अपरमार) का घरेलू उपचार : mirgi rog ka gharelu upchar

1)   यदि किसी रोगी को मिरगी के दौरे का पूर्ण आभास हो तो उसे राई के पानी से वमन करानी चाहिए, इससे दौरा रुक जाता है।   ( और पढ़ें – मिर्गी के 12 आयुर्वेदिक प्रयोग )

2)   दौरे के समय रोगी को अमोनिया फोर्ट की शीशी खूब हिलाकर या ताजा कली चूना तथा नौशादर समभाग मिलाकर सुंघाना चाहिए। इसके उपलब्ध न रहने पर तेज गन्धयुक्त तम्बाकू सुंघानी चाहिए।

3)   दौरों से बचाव हेतु ब्राह्मी घृत सुबह-शाम को देना चाहिए एवं रोजाना भोजन के बाद रसायन या चित्रक मूलादि चूर्ण के साथ ‘अमर सुन्दरी वटी’ देनी चाहिए। एलोपैथी में प्रोटाशियम ब्रोमाइड देने का विधान है।

4)   बच का कपड़छन चूर्ण 4 ग्रेन (2 रत्ती) को 6 ग्राम शहद में मिलाकर चाटने से मृगी तथा हिस्टीरिया के दौरे बन्द हो जाते हैं। 2-3 मास सेवन करायें।

5)   कांटे वाली चौलाई की जड़ 20 ग्राम, काली मिर्च 9 दाने को 50 ग्राम जल में पीसकर छानकर मात्र सातदिन रोगी को पिलाने से अपस्मार चला जाता है।

6)   अकरकरा 100 ग्राम, पुराना सिरका 100 ग्राम, शहद 140 ग्राम। पहले अकरकरा को पीसकर सिरका में घोटें बाद में शहद मिला दें। यह 7 ग्राम दवा नित्य प्रातः रोगी को चटाएँ । मृगी को जादू की भाँति नष्ट कर देता है।  ( और पढ़ें –अकरकरा के 29 जबरदस्त फायदे )

7)   दो ग्राम तगर ठन्डे पानी में पीसकर प्रतिदिन प्रात:काल पिलायें। एक माह के प्रयोग से आराम हो जाता है।

8)   करौंदे के पत्ते 10 ग्राम दही के तोड़ या मट्ठे में पीसकर प्रतिदिन प्रातः-काल एक माह तक प्रयोग करने से आराम हो जाता है।

9)   नौसादर 50 ग्राम को 1 लीटर केले के पत्तों के रस में डाल कर रख लें । मृगी के दौरे के समय रोगी की नाक में टपका दें। मृगी का दौरा तुरन्त शान्त हो जायेगा।

10)   नीम की ताजी पत्तियाँ 5 तथा अजवायन और काला नमक 3-3 ग्राम मिलाकर 50 ग्राम जल में घोलकर प्रातः तथा सायं तीन मास तक प्रयोग करने से अपस्मार में लाभ हो जाता है।  ( और पढ़ें -नीम अर्क के फायदे )

11)   शंखपुष्पी का रस 40-50 ग्राम तथा कूठ का चूर्ण 4 रत्ती को थोड़े से शहद के साथ लेते रहने से अपस्मार में लाभ होता है।

12)   लहसुन 10 ग्राम तथा काले तिल 30 ग्राम दोनों को मिलाकर नित्य सबेरे 21 दिनों तक खाने से अपस्मार में लाभ हो जाता है।  ( और पढ़ें – छोटे लहसुन के 13 बड़े फायदे )

मिर्गी की आयुर्वेदिक दवा – शास्त्रीय योग : mirgi rog ki dawa

रस-  कृष्ण चतुर्मुख रस, योगेन्द्र रस, वात कुलान्तक रस, स्मृति सागर रस, बसन्त तिलक रस, भूत भैरव रस, महावात विध्वंसन रस, बसन्त कुसुमाकर रस, लक्ष्मी विलास रस (नारदीय) चतुर्भुज रस, स्वर्ण सिन्दूर रस की मात्रा वयानुसार 125 मि.ली. से 250 मि.ग्रा. तक मधु+आर्दक स्वरस या घृत आदि उचित अनुपान से दें। वातज अपस्मार में अद्वितीय असरकारक है।

वटी – ब्राह्मीवटी (मस्तिष्क के पोषण में लाभप्रद) ,अमर सुन्दरी वटी, ब्रह्म वटी, योगराज वटी 1-2 वटी दिन में 2-3 बार दुग्ध अथवा अन्य उचित अनुपान के साथ व्यवहार करें । वातज एवं कफज अपस्मार में लाभकारी है।

भस्म – बंग भस्म (मानसिक निर्बलता हेतु) अभ्रक भस्म, 125 से 250 मि.ग्रा. तक धृत+मधु आदि के साथ उपयोग करायें।

चूर्ण – सारस्वतारिष्ट, अश्वगन्धारिष्ट 15 से 25 मि.ली. समान जल मिलाकर प्रयोग करायें।

घृत – मांसी घृत, शंखपुष्प्यादि घृत, ब्राह्मी घृत, पंच गव्य घृत, कल्याण घृत, सिद्धार्थक धृत- 5 से 10 ग्राम दिन में 1-2 बार दुग्ध के साथ दें। मेधावृद्धि कारक एवं मस्तिष्क विकृति निवारक हैं। वचादि घृत, चैतस घृत भी इसी प्रकार दे सकते हैं।

तैल – पलंकषादि तैल, बस्त मूत्रादि तैल, त्रिफलादि तैल (नस्य प्रयोग 3-4 बूंद में लायें) शेष तैलों में किसी भी यथेच्छ रूप से अभ्यगांर्थ (मालिश करायें)।

अन्जन – सिद्धदार्थकादिगद, शुद्ध मनः शिला, प्रचेनावटी (आवेग काल में + रसान्जन) चेतना लाने हेतु उपयोग करायें।

(दवा व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार सेवन करें)

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