कान दर्द का आयुर्वेदिक उपचार – Kan Dard ka Ayurvedic Upchar in Hindi

Last Updated on October 12, 2020 by admin

कर्णशूल (kan dard) की विकृति किसी भी स्त्री-पुरुष, बच्चे व प्रौढ़ को शूल की अधिकता से बेचैन कर सकती है। शूल के कारण रोगी रात्रि में भी नहीं सो पाता।
कर्णशूल की विकृति 3-4 महीने के शिशु को भी हो सकती है। जब छोटे बच्चों को कर्णशूल होता है तो उनका रोना बंद ही नहीं होता।
कर्णशूल की विकृति के संबंध में कुछ जानने से पहले कर्ण की रचना के बारे में जान लेना आवश्यक है। ऊपर से दिखाई देने वाला साधारण कान भीतर काफी गहरा होता है।
चिकित्सा विशेषज्ञ कान को तीन भागों में विभक्त करते हैं। ऊपर से दिखाई देने वाला बाह्य कर्ण, मध्य कर्ण और अंत:कर्ण (भीतर का भाग)।

कान में दर्द क्यों होता है इसके कारण (Kaan ke Dard ka Karan in Hindi)

वात, पित्त, कफ दोषों के प्रकुपित होने के कारण विशेषज्ञों ने अनेक प्रकार के कर्णशूलों का वर्णन किया है। इनमें वातज, पित्तज, कफज, रक्तज, सन्निपातज आदि कर्णशूल होते हैं।

वातज कर्णशूल:

जब कोई व्यक्ति देर तक नदी व तालाबों में स्नान करता है, तैरता है या डुबकियां लगाता है तो कानों में जल भर जाने से वात प्रकुपित होने से कर्णशूल होने लगता है। अधिक समय तक प्रतिश्याय (जुकाम) बने रहने या बार-बार प्रतिश्याय होने से भी शूल की उत्पत्ति होती है। शीतल वायु के प्रकोप से भी वातज कर्णशूल की उत्पत्ति होती है। कुछ दूसरे रोगों के साथ भी वातज कर्णशूल की उत्पत्ति होती है।

पित्तज कर्णशूल :

भोजन में पित्तवर्द्धक खाद्य पदार्थों का अधिक मात्रा में सेवन कराने से पित्त के प्रकुपित होने से कर्णशूल की उत्पत्ति होती है। पित्त कान की शिराओं में पहुंचकर शूल की उत्पत्ति करता है। पित्तज शूल में पीड़ा के साथ दाह, सर्दी की इच्छा, शोथ या ज्वर भी हो जाता है। ऐसे में कान जल्दी पकता है। और पीली लसीका का स्राव होता है। इस लसीका के स्पर्श मात्र से दूसरे अंगों में भी शोथ की उत्पत्ति होती है।

kan dard ke karan lakshan aur gharelu upchar

कफज कर्णशूल :

कफवर्द्धक खाद्य पदार्थों के सेवन से कफ प्रकुपित होकर श्रोत्रवाही शिराओं में पहुंचकर कफज शूल की उत्पत्ति करता है। कफज शूल में गरदन में भारीपन, तीव्र कण्डु (खुजली), पीड़ा, उष्णता की इच्छा, सिर में भारीपन और शोथ होने पर सफेद व गाढ़ा स्राव निकलता है।

रक्तज कर्णशूल :

किसी आघात या फिसलकर गिरने पर कान के आसपास चोट लगने से जब रक्त दूषित हो जाता है तो कान में पहुंचकर शूल की उत्पत्ति करता है। रक्तज कर्णशूल में पित्तज कर्ण शूल की तरह अधिक शूल होता है। कई बार कान में फंसी निकल आने पर उसके पक जाने पर पूय के साथ रक्त का भी स्राव होने लगता है।

सन्निपातज कर्णशूल:

इस विकृति में वात, पित्त व कफ दोषों के प्रकुपित होने के लक्षणों का समावेश दिखाई देता है। रोगी को शूल की अधिकता के साथ तीव्र ज्वर भी हो सकता है। कभी गरमी तो कभी सर्दी की इच्छा होती है। शोथ हो जाने पर, फंसी के फट जाने पर सफेद, गाढ़ा, मटमैला व पूय मिश्रित स्राव होता है। कुछ चिकित्सक सन्निपात शूल को असाध्य मानते हैं। शरीर की विकृतियों के कारण उत्पन्न कर्णशूल की भी उत्पत्ति होती है। माचिस की तीली या अन्य किसी नुकीली चीज से कान में खुजलाने से जख्म हो जाता है। कान में फुंसी होने से सिर एवं हनु तक शूल की पीड़ा होती है। मध्य कर्ण में शोथ होने पर अधिक शूल होने लगता है। कान में स्राव के एकत्र होने पर भी अधिक शूल होता है। ऐसे में बहरापन, ज्वर और जुकाम के लक्षण भी दिखाई देते हैं। अंत:कर्ण में भी शोथ होने पर तीव्र शूल की उत्पत्ति रोगी को बेचैन कर देती है। वायु के प्रकोप से भी अंत:कर्ण में शूल की उत्पत्ति हो सकती है।

