किस रोग में क्या खाएं | Kis Rog me Kya Khaye

Last Updated on February 8, 2024 by admin

रोगों में आहार :

1-अम्ल पित्त (खट्टी डकार) में क्या खाएं-पुराना जौ, गेहूं और चावल, मूंग का यूष; शाकों में परवल, बथुआ, पेठा तथा कैथ फलों में नींबू, आंवला, अनार, मुरब्बा, शक्कर तथा शहद लाभदायक।

2- शीतपित्त (पित्ती उछलना) में क्या खाएं -पुराने चावल, मूंग एवं कुलथी का यूष, करेला, मुली, सहिजन, नीम की पत्ती, तेल, शहद, अनार, आंवला लाभकर हैं।

3-वात (गठिया) में क्या खाएं-जौ की रोटी, अरारोट, कुलथी, परवल, बैंगन, सहिजन की फली, लहसुन, एरण्डी का तेल, गो-मूत्र, गरम जल और पपीता सर्वश्रेष्ठ हैं। ( और पढ़े – वात नाशक 50 सबसे असरकारक आयुर्वेदिक घरेलु उपचार)

4-वात व्याधि में क्या खाएं-गेहूं, कुलथी, बैंगन, परवल, सहिजन की फली, लहसुन, आम, बेर, फालसा, द्राक्षा (अंगूर), बाजरा, पपीता, अंजीर आदि हितकर हैं।

5-मिर्गी रोग में क्या खाएं-गेहूं, चावल, मूंग, बथुआ, परवल, सहिजन की फली, आंवला, अंगूर, फालसा, नारियल का पानी, अनार और घी का प्रयोग करना चाहिए।

6-मूर्च्छा में क्या खाएं – पूरी, रोटी, चावल, सूजी का हलवा, मिठाई, मुंग, मसूर, चना, उड़द, बैंगन, पेठा, गूलर, केलों के फूल का शाक, मक्खन, छाछ, दही, अंगूर,आम, अनार, पपीता, शरीफा, गाय का धारोष्ण (तुरंत का दुहा) दूध भी हितकर है।

7-पथरी में क्या खाएं–जौ का पानी, नारियल का पानी, कुलथी, नींबू का रस और दूध का प्रयोग करना चाहिए। ( और पढ़े –पथरी के सबसे असरकारक 34 घरेलु उपचार )

8-सूजन में क्या खाएं–पुराना गेहूं, जौ, चावल, अरहर, मूग, मसूर का यूष, करेला, परवल, लहसुन, आसव, घी, एरण्डी का तेल, ककड़ी, सहिजन की फली, गो-मूत्र, आम तथा गाजर का उपयोग विशेष लाभदायक है।

9-मूत्रकृच्छ (पेशाब रुक-रुककर आना) में क्या खाएं-चावल, रोटी, पूड़ी, हलुआ, मूग का यूष, अदरक, खजूर ताड़-फल की गुठली का गूदा, परवल, बैंगन, गूलर, कागजी नींबू, तरबूज, मक्खन, मिश्री, दूध, मट्ठा, दही, लस्सी उपयुक्त हैं।

10-उदर (पेट) के रोग में क्या खाएं-पुराने चावल का भात, दूध, साबूदाना, अरारोट, मूग, कुलथी का यूष, मीठा दूध, गो-मूत्र, लहसुन, परवल, गूलर, बैंगन, करेला, हरड़, एरण्डी का तेल, पान तथा इलायची लाभदायक हैं।

11-शूल (पेट दर्द) में क्या खाएं–दूध, बार्ली-वाटर, परवल, सहजन, करेला, बैंगन, द्राक्षा, काला नमक, जौ की लप्सी, पुराने चावल का भात तथा हींग विशेष हितकर हैं।

12-प्रदर रोग में क्या खाएं-जौ, गेहूं, चावल, मूंग, मसूर, चना, परवल, केला, करेला, गूलर तथा दूध लाभदायक हैं। ( और पढ़े – श्वेत प्रदर के रोग को जड़ से मिटा देंगे यह 33 घरेलू उपाय)

13-गर्भावस्था में क्या खाएं-गेहूं, चावल, मूग, दूध, घी, परवल, करेला, चन्दन, आम, यवागू, मीठे तथा शीतल द्रव्य और फलों में सन्तरा, मौसम्बी, अंगूर आदि ठीक |

14-सिर के रोग (सिर-दर्द आदि) में क्या खाएं-गेहूं, चावल, मूंग का यूष, करेला, सहजन, बथुआ, आम, अनार, घी, आंवला तथा जलेबी हितकर हैं।

15-नेत्र रोग में क्या खाएं-जौ, भूरा चना, कुलथी, परवल, बैंगन, करेला, केला, मूली, लहसुन, धनिया, द्राक्षा, घी, दूध लाभदायक हैं।

16-नाक के रोग में क्या खाएं-पुराना जौ, गेहूं, मूग, कुलथी का यूष, परवल, बैंगन, सहजन, खेकसा, छोटी मूली, लहसुन और दही उपयुक्त हैं।

17-कान के रोग में क्या खाएं-गेहूं, जौ, चावल, मूग, अरहर, घी, परवल, सहजन, बैंगन, करेला का सेवन लाभदायक रहता है।

18-चर्म रोग में क्या खाएं-जौ, गेहूं, मूंग दुग्ध तथा दुग्ध-पदार्थ हितकारी होते हैं।

19-श्वास रोग में क्या खाएं-शुष्क तथा अल्प मात्रा में भोजन, गरम दूध, चाय तथा अर्ध-तरल पदार्थ उपयुक्त होंगे। दूध में हल्दी तथा फलों का रस श्रेष्ठ होता है।

20-अर्श (बवासीर) में क्या खाएं-पुराने चावल का भात, चना, जौ, कुलथी, मूंग की दाल, शाकों में परवल, बथुआ, जिमीकन्द, करेला, कच्ची मूली, केले के फूल का शाक, तोरई और घीया; फलों में केला, बेलफल, अंगूर, अनार, आंवला हितकारी हैं। ( और पढ़े – )

21-पाण्डु रोग (पीलिया) में क्या खाएं-गहूं, चावल, जौ, मुंडा, मसूर, अरहर; शाकों में कच्चा केला, पालक, परवल, घीया, तोरई, मूली; फलों में अंगूर, मौसम्बी, सन्तरा, अनार, सेब, टमाटर आदि पथ्य हैं।

22-पेट में कीड़े में क्या खाएं-पुराने चावलों का भात, घी, गो-मूत्र लाभकारी; शाको में करेला, परवल, बथुआ आदि में लहसुन, एवं अजवाइन डालकर सेवन करें; फलों में गूलर, केला, पपीता तथा नींबू। कांजी, साबुदाना, अखरोट भी हितकारी हैं।

23-गुल्म रोग (वायु-गोला) में क्या खाएं-लाल चावल, कुलथी का यूष, एरण्डी का तेल, गाय एवं बकरी का दूध, पशु-पक्षियों का मांस-रस, दूध, गेहूं की रोटी और मिश्री का शरबत; शाकों में जिमीकन्द, परवल, बैंगन, कच्चा पपीता, करेला, सहजन की फली, सफेद पेठा, केले का कूल, मूली, बथुआ; फलों में गूलर, अंगूर, पपीता, बिजौरा नींबू, नारंगी, आंवला, फालसा, करोंदा, कच्चा नारियल लाभकारी हैं।

24-हृदय रोग में क्या खाएं-भात, मूंग का यूष, मुरब्बा, दूध-दही, घी आदि; शाकों में सफेद पेठा, तोरई, घीया, केले के फूलों का शाक, अम्तलास की पत्ती का शाक, मूली, धनिया, टमाटर आदि; फलों में-आम, अंगूर, मौसम्बी, सन्तरा, आंवला, अनार लाभकारी हैं।

25-प्रमेह में क्या खाएं-जौ, पुराना गेहूं, चावल, चना, अरहर के बने पदार्थ, छाछ, दूध, नारियल का पानी; फलों में-जामुन खजूर, केला, सेब, तरबूज; शाकों में बैंगन आदि गरम शाकों को छोड़कर प्रायः सभी शाक लाभकारी हैं।

26-वीर्य (धातु) का पतलापन में क्या खाएं-गेहूं, चने की रोटी, चावल, मूंग, चना, उड़द की दाल; शाकों में गाजर, परवल, कटहल, पत्तागोभी, फूलगोभी, आलू, रतालू, जिमीकन्द आदि; फलों में खजूर, अंगूर, पपीता और आम श्रेष्ठ हैं।

27-साधारण बुखार में क्या खाएं–दूध, चाय, मूंग, मसूर, कुथली और सोंठ का यूष (सूप) पीने के लिए देना चाहिए। खाने में साठी के चावलों का भात, परवल, करेला, घीया, तोरई, गिलोय के पत्तों का शाक हितकर है। फलों में आंवला, चीकू, अनार, मौसम्बी, अंजीर अनूकूल हैं।

28-दस्त न रुकना में क्या खाएं-चावल का भात, मसूर और मूंग की दाल का यूष, खिचडी, दही, छाछ, बेलगिरी का फल, सेब अनार, कैथ (कपित्थ) हितकर

29-अजीर्ण में क्या खाएं-चावल, मूंग का यूष, बथुआ, छोटी मूली, लहसुन, पेठा, सहिजन (सुहांजन), करेला, परवल, ककोड़े का शाक, नारंगी, अनार, केला, नींबू, छाछ, कांजी, पापड़, चटनी आदि लाभदायक हैं।

30-अफारा में क्या खाएं-जौ के आटे की लप्सी, दूध, नारियल का पानी, पपीता, अनार, शरीफा, आंवला, अंगूर, गूलर और परवल की भाजी लाभकारी

31-दाह (जलन) में क्या खाएं-भात, जौ, मूग, चना, लाभदायक हैं। शाकों में पेठा, कटहल, परवल; फलों में अंगूर, आंवला, फालसा, अनार, खजूर, सिंघाड़ा, तथा नारियल का पानी, गन्ने का रस, मिश्री का शरबत एवं दूध और मक्खन श्रेष्ठ ।

32-चर्बी बढ़ जाना में क्या खाएं-जौ, कुलथी, चना, मूग, मसूर, अरहर, गूलर, केला, शाकों में बैंगन तथा पेठा हितकर होंगे।

33-क्षय रोग में क्या खाएं–चोकरयुक्त आटे (गेहू) की रोटी, पुराने चावलों का भात, गेहूं का दलिया, मूंग और अरहर की दाल, अरारोट, धान की खील, साबूदाना; शाकों में–परवल, बथुआ, मूली, चटनी; फलों में नींबू, अंगूर, मौसम्बी, अनन्नास, आम, केला, किशमिश, मुरब्बा; स्निग्ध आहार में बकरी का दूध और घी।

ऊपर रोगों के अनुसार आहार साधारण दृष्टि से ही बताया गया है, लेकिन रोग की विशिष्ट अवस्था में चिकित्सक से परामर्श करना ही श्रेष्ठ है।

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