इसे भी पढ़े :
<> कान दर्द का घरेलू उपचार | Home Remedies for Earaches
<> कान का दर्द ठीक करने के 77 सबसे असरकारक घरेलु उपचार |

कान दर्द का आयुर्वेदिक इलाज (Kaan me Dard ka Ayurvedic Ilaj in Hindi)

आयुर्वेद चिकित्सक कर्णशूल (kan dard) की चिकित्सा के लिए पहले कर्णशूल की प्रकृति को जानने का प्रयास करते हैं। जैसा कि ऊपर वर्णन कर चुके हैं। कर्णशूल वातज, पित्तज व कफज हो सकता है। कर्णशूल किसी फुंसी के कारण भी हो सकता है। इसका परीक्षण करने के बाद औषधियों का उपयोग करना चाहिए।

1)  यदि किसी को वातज कर्णशूल हो तो अदरक का रस, मधु और सेंधा नमक तीनों को बराबर मात्रा में लेकर तिल के तेल में मिलाकर, उसमें चतुर्गुण जल मिलाकर स्नेह सिद्ध करके हल्का गरम कान में बूंद-बूंद डालने से शूल नष्ट होता

2)  नीम के तेल की कुछ बूंदें कान में टपकाने से जल्दी फुंसी के नष्ट होने से कर्णशूल का निवारण हो जाता है।

3)  हिंगोट और सरसों के तेल को गरम करके कान में डालने से कफज शूल का निवारण होता है।

4)  सारिवा, चंदन, जीवक मृणाल, मंजीठ, मुलहठी, खस, काकोली, लोध्र और अनंतमूल को थोड़ा-सा कूटकर, जल में डालकर, आग पर देर तक पकाकर क्वाथ बनाएं। इस एक किलो क्वाथ को गाय के दो किलो दूध और 250 ग्राम तिल के तेल से स्नेह सिद्ध करें। इस तेल को कान में डालने से पित्तज कर्ण शूल नष्ट होता है।

5)  देवदारु, बच, सोंठ, सौंफ और सेंधा नमक सबको 5-5 ग्राम मात्रा में लेकर बकरी के दूध में पकाकर, छानकर, बूंद-बूंद दूध टपकाने से कर्णशूल नष्ट होता है। | 0 कान में फंसी होने पर लहसुन, मूली, अदरक, इन तीनों का रस निकालकर, एक साथ मिलाकर, हल्का-सा उष्ण करके कान में डालने से कर्णशूल नष्ट होता है।

6) तुलसी के पत्तों का रस हल्का -सा गरम करके बूंद-बूंद कान में डालने से कर्णशूल नष्ट हो जाता है।

7) वात विध्वंसन रस 125 मि.ग्रा. मात्रा दिन में दो बार मधु के साथ सेवन करने से कर्णशूल नष्ट होता है।

8) कफकेतु रस 250 मि.ग्रा. मात्रा में मधु (शहद)के साथ दिन में दो बार सेवन करने से कर्णशूल से मुक्ति मिलती है।

9) शूलवज्रिणी वटी की एक या दो गोली दशमूल क्वाथ के साथ सेवन करने से कर्णशूल नष्ट होता है। दिन में दो बार इन गोलियों का सेवन करें।

10) कर्णशूल की विकृति में हिंग्वादि तेल या दीपिका तेल या जीरकादि तेल हल्का गरम करके दिन में दो-तीन बार बूंद-बूंद डालने से कर्णशूल नष्ट हो जाता है।

कान दर्द में खान-पान और परहेज

  • कर्णशूल के रोगी को हल्का सुपाच्य और तरल खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए।
  • ठोस खाद्य पदार्थों का सेवन करने के लिए रोगी को भोजन चबाना पड़ता है। और भोजन चबाने की प्रतिक्रिया से भी शूल की उत्पत्ति होती है।
  • अधिक शीतल खाद्य पदार्थ भी कर्ण शूल रोगी को हानि पहुंचाते हैं।
  • गोभी, अरबी, कचालू, उड़द की दाल, चावल भी रोगी को वातकारक होने के कारण हानि पहुंचाते हैं।
  • कर्णशूल के चलते रोगी को नदी व स्विमिंग पूल में स्नान भी नहीं करना चाहिए क्योंकि डुबकी लगाने से कान में जल भर जाने से हानि की संभावना बढ़ती जाती है। घर पर भी स्नान करते समय रुई का टुकड़ा कान में लगा लेना चाहिए, ताकि कान में जल नहीं जा सके।
  • शीत ऋतु हो तो रोगी को कान पर ऊनी मफलर लपेटकर घर से बाहर निकलना चाहिए। शीतल वायु के प्रकोप से कर्णशूल अधिक तीव्र हो जाता है। रोगी फल और सब्जियों का सेवन कर सकता है लेकिन शीतल गुण वाले फल अनार, संतरा आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।

(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)

Leave a Comment

Share to